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सुरंग हो या फिर कोई जगह, सिविल इंजीनियरिंग की नई तकनीक से हो सकेगा निर्माण

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 28, 2023, 10:22 PM IST

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टनल निर्माण प्रक्रिया में शोध

गोरखपुर में सिविल इंजीनियरिंग से जुड़े हुए प्रोफेसर और वैज्ञानिकों ने मिलकर सिंगल या डबल टनल के पास निर्माण कार्य (Research on tunnel construction) किया जा सकता है, या नहीं इसको लेकर शोध की है. इस शोध पत्र को अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर ने स्वीकार किया है. टनल निर्माण की प्रक्रिया में यह शोध कारगर सिद्ध होगी.

असिस्टेंट प्रोफेसर विनय भूषण चौहान और शोधार्थी पीयूष कुमार ने दी जानकारी

गोरखपुर: विकास एक सतत प्रक्रिया है. इसमें हर दिन नई तकनीक का प्रयोग भी देखने को मिल रहा है. सिविल इंजीनियरिंग से जुड़े हुए प्रोफेसर और वैज्ञानिक इस कार्य में शोध को आगे बढ़ा रहे हैं. गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर विनय भूषण चौहान और उनकी टीम ने ऐसे ही एक शोध किया है. जिसके माध्यम से यह तय हो जाएगा कि अगर किसी भी स्थान पर सिंगल या डबल टनल बनाई गई है तो, उसके ऊपर कोई निर्माण या बगल में निर्माण किया जा सकता है या नहीं. या फिर, कहीं कोई मकान या अन्य निर्माण हुआ है तो वहां से टनल बनाई जा सकती है या नहीं. इस शोध को अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियरिंग ने भी मान्यता प्रदान कर दी है.

रिडक्शन फैक्टर के तहत तैयार होगी टनल: असिस्टेंट प्रोफेसर विनय भूषण की टीम में शोधार्थी पीयूष कुमार ने भी अपना योगदान दिया है. एमटेक के बाद वह अपने शोध कार्य को पूरा करने में लगे हुए हैं. इसके बाद उन्हें पीएचडी की उपाधि मिलेगी. इस शोध के संबंध में विनय भूषण ने बताया है कि सिंगल टनल हो या फिर ड्यूल टनल, इसके निर्माण के साथ इसकी नींव की मजबूती को लेकर मन में पनपने वाले संकट को इस शोध के जरिए दूर करने का प्रयास किया गया है. यह संकट उन जगहों से भी दूर हो जाएगा, जहां मानव जनित या प्राकृतिक रूप से सुरंग भी गुजराती हो. रिडक्शन फैक्टर के तहत तैयार होने वाली नींव पूरी तरह से मजबूत होगी. जिससे भवन की आयु लंबी होगी.

इस शोध कार्य को लेकर जो शोध पत्र तैयार हुआ है, इसमें इसके सारे फॉर्मूला और स्टेप दिये गये हैं. उसको अमेरिकन सोसायटी ऑफ सिविल इंजीनियर ने स्वीकार किया है. यह जनरल प्रकाशित भी हो गया है, जिससे शोध निर्देशक असिस्टेंट प्रोफेसर विनय भूषण और पीयूष कुमार का उत्साह और उम्मीदें काफी मजबूत हो गई हैं. दोनों लोगों ने शोध के संबंध में बताया है कि इसमें उपयोग किया जाने वाला रिडक्शन फैक्टर यह निर्धारित कर देगा कि सुरंग के आसपास मजबूत भवन के निर्माण की मानक क्या होंगे. सुरंग के आकार के आधार पर फैक्टर यह बताएगा कि उससे कम से कम कितनी दूरी पर भवन बनाया जा सकेगा. साथ ही भवन के नींव की भार वहन क्षमता क्या होगी, उस पर अधिकतम कितने तल का भवन बनाया जा सकता है.

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मजबूत भवन निर्माण की संभावना पर किया शोध: इस शोध को अंजाम देने वाले गुरु और शिष्य दोनों के विचार यह कहते हैं कि बीते वर्षों में भौतिक जरूरत के लिए भूमिगत संरचना के बड़े प्रचलन और भूमि के दोहन के साथ ही, प्राकृतिक भूगर्भीय प्रक्रिया के चलते बढ़ रहे खोखलेपन ने उन्हें शोध के लिए प्रेरित किया. उन्हें कई लोग ऐसे मिले जो सुरंग के आसपास भवन निर्माण करना चाहते थे. लेकिन, मजबूती को लेकर चिंतित थे. इस चिंता को दूर करने करने के लिए उन्होंने सुरंग के पास मजबूत भवन निर्माण की संभावना पर शोध करना प्रारंभ किया. जिसका परिणाम आज निकाल कर सामने आया है.

उन्होंने बताया कि इससे परिवहन सुविधा को भी आसान बनाया जा सकेगा. साथ ही लोगों के भवन की आवश्यकता की पूर्ति भी सभी खतरों को टालते हुए पूरी की जा सकेगी. इन्होंने कहा कि इस मामले में "रिडक्शन फैक्टर" दो स्थितियों का अनुपात है. पहली स्थिति में भवन की नींव, भार वहन क्षमता का आकलन भूमिगत सुरंग की अनुपस्थिति में किया गया. जबकि, दूसरी स्थिति में यही आकलन सुरंग की उपस्थिति में किया गया. दोनों स्थितियों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर नींव की भार वहन क्षमता निर्धारित की जाती है. यह शोध उन इंजीनियरों के लिए बेहद मददगार होगा, जो भविष्य में कोई सुरंग निर्माण की प्रक्रिया से जुड़ रहे होंगे. उन्होंने कहा कि देश में सड़कों का बड़ा जाल बिछ रहा है, चाहे वह पहाड़ी क्षेत्र हो या मैदानी. इनमें सुरंग का भी निर्माण हो रहा है. जहां पर यह टेक्नोलॉजी लाभ पहुंचाएगी.

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