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बुलंदशहर: रालोद प्रत्याशी कुंवर प्रवीण कुमार सिंह की ईटीवी भारत से खास बातचीत

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Published : Oct 25, 2020, 12:28 PM IST

कुंवर प्रवीण सिंह से खास बातचीत.
कुंवर प्रवीण सिंह से खास बातचीत.

उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर सदर सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए रालोद ने कुंवर प्रवीण कुमार सिंह को उम्मीदवार बनाया है. सपा ने भी इन्हें अपना समर्थन दिया है. कुंवर प्रवीण कुमार सिंह का कहना है कि जनता सरकार से परेशान है. किसानों की हालत खराब है. उनका कहना है कि इस बार रालोद-सपा गठबंधन की ही जीत होगी.

बुलंदशहर: जिले की सदर सीट पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने साझा प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. खास बात यह है कि रालोद प्रत्याशी कुंवर प्रवीण कुमार सिंह बाकी के सभी प्रत्याशियों में सबसे अधिक पढ़े लिखे उम्मीदवार हैं. कुंवर प्रवीण कुमार सिंह का दावा है कि खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र में उन्हें बहुत अधिक जनसमर्थन मिल रहा है.

यूं तो बुलंदशहर में होने जा रहे उपचुनाव में बुलंदशहर से 18 उम्मीदवार चुनावी मैदान में अपनी-अपनी दावेदारी पेश किए हुए हैं. इनमें भाजपा, रालोद-सपा गठबंधन, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और भीम आर्मी की आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी प्रमुख तौर पर मैदान में हैं. राष्ट्रीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने बुलंदशहर में होने वाले उपचुनाव को लेकर साझा प्रत्याशी को मैदान में उतारा है. राष्ट्रीय लोकदल ने अपने पार्टी के पूर्व में राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे और 1993 से राष्ट्रीय लोकदल के साथ जुड़े रहे भरोसेमंद उम्मीदवार कुंवर प्रवीण कुमार सिंह को बुलंदशहर से उम्मीदवार बनाया है.

कुंवर प्रवीण सिंह से खास बातचीत.

रालोद के वफादार नेता हैं कुंवर प्रवीण कुमार सिंह

कुंवर प्रवीण कुमार सिंह की बात करें तो उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन किया हुआ है. वह एक बैंकिंग सर्विस प्रोवाइडर हैं. कुंवर प्रवीण कुमार सिंह इससे पहले भी जिले में विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. 1991 में प्रवीण कुमार सिंह बुलंदशहर जिले की अगौता विधानसभा से कांग्रेस पार्टी से चुनाव लड़े थे, लेकिन वोटिंग न खुलने की वजह से चुनाव कैंसिल हो गया था. इसके बाद 1993 में पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोकदल के सुप्रीमो चौधरी अजीत उन्हें राष्ट्रीय लोकदल में अपने साथ ले आये. तभी से कुंवर प्रवीण कुमार सिंह राष्ट्रीय लोकदल से जुड़े हुए हैं. वे राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी रह चुके हैं.

चौधरी चरण सिंह के पैतृक गांव से हैं कुंवर प्रवीण कुमार सिंह

कुंवर प्रवीण कुमार सिंह मूल रूप से भटौना गांव के रहने वाले हैं. भटौना गांव जिले के बड़े गांवों में गिना जाता है. भटौना, देश के भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का पैतृक गांव भी है. कुंवर प्रवीण कुमार सिंह जाट जाति से ताल्लुक रखते हैं.

कंद्रीय मंत्री रह चुके हैं कुंवर प्रवीण कुमार सिंह के पिता

रालोद-समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के तौर पर बुलंदशहर सदर सीट पर भाजपा समेत अन्य प्रत्याशियों की धड़कनें भी रालोद प्रत्याशी ने तेज की हुई हैं. कुंवर प्रवीण कुमार सिंह एक राजनीतिक परिवार से आते हैं. कुंवर प्रवीण कुमार सिंह के पिता अपने समय के कद्दावर नेताओं में गिने जाते थे. इनके पिता जगवीर 1957 से लेकर 1967 तक जिले की अगौता विधानसभा से विधायक रहे हैं. वहीं 1969 से लेकर 1974 तक भी वह अगौता से विधायक रहे थे. इसके बाद 1974 से 1980 तक वह राज्यसभा सांसद रहे थे. जगवीर सिंह केंद्र सरकार में सूचना एवं प्रसारण मंत्री और रक्षा राज्य मंत्री भी रह चुके हैं.

क्या होंगे मुख्य मुद्दे

रालोद-सपा के साझा उम्मीदवार कुंवर प्रवीण कुमार सिंह का कहना है कि किसानों की समस्याओं से जुड़े मुद्दे उनके प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं. वह कहते हैं पिछले साल के गन्ने का भुगतान अभी तक नहीं हुआ और व्यापारियों के साथ जिले में हो रहे उत्पीड़न और देश की राजधानी के करीब होने के बावजूद अब तक कोई विकास नहीं होना जैसे मुद्दे प्रमुखता से उठाए जाएंगे हैं. रालोद प्रत्याशी इन्हीं मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं.

कुंवर प्रवीण कुमार सिंह कहते हैं कि दिल्ली से महज 70 किलोमीटर की दूरी बुलंदशहर की है, लेकिन उसके बावजूद भी बुलंदशहर का विकास अभी तक नहीं हुआ है. उनका कहना है कि जब मेरठ का विकास हो सकता है, नोएडा और ग्रेटर नोएडा का विकास हो सकता है तो आखिर बुलंदशहर का विकास क्यों नहीं.

किसानों से जुड़ी समस्या को लेकर वह जनता के बीच पहुंच रहे हैं. खासतौर से राष्ट्रीय लोकदल का वोट बैंक किसान को माना जाता है. उपचुनाव से परिणाम जो भी हों, लेकिन इस चुनाव के परिणाम के बाद आगामी 2022 की विधानसभा चुनाव के लक्ष्य को लेकर भी यह चुनाव अहम माना जा रहा है. सपा और रालोद को ये चुनाव काफी कुछ समझाने का काम भी करेगा. दोनों दल अगर एक साथ मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो उस स्थिति में सपा के वोटर और रालोद के वोटर साथ में कितना आ पाते हैं. साथ ही किसका कितना गणित इससे बनता बिगड़ता है यह भी स्पष्ट हो जाएगा.

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