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त्रेता युग में अंधे माता-पिता के साथ यहां रुके थे श्रवण कुमार...तभी से लगता है यह ऐतिहासिक मेला

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Published : Nov 15, 2021, 4:01 PM IST

त्रेता युग में अंधे माता-पिता के साथ यहां रुके थे श्रवण कुमार
त्रेता युग में अंधे माता-पिता के साथ यहां रुके थे श्रवण कुमार

अमरोहा जिले के गजरौला नगरी में गंगा के तिगरी तट पर प्रतिवर्ष ऐतिहासिक मेला लगता है. मान्यता है कि त्रेता युग में श्रवण कुमार ने अपनने अंधे माता-पिता के साथ यहां रुककर विश्राम किया था.

अमरोहा : जिले के गजरौला नगरी में कार्तिक पूर्णिमा पर प्रतिवर्ष ऐतिहासिक मेला लगता है. गजरौला में लगने वाला यह मेला गंगा नदी के तिगरी घाट पर लगता है. कार्तिक पूर्णिमा को लगने वाले इस मेले में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि तिगरी का प्रसिद्ध मेला त्रेता युग से लग रहा है.

मान्यता है, कि त्रेता युग में श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने के लिए निकले थे. तब उन्होंने अपने माता-पिता के साथ गंगा नदी के तिगरी तट पर विश्राम किया था. कहा जाता है कि नेत्रहीन माता-पिता के प्रति श्रवण कुमार का सेवा भाव देखकर हजारों लोग श्रवण कुमार और उनके माता-पिता के दर्शन करने आए थे. तभी से गंगा के तिगरी तट पर मेला लगने लगा. लंबे समय से मेला लगने की यह परंपरा अभी तक चली आ रही है.

त्रेता युग में अंधे माता-पिता के साथ यहां रुके थे श्रवण कुमार

स्थानीय निवासी पंडित गंगा शरण शर्मा ने बताया कि यह मेला त्रेता युग से निरंतर लग रहा है. उस दौर में श्रवण कुमार अपने अंधे माता पिता को कंधे पर लादकर तीर्थ यात्रा कराते हुए कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन गंगा के तट पर पहुंचे थे. तिगरी तट पर श्रवण कुमार के रूके होने की खबर आस-पास के लोगों में फैल गई. जिसके बाद हजारों लोग श्रवण कुमार का माता-पिता के प्रति सेवा भाव देखने आए.

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श्रवण कुमार गंगा के तट पर 4 दिवस रुकने के बाद कार्तिक पूर्णिमा को स्नान करके यहां से चले गए. पंडित गंगा शरण ने बताया कि त्रेता युग में श्रवण कुमार ने ठंड से बचने के लिए कपड़े का तंबू लगाया था. अब उसी की तर्ज पर लोग गंगा किनारे तंबुओं का मेला लगाते हैं. तिगरी के इस मेले में प्रतिवर्ष दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु आते हैं. भीड़ को देखते हुए अब यहां पर प्रशासन द्वारा सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जाते हैं.

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