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जय श्रीराम था कोडवर्ड, गोली लगने से तड़प रहे थे कोठारी बंधु, पुलिस बर्बरता से बरसा रही थी लाठियां

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 7, 2024, 10:23 AM IST

Updated : Jan 10, 2024, 10:19 AM IST

अयोध्या में 2 नबंवर 1990 के लाठीचार्ज और गोलीकांड (Ram temple Movement) के दौरान आगरा के कई कारसेवक मौजूद थे. ईटीवी भारत से बातचीत में उन्होंने भयावह मंजर को बयां किया.

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कार सेवकों ने बताई जुल्म की कहानी.

आगरा : प्रभु श्रीराम के प्रति अटूट आस्था थी. युवा खून नसों में उबाल मार रहा था. 10 दोस्तों ने 34 साल पहले कारसेवा करने के लिए अयोध्या जाने का फैसला किया. हालांकि तय समय पर सिटी स्टेशन पर सात दोस्त ही पहुंचे. वे गंगा-यमुना एक्सप्रेस (अवध एक्सप्रेस) से लखनऊ से आगे लखनपुर पहुंचे. इनमें से आगरा के कारसेवक देवेंद्र शर्मा और मोहन लाल खंडेलवाल भी थे. वे पैदल, बैलगाड़ी और वाहनों से सफर कर अयोध्या पहुंचे. दोनों कारसेवक बताते हैं कि 2 नवंबर 1990 को निहत्थे और राम संकीर्तन करते हुए आगे बढ़ रहे कारसेवकों पर लाठीचार्ज और गोलियां चलाई गईं. आंखों के सामने ही रामभक्त कोठरी बंधु लहूलुहान पड़े थे. वो पल बेहद बेरहम था.

आगरा से सात कार सेवक पहुंचे थे अयोध्या.
आगरा से सात कार सेवक पहुंचे थे अयोध्या.

ईटीवी भारत से आगरा के रामभक्त कारसेवक देवेंद्र शर्मा और मोहन लाल खंडेलवाल ने राम मंदिर आंदोलन के कई यादों को साझा किया. कहा कि हमारी आंखों ने प्रभु श्रीराम को टेंट में देखा. अब उनके भव्य मंदिर को भी बनते देखा. अब 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा देखेंगे. यह दिन इतिहास में दर्ज होगा. करोड़ों रामभक्त की कारसेवा से ये दिन आया है. लिहाजा इस दिन दीपावली मनाएंगे. जल्दी बच्चों को लेकर अयोध्या जाएंगे. तब हम कहां-कहां रुके थे? यह सब बच्चों को दिखाएंगे. उस समय सरकार ने कार सेवकों पर जुल्म ढाया था.

कार सेवकों की ओर से लिखे गए पत्र.
कार सेवकों की ओर से लिखे गए पत्र.

एक साथ अयोध्या पहुंचे थे सात दोस्त : भैरों बाजार स्थित भैरों मंदिर के पास के रहने वाले कारसेवक देवेंद्र शर्मा और संघ से जुड़े कारसेवक मोहन लाल खंडेलवाल ने बताया कि जिस दिन श्रीराम मंदिर बनाने की घोषणा हुई थी, उसी दिन हमने दीपावली मनाई थी. बात 34 साल पुरानी है. 21 अक्टूबर 1990 को भैरों मंदिर के पास हम 10 दोस्त बैठे थे. तभी तय हुआ कि अयोध्या चलते हैं. सभी ने हामी भर दी. तय हुआ कि 22 अक्टूबर को सिटी स्टेशन पर मिलेंगे. मगर, उस दिन सिटी स्टेशन पर देवेंद्र शर्मा, शैलेन्द्र बंसल, मोहन लाल खंडेलवाल, सुभाष शर्मा, पंकज कुमार उर्फ राजा, राकेश सिंह उर्फ लाला और अजीत कुमार गोयल पहुंचे. शैलेन्द्र बंसल ने सभी की टिकट ली. फिर, सभी सात साथी गंगा-यमुना एक्सप्रेस (अवध एक्सप्रेस) में सवार हो गए.

कार सेवकों की ओर से लिखे गए पत्र.
कार सेवकों की ओर से लिखे गए पत्र.

23 साल की उम्र में लिया बड़ा फैसला, घर से बिना बताए निकला : मूल निवासी भैरों बाजार और हाल कमलानगर निवासी मोहन लाल खंडेलवाल बताते हैं कि मेरा परिवार राष्ट्रीय सेवक संघ से जुड़ा था. दादा जी संघ से जुड़े थे. परिवार के अन्य लोगों ने संघ में सेवा की. तब मैं 23 साल का था. कार सेवा करने की दिली इच्छा थी. इसलिए, घर से बिना बताए एक बैग लेकर निकल गया. 23 अक्टूबर 1990 को लखनऊ से आगे जगदीशपुर पहुंचे. तब तक सभी साथी साथ थे. वहां से ट्रेन आगे कैंसिल कर दी गई थी. रास्ते में भी ट्रेन में चैकिंग हुई.

कार सेवकों की ओर से लिखे गए पत्र.
कार सेवकों की ओर से लिखे गए पत्र.

जयश्री राम था कोड वर्ड : मोहन लाल खंडेलवाल बताते हैं कि जगदीशपुर में संघ से जुड़े लोगों ने जयश्री राम कोड वर्ड से मुलाकात की. वहां से आदेश मिला कि आगे के सफर के लिए आगे बैलगाड़ी है. इसी से जाना है. इसके बाद संघ के जयश्री राम कोड वर्ड से सफर चल रहा था. रास्ते में किसी गांव में पड़ाव होता तो ग्राम प्रधान खाने और ठहरने की व्यवस्था करते थे. सैकड़ों किलोमीटर पैदल चले. फिर 28 अक्टूबर 1990 को अयोध्या की सीमा में पहुंचे. कर्फ्यू क्षेत्र में पहुंचने गुप्तार घाट के पास सभी सात दोस्तों की अन्य कारसेवकों के साथ गिरफ्तारी हुई. हमें पुलिस और प्रशासन ने खपरा डीह के कॉलेज में बनाई अस्थाई जेल में रखा.

जो सोच कर आए हो, वो करो, यहां बैठो नहीं : भैरों बाजार स्थित भैरों मंदिर के पास के रहने वाले रामभक्त कारसेवक देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि आगरा से कारसेवा करने गए थे. जोश था. कॉलेज में बनी अस्थाई जेल में ही संघ की शाखा लगाई गई. इसमें मैंने कहा कि, जो सोच कर आए हो, वो करो यहां बैठो नहीं. हिंदुत्व की लड़ाई है. तब तय हुआ कि जिस काम के लिए आए हैं, वो करेंगे. जेल की दीवार फांदकर भागेंगे. इस पर मैं और मोहन लाल शर्मा वहां से भागने में 31 अक्टूबर-1990 को सफल हो गए. बाकी के पांच साथी वहीं रह गए. तब एक नवंबर-1990 की धर्म सभा में तय हुआ कि, 2 नबंवर-1990 को तीन रास्ते से रामभक्त कारसेवक बाबरी के लिए कूच करेंगे. हम दोनों दिगंबर अखाड़े के पास एक मंदिर में रुके. 2 नवंबर-1990 की सुबह धरना देने के लिए कूच किया.

लाठीचार्ज हुआ और गोलियां चलीं : रामभक्त कारसेवक देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि उस दिन अयोध्या में उमा भारती, अशोक सिंघल, धमेंद्र आचार्य थे. जिनके निर्देश पर कारसेवक निकले. सभी को निर्देश थे कि कारसेवक निहत्थे चलेंगे. वे राम संकीर्तन करते हुए आगे बढ़ेंगे. जहां पर पुलिस रोकेगी. वहीं,रोके, वहीं बैठकर जय सिया राम का कीर्तन शुरू देंगे. मगर, मणिरामदास चौराहे के पास पुलिस ने लाठीचार्ज शुरू कर दिया. गोलियां चलाईं. हमारी आंखों के सामने कोठारी बंधुओं को भी गोली लगी थी. पैरों के पास आंसू गैस के गोले गिरे. शरीर पर लाठियां पड़ रही थीं. मगर, सभी जय श्री राम के नारे लगाकर आगे बढ़ रहे थे. वो अलग ही माहौल था.

पैदल चले, नदी पार की फिर पहुंचे मंजिल तक : रामभक्त देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि जब अस्थाई जेल से भागे तो रास्ते में एक नदी मिली. मैंने तैरकर मोहन लाल का हाथ पकड़ कर नदी से पार किया. जिन-जिन गांव से गुजरे और रुके. वहां हर कारसेवक को इज्जत मिली. कांग्रेस से जुड़े राजेश कुमार सिंह ने खाने से लेकर रुकने तक की व्यवस्था की थी. कारसेवकों के लिए एक गांव प्रधान अपने स्तर से दूसरे गांव के प्रधान को पत्र लिखकर देता था. जिससे कोई कारसेवक भूखा न रहे.

जहां रुकते थे, वहां से लिखते थे पत्र : रामभक्त कारसेवक मोहन लाल खंडेलवाल बताते हैं कि, घर से बिना बताए गए थे, तब ये तय किया था कि घरवालों को अपनी खबर देनी है. इसलिए, रात में जिस गांव में रुकते थे. वहां पर पत्र या पोस्टकार्ड लिखकर पोस्ट से भेजते थे. पत्र स्थानीय लोगों की भाषा में लिखते थे. जिसमें सामान्य जानकारी होती थी. जिससे घरवालों को पता चल सके कि, हम लोग सुरक्षित हैं. वापस लौटेंगे या नहीं. ऐसे में पत्र ही एकमात्र जरिया था. इससे घरवालों को हमारे जिंदा रहने और कहां पर हैं, इसका पता चल जाता था. मगर, एक भी पत्र घर नहीं पहुंचा था. जब हम आगरा सकुशल आ गए. इसके बाद हमारे लिखे पत्र घर पहुंचे.

22 को मनाएंगे दीपावली : रामभक्त मोहन लाल खंडेलवाल बताते हैं कि, 22 जनवरी के लिए पूरी तैयारी कर ली है. घर में दीपक जलाएंगे. दीपावली मनाएंगे. भगवा लहराएंगे. रामभक्त देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि, भैरों बाजार में सजावट की जाएगी. हलुआ, पूरी और आलू की सब्जी का भंडारा करेंगे. 22 जनवरी को दीपावली मनाएंगे. इसके बाद जल्द ही कार से परिवार को लेकर अयोध्या जाएंगे. रामलला के दर्शन कराएंगे. इस दौरान जब 1990 में हम अयोध्या कैसे पहुंचे थे, सभी जगहों को अपने बच्चों को दिखाएंगे.

मददगारों की मदद भी की : रामभक्त कारसेवक मोहन लाल खंडेलवाल बताते हैं कि कई बार पुलिस ने उन्हें रोकने और पकड़ने की कोशिश की. रात्रि विश्राम के लिए एक गांव में पहुंचे. इस दौरान पुलिस ने छापा मार दिया. इस पर गांव की महिलाएं आगे आ गई. उन्होंने अपने परिवार की महिलाओं के साथ कमरे में बंद कर दिया. परिवार की एक बुजुर्ग महिला ने सभी कारसेवक को पुलिस से बचाया. इसके साथ ही जब पैदल चलकर कारसेवक थक जाते थे तो जिस गांव में रुकते थे, उस गांव की महिलाएं कारसेवकों के पैर दबाती थीं. मददगार राजेंद्र सिंह के घर में जब कारसेवक रात में रुके तो पता चला कि, वो गरीब हैं. घर में बेटा बीमार है. उसके पैर में चोट है. इलाज कराने के पैसे नहीं हैं तो हमारे साथी और अन्य कार सेवक ने इलाज के लिए रुपये दिए थे.

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Last Updated :Jan 10, 2024, 10:19 AM IST
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