हरियाणा ने भी जताया चंडीगढ़ पर हक, विधानसभा में संकल्प सर्वसम्मति से पारित

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Published : Apr 5, 2022, 4:15 PM IST

Haryana's capital State Assembly passes resolution

चंडीगढ़ को लेकर हरियाणा और पंजाब में खींचतान जारी है. पंजाब के बाद हरियाणा ने भी चंडीगढ़ पर अपनी दावेदारी की है. मंगलवार को हरियाणा विधानसभा के विशेष सत्र में चंडीगढ़ और एसवाईल मुद्दे पर सरकार की ओर से पेश संकल्‍प सर्वसम्‍मति से पारित हो गया. इस संकल्प पत्र में हरियाणा ने पंजाब से हिंदी बोलने वाले क्षेत्र को वापस देने की मांग की है.

चंडीगढ़ : केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ को लेकर हरियाणा और पंजाब की सरकारों के अलावा दोनों राज्यों के राजनीतिक दल भी आमने-सामने हैं. हरियाणा सरकार ने मंगलवार को विधानसभा के स्पेशल सेशन में संकल्प पत्र पारित कर चंडीगढ़ पर दावा पेश किया. साथ ही हरियाणा विधानसभा ने सर्वसम्मति से सतलुज यमुना लिंक (SYL) नहर का पानी मांगने का प्रस्ताव भी पारित कर दिया. संकल्प पत्र में पंजाब के चंडीगढ़ का पूर्ण अधिकार देने के प्रस्ताव पर चिंता जताते हुए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की गई है.

विधानसभा में प्रस्ताव रखते हुए सीएम मनोहर लाल खट्टर ने कहा कि चंडीगढ़ पर हरियाणा का अधिकार बरकरार रहेगा. सीएम ने केंद्र से आग्रह किया है कि जब तक पंजाब के पुनर्गठन से जुड़े मुद्दों का निपटारा नहीं हो जाता, तब तक मौजूदा संतुलन और सद्भाव को बिगाड़ने वाला कोई कदम नहीं उठाया जाए. विधानसभा की ओर से पारित प्रस्ताव में केंद्र की ओर से भाखड़ा-व्यास मैनेजमेंट बोर्ड में सदस्यों की नियुक्ति की आलोचना की गई. संकल्प पत्र में यह कहा गया है कि बोर्ड में ये नियुक्तियां पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 की भावना के खिलाफ है.

हरियाणा विधानसभा में पारित संकल्प पत्र में पंजाब विधानसभा में चंडीगढ़ पर दावेदारी से जुड़े पारित प्रस्ताव पर आपत्ति जताई गई है. विधानसभा ने कहा कि पंजाब का यह प्रस्ताव पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 का उल्लंघन करता है. बहस के दौरान हरियाणा के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि चंडीगढ़ तब तक हरियाणा में बना रहेगा, जब तक राज्य को सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) का पानी, हिंदी भाषी क्षेत्रों और नई राजधानी की स्थापना के लिए केंद्र से पैसा नहीं मिल जाता है.

बता दें कि एक अप्रैल को पंजाब की विधानसभा ने चंडीगढ़ को पंजाब में मिलाने का प्रस्ताव पास किया था. यह विवाद तब शुरू हुआ, जब केंद्र सरकार ने चंडीगढ़ के कर्मचारियों पर केंद्र के नियम लागू करने का फैसला किया. पंजाब ने इस पर आपत्ति जताई. पंजाब के सभी राजनीतिक दलों ने इसे केंद्र की साजिश बताया. फिर भगवंत मान सरकार ने विधानसभा में चंडीगढ़ को पंजाब में तुरंत शामिल करने का एक प्रस्ताव पास किया.

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