आसान नहीं वल्लभनगर का रण: इन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर, रोजाना बना रहे रणनीति...जी जान से प्रचार में जुटे उम्मीदवार

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Published : Oct 14, 2021, 5:49 PM IST

Updated : Oct 14, 2021, 9:17 PM IST

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वल्लभनगर उपचुनाव प्रदेश के कई बड़े नेताओं के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. भाजपा, कांग्रेस, आरएलपी और जनता सेना के शीर्ष नेता इस उपचुनाव में जीत हासिल करने के लिए रोज रणनीति बना रहे हैं तो वहीं उम्मीदवार भी जी जान से प्रचार में जुटे हैं.

उदयपुर. मेवाड़ की वल्लभनगर विधानसभा सीट का उपचुनाव राजनीतिक पार्टियों और नेताओें के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है. ऐसे में सभी राजनीतिक संगठन अपने उम्मीदवार की जीत के लिए दिन-रात एक करने में जुटे हैं. राजस्थान की राजनीतिक सियासत में मेवाड़ अपना खासा महत्व रखता है. एक पुरानी कहावत है कि प्रदेश की सियासत का रास्ता मेवाड़ से होकर गुजरता है. ऐसे में इस उपचुनाव में वल्लभनगर में पहली बार चतुष्कोड़ीय मुकाबला देखने को मिल रहा है.

भाजपा, कांग्रेस और जनता सेना के अलावा आरएलपी भी मैदान में है. ऐसे में सभी पार्टी के नेता वल्लभनगर में डेरा डाले हुए हैं और अपने उम्मीदवार की जीत के लिए जतन करते नजर आ रहे हैं. सुबह से लेकर देर शाम तक उम्मीदवार जनता के बीच पहुंचकर अपने लिए वोट की अपील कर रहे हैं. साथ ही अलग-अलग गांव और ढाणियों में आने वाले मंदिरों में जाकर भी माथा टेक रहे हैं.

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कांग्रेस के लिए इसलिए महत्वपूर्ण सीट

इस बार राजनीतिक पार्टियों के साथ ही सत्ता पक्ष कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव चुनौती से कम नहीं है.क्योंकि पिछली बार मेवाड़ में कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई ऐसे में 2023 के चुनाव पहले यह चुनाव सेमीफाइनल माना जा रहा है.ऐसे में कांग्रेस इस सीट को बरकरार रखने के लिए हर तरह का संभव प्रयास कर रही है.यही वजह है.कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत समेत पार्टी के शीर्ष नेताओं ने मंच से 2023 के चुनाव का मौका बार-बार जिक्र किया था.कांग्रेस इस चुनाव से यह मैसेज देना चाहती है.कि सरकार के विकास कार्यों विश्वास जताया है.

नहीं वल्लभनगर का रण...

भाजपा के लिए बड़ी चुनौती

वल्लभनगर विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो लंबे समय से भाजपा यहां से जीत पाने में असफल रही है. ऐसे में जीत के सूखे को खत्म करने के लिए पार्टी ने अलग-अलग रणनीतिकारों को मैदान में उतारा है. इस बार भाजपा के सामने कई चुनौतियां हैं जिसमें खास कर उन्हीं के परिवार के दो पूर्व सदस्यों से उनकी कड़ी टक्कर है. इसमें एक जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भिंडर हैं तो दूसरे भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर बागी हुए आरएलपी का दामन थामने वाले उदय लाल डांगी हैं. यह आरएलपी से उम्मीदवार बनकर मैदान में उतरे हैं. हालांकि इस बार पार्टी ने नए प्रत्याशी को मौका दिया है, लेकिन फिर भी जीत आसान नहीं है.भाजपा के बड़े नेता अब जमीन को मजबूत करने में जुटे हुए हैं.

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यह चार अपनी पार्टी के प्रमुख

इस बार के वल्लभनगर चुनाव में चार प्रमुख नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर है. मेवाड़ के वल्लभनगर की उपचुनाव की सियासत पर प्रदेश के अलावा देश के कई राज्यों की निगाहें टिकी हैं. ऐसे में अलग-अलग पार्टियों के चार प्रमुख नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. इनमें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल, जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भिंडर शामिल हैं. सभी के लिए वल्लभनगर सीट जीतना चुनौती बन गया है.

इसलिए नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर...

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के अध्यक्ष बनने के बाद यह दूसरा उपचुनाव है. हालांकि इससे पूर्व हुए तीन उपचुनाव में कांग्रेस ने अपनी दो पूर्व की सीटें बरकरार रखीं जबकि राजसमंद की सीट नहीं जीत पाई. ऐसे में डोटासरा के नेतृत्व में होने वाले इस चुनाव की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है. यहां से स्वर्गीय विधायक गजेंद्र सिंह शक्तावत के बाद कांग्रेस के प्रत्याशी को जिताना चुनौती से कम नहीं है. इसलिए इस सीट पर जीत हासिल करने पर गोविंद सिंह डोटासरा के परफॉर्मेंस रिपोर्ट में उनका ग्राफ बढ़ेगा और हार मिलने पर कई सवाल खड़े होंगे. ऐसे में डोटासरा अलग-अलग रणनीति के साथ चुनावी समीकरणों को साधने में जुटे हुए हैं.

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भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया की प्रतिष्ठा भी दांव पर

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया को अध्यक्ष बने करीब 2 साल से भी अधिक समय हो चुका है. ऐसे में उनके सामने यह दूसरा उपचुनाव है. हालांकि गत उपचुनाव में वह कोई महत्वपूर्ण जीत अर्जित नहीं कर पाए हैं. ऐसे में भाजपा को जिताना उनके लिए बड़ी चुनौती है. अगर पूनिया इस सीट पर जीते हैं तो कई सियासी संदेश देने में सफल साबित होंगे.

खास कर इस सीट को जीतने के बाद उनके कद में इजाफा होगा तो वहीं लंबे समय से भाजपा को फिर से वल्लभनगर में स्थापित कर पाएंगे लेकिन पूनिया और उनकी पार्टी के सामने उन्हीं के पूर्व सहयोगी मैदान में हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक चुनौतियों से मुकाबला के साथ पूनिया अपनी पार्टी को जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं.

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जनता सेना सुप्रीमो रणधीर सिंह भींडर की चुनौती भी कम नहीं

भाजपा के पूर्व कद्दावर नेता रहे रणधीर सिंह भिंडर ने पार्टी से अलग होकर जनता सेना नाम की पार्टी बनाई है. हालांकि उन्हें यहां से जीतकर विधानसभा भी जाने का मौका मिला है लेकिन इस बार का रण भिंडर के लिए भी आसान नहीं होगा क्योंकि उन्हें तीन अलग राजनीतिक संगठनों से चुनौती मिल रही है. अगर भिंडर इस चुनाव में जीत अर्जित करते हैं तो उनके पद और प्रतिष्ठा दोनों में इजाफा होगा और भाजपा के उन नेताओं को भी बड़ा सियासी संदेश जाएगा जो भिंडर को टिकट देने का विरोध कर रहे थे. वहीं अगर इस चुनाव में भिंडर को हार मिलती है तो उनको फिर से आत्ममंथन पर विवश होना पड़ेगा. हालाकी भिंडर दमखम के साथ चुनावी मैदान में जनता के बीच में जुटे हुए हैं.

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आरएलपी संयोजक हनुमान बेनीवाल भी भंवर में फंसे...

अपने बयानों से सुर्खियों में रहने वाले बेनीवाल ने भी मेवाड़ की सियासत में वल्लभनगर उपचुनाव के रास्ते कदम रखा है. बेनीवाल ने भाजपा के पूर्व नेता रहे उदय लाल डांगी को अपना उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में डांगी के माध्यम से आरएलपी को मेवाड़ में जमाने की कोशिश में वे जुटे हुए हैं. हालांकि बेनीवाल इससे पहले भी उपचुनाव में शामिल हो चुके हैं. उन्हें अच्छा खासा वोट तो मिला लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए थे, यही वजह है कि बेनीवाल अपने उम्मीदवार के नामांकन के बाद से ही वल्लभनगर में डेरा डाले हुए हैं. उन्हें पता है कि यह सीट आरएलपी के खाते में आती है तो इसका सियासी संदेश सभी पार्टियों में देखने को मिलेगा.

चुनाव की गंभीरता को समझते हुए सभी नेता जी जान से जुटे हुए हैं. क्योंकि 2023 के रण को जीतने से पहले इस सेमीफाइनल में जीत हासिल करना इन नेताओं के सामने चुनौतियों से कम नहीं है.

Last Updated :Oct 14, 2021, 9:17 PM IST
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