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Rajasthan Assembly Election 2023: हाड़ौती की 17 सीटों पर राजनीतिक नजर, कांग्रेस के लिए 7 तो बीजेपी के लिए 6 सीट हैं चुनौती...यहां जानिए हर सीट का मिजाज

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 12, 2023, 6:43 PM IST

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 का सियासी मैदान तैयार है. चुनावी रण में जीत का परचम लहराने के लिए सभी राजनीतिक दल पूरी ताकत झोंकने में लगे हैं. सियासी बयानों और रणनीति से बढ़ रही राजनीतिक तपिश के बीच हम आपको हाड़ौती की 17 सीटों का लेखाजोखा बता रहे हैं. पढ़िए ये रिपोर्ट...

Analysis of 17 seats of Hadoti
हाड़ौती की 17 सीटों पर राजनीतिक नजर

हाड़ौती की 17 सीटों का लेखाजोखा, यहां देखें...

कोटा. राजस्थान में चुनावी रणभेरी बजने के साथ ही सियासी उबाल लगातार बढ़ता जा रहा है. एक-एक दिन गुजरने के साथ ही भाजपा-कांग्रेस समेत सभी पार्टियां चुनावी मैदान पर अपनी रणनीति को धार देने में लगी हैं. इस बीच आज हम हाड़ौती की 17 विधानसभा सीटों की पड़ताल कर रहे हैं. यहां की 17 सीटों में से 7 सीटें कांग्रेस के लिए तो 6 सीटें भाजपा के लिए चुनौती बन सकती हैं.

हाड़ौती रीजन में कांग्रेस के लिए चुनौती बनी सीटों में झालावाड़ की झालरापाटन, खानपुर और मनोहरथाना, बारां की छबड़ा, कोटा जिले की लाडपुरा, रामगंजमंडी और कोटा दक्षिण शामिल है. इसी तरह भाजपा के लिए चुनौती बनी सीटों में बूंदी जिले की हिंडोली, बारां जिले की अंता, बारां अटरू व किशनगंज, कोटा की कोटा उत्तर और सांगोद सीट शामिल है. इसके अलावा शेष चार सीटों पर दोनों पार्टियों का प्रदर्शन लगभाग समान है. हालांकि, इनमें से तीन पर भाजपा तीन चुनाव जीती व दो हारी है. वहीं, एक सीट पर कांग्रेस तीन चुनाव जीती, जबकि दो हारी है.

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ये 7 सीटें बनी कांग्रेस के लिए चुनौती: परिसीमन के बाद बनी कोटा साउथ सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है. परिसीमन के बाद यहां कई चुनाव हुए हैं, जिनमें एक उपचुनाव भी शामिल है. चारों बार यहां से भारतीय जनता पार्टी जीती है. भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली सीट पर कांग्रेस ने चारों चुनाव में प्रत्याशी बदले हैं. साल 2008 में ओम बिरला ने इस सीट से कांग्रेस के दिग्गज रामकिशन वर्मा और 2013 में पंकज मेहता को हराया था. बिरला के सांसद बनने के बाद साल 2014 में यहां उप चुनाव हुआ, जिसमें संदीप शर्मा ने शिवकांत नंदवाना को हराया है. इसी तरह 2018 के चुनाव में यहां संदीप शर्मा ने राखी गौतम को हराया था.

भारतीय जनता पार्टी के लिए लाडपुरा मजबूत सीट मानी जाती है. यहां पर चुनाव में चार बार भाजपा लगातार जीती है. 1998 का चुनाव कांग्रेस जीती थी. इसमें कांग्रेस की पूनम गोयल ने बीजेपी के अर्जुन दास मदान को हराया था. इसके बाद लगातार तीन बार 2003, 2008 व 2013 में भवानी सिंह राजावत विधायक बने. उन्होंने पूनम गोयल व दो बार नईमुद्दीन गुड्डू को हराया है. इसके बाद साल 2018 के चुनाव में बीजेपी ने भवानी सिंह राजावत का टिकट काटते हुए कल्पना देवी को टिकट दिया, उन्होंने नईमुद्दीन गुड्डू की पत्नी गुलनाज गुड्डू को हराकर चुनाव जीता था.

लाडपुरा की तरह रामगंजमंडी की सीट भी भारतीय जनता पार्टी के लिए मजबूत रही है. यहां भी लगातार बीते चार चुनाव से बीजेपी जीत रही है. 1998 में बीजेपी के हरि कुमार औदिच्य को हराकर रामकिशन वर्मा यहां से विधायक बने. रामकिशन वर्मा राजस्थान में गहलोत के पहले शासन में मंत्री रहे. साल 2003 के चुनाव में प्रहलाद गुंजल यहां से जीते और उन्होंने रामकिशन वर्मा को हराया. साल 2008 में चंद्रकांता मेघवाल ने पूर्व मंत्री रामगोपाल बैरवा और 2013 में बाबूलाल मेघवाल को चुनाव हरा यहां से विधायक बनी. इसके साथ ही 2018 में बीजेपी ने चंद्रकांता मेघवाल को यहां से टिकट न देकर मदन दिलावर को चुनाव लड़ाया, वे पूर्व मंत्री रामगोपाल बैरवा को हराकर विधायक बने.

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छबड़ा सीट भारतीय जनता पार्टी का गढ़ है. यहां से बीते पांच चुनाव में चार बार भाजपा जीती है. चार बार ही भाजपा से यहां पर पूर्व मंत्री प्रताप सिंह सिंघवी विधायक बने हैं, हालांकि 2008 में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी करण सिंह से हार का मुंह देखना पड़ा था. भाजपा प्रत्याशी प्रताप सिंह सिंघवी ने 1998 में कांग्रेस के अबरार अहमद, 2003 में कांग्रेस के मानसिंह, 2013 में नेशनल पीपल'एस पार्टी के मानसिंह धनोरिया वह कांग्रेस के प्रकाशचंद और 2018 में कांग्रेस के कारण सिंह को चुनाव हराया है. हालांकि, बीते 9 चुनाव में इस सीट से महज एक बार कांग्रेस जीती है.

हाड़ौती में भाजपा की सबसे मजबूत सीट झालरापाटन मानी जाती है. इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे लगातार चुनाव जीतती रही हैं. साल 1998 में यहां से कांग्रेस के मोहनलाल ने बीजेपी के अनंग कुमार को चुनाव हराया था. इसके बाद 2003 में वसुंधरा राजे ने रमा पायलट, 2008 में मोहनलाल, 2013 में मीनाक्षी चन्द्रावत व 2018 में मानवेंद्र सिंह को चुनाव हराया है.

बीजेपी की मजबूत सीटों में खानपुर शामिल है. यहां से पांच में से चार चुनाव में बीजेपी को जीत हासिल हुई है, जबकि 1998 में कांग्रेस को यहां से जीत मिली थी. इस दौरान कांग्रेस प्रत्याशी मीनाक्षी चंद्रावत ने भाजपा प्रत्याशी औंकार लाल नागर को हराया था. इसके बाद हुए चार चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस को हराया है. 2003 में नरेंद्र नागर ने मीनाक्षी चंद्रावत, 2008 में अनिल कुमार जैन ने मीनाक्षी चंद्रावत, 2013 में नरेंद्र नागर ने संजय गुर्जर और 2018 में नरेंद्र नागर ने सुरेश गुर्जर को चुनाव हराया है.

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मनोहरथाना की सीट भी कांग्रेस के लिए चुनौती भरी है. यहां से 1998 के बाद में एक बार कांग्रेस जीत पाई है. साल 2008 में यहां कांग्रेस को जीत मिली, जिसमें कांग्रेस प्रत्याशी कैलाशचंद मीणा ने श्याम सुंदर को चुनाव हराया था. वहीं, 1998 में भाजपा के जगन्नाथ ने कांग्रेस के भेरूलाल, 2003 में कैलाश चंद मीणा को चुनाव हराया है. 2013 में बीजेपी के कमर लाल ने कांग्रेस के कैलाश मीणा को मात दी. इसी तरह से 2018 में बीजेपी के गोविंद प्रसाद रानीपुरिया ने कांग्रेस के कैलाश मीणा को हराया था.

ये 6 सीटें बनी है बीजेपी के लिए चुनौती: हिंडोली सीट पर बीते 5 चुनाव में कांग्रेस को चार बार सफलता मिली है, जबकि भाजपा एक बार 2008 में कामयाब हुई है. 2013 में जब भाजपा तिहाई बहुमत लेकर आई थी, तब भी यह सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. यहां से अशोक चांदना ने चुनाव जीता था. इसके बाद 2018 में भी वे यहां से विधायक बने हैं. केवल 2008 में भाजपा के प्रभु लाल सैनी यहां से विधायक बन पाए थे. इससे पहले 2003 में हरिमोहन शर्मा, 1998 में रमा पायलट और 1993 में शांति धारीवाल भी इस सीट से जीत चुके हैं.

परिसीमन के बाद नई सीट बनी सांगोद में कांग्रेस का दबदबा रहा है. यहां से दो चुनाव पूर्व मंत्री भरत सिंह जीते हैं. उन्होंने 2008 और 2018 में जीत दर्ज की, जबकि 2013 में यहां से बीजेपी से हीरालाल नागर विधायक बने थे. इससे पहले यह सीट दीगोद थी, जिनमें दोनों बार कांग्रेस विजयी रही थी. 2003 में भरत सिंह ने भाजपा के दिग्गज नेता ललित किशोर चतुर्वेदी को हराया था. इससे पहले 1998 में यहां से भाजपा के विजय सिंह को कांग्रेस के हेमंत कुमार ने हराया था.

कोटा नॉर्थ पर भी कांग्रेस का दबदबा रहा है. परिसीमन के बाद यह सीट दो हिस्सों में बंटी थी. इससे यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने कांग्रेस की तरफ से तीन चुनाव लड़े और 2008 व 2018 में जीत हासिल की है. 2008 में धारीवाल का मुकाबला सुमन श्रृंगी से हुआ था. वहीं 2013 में यहां से प्रहलाद गुंजल विधायक बने व 2018 के चुनाव में उन्हें हार मिली थी. परिसीमन के बाद बारां की सीट से अलग हुई अंता में कांग्रेस मजबूत है. यहां से अभी तक तीन चुनाव कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया ने लड़ा है, जिनमें 2013 में उन्हें हार मिली थी. वहीं, 2008 और 2018 में प्रमोद जैन भाया यहां से चुनाव जीते थे.

प्रमोद जैन भाया ने 2008 में भाजपा के दिग्गज रघुवीर सिंह कौशल और 2018 में प्रभु लाल सैनी को चुनाव हराया. 2013 में प्रभुलाल सैनी से हार मिली थी. इस सीट में अधिकांश हिस्सा पहले की बारां सीट का है. जहां से बीजेपी को 1998 और 2003 में जीत नहीं मिली थी. साल 1998 में इस सीट से शिवनारायण नागर और 2003 में प्रमोद जैन भाया ने निर्दलीय चुनाव जीता था. इसमें बीजेपी के प्रेम नारायण गालव दूसरे और कांग्रेस के शिवनारायण तीसरे स्थान पर रहे थे.

बारां जिले की किशनगंज सहरिया बाहुल्य है. यहां पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. बीते पांच चुनाव में बीजेपी केवल एक बार जीत पाई है. 1998 में कांग्रेस के हीरालाल ने बीजेपी के हेमराज मीणा को हराया था. इसके बाद 2003 के चुनाव में टिकट कटने से नाराज बीजेपी से बागी होकर हेमराज मीणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. उन्होंने हीरालाल नागर को चुनाव हराया. वहीं बीजेपी प्रत्याशी मोहनलाल तीसरे नंबर पर रहे थे. इसके बाद 2008 के चुनाव में बीजेपी से चुनाव लड़ रहे हेमराज मीणा को कांग्रेस प्रत्याशी हीरालाल की बेटी निर्मला सहरिया ने चुनाव हराया है. साल 2013 में हेमराज मीणा की जगह उनके बेटे ललित मीणा को बीजेपी ने टिकट दिया था. वहीं, कांग्रेस ने निर्मला सहरिया की मां चतरी बाई को चुनाव मैदान में उतारा था. इस चुनाव में ललित विजयी रहे थे. इसके बाद 2018 में कांग्रेस ने दोबारा निर्मला सहरिया को टिकट दिया और उन्होंने ललित मीणा को चुनाव हराया.

परिसीमन के बाद नई सीट बनी बारां अटरू में अधिकांश हिस्सा पहले की अटरू सीट का है. परिसीमन के पहले यहां पर बीजेपी का दबदबा था, लेकिन परिसीमन के बाद यहां कांग्रेस का दबदबा हो गया है. साल 1998 और 2003 के चुनाव में यहां से मदन दिलावर विधायक बने. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मदन महाराज को चुनाव हराया था. वहीं, परिसीमन के बाद यहां से तीन चुनाव में दो पर कांग्रेस जीती है. इसमें साल 2008 में कांग्रेस के पानाचंद मेघवाल ने भाजपा प्रत्याशी मदन दिलावर को चुनाव हराया था. साल 2013 में पानाचंद मेघवाल को हार का मुंह देखना पड़ा, उन्हें भाजपा के रामपाल मेघवाल ने चुनाव हराया. इसके बाद साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस के पानाचंद ने पूर्व मंत्री वह भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल वर्मा को हराया था.

इन पर पांच में से तीन चुनाव जीती भाजपा: केशोरायपाटन सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है. यहां पर बीते पांच चुनाव में तीन बार भाजपा जीती है, जबकि दो बार कांग्रेस जीती है. 1998 में कांग्रेस के घासीलाल मेघवाल व 2003 में भाजपा के बाबूलाल विजयी रहे थे. इसी तरह 2008 में सीएल प्रेमी यहां से विधायक बने थे. 2013 में पूर्व मंत्री बाबूलाल वर्मा और 2018 में चंद्रकांता मेघवाल जीती हैं.

बूंदी सीट की बात की जाए तो बीते पांच चुनाव में यहां से तीन बार भाजपा जीती है. भाजपा यहां से 2008, 2013 व 2018 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की है. तीनों बार अशोक डोगरा एमएलए बने हैं. इससे पहले कांग्रेस से 1998 और 2003 में ममता शर्मा यहां से विधायक बनी थी. हालांकि, 2018 के चुनाव में टिकट कटने से नाराज होकर ममता शर्मा भाजपा में शामिल हो गई थी.

झालावाड़ जिले की डग सीट से बीते पांच चुनाव में से तीन बार बीजेपी जीती है, जबकि दो बार कांग्रेस को जीत मिली है. साल 1998 के चुनाव में कांग्रेस के मदन लाल वर्मा ने बीजेपी के बाबूलाल वर्मा को हराया था. इसके बाद 2003 के चुनाव में बीजेपी की लता ने कांग्रेस के मदन लाल वर्मा को हराया. कांग्रेस के मदनलाल वर्मा 2008 में फिर यहां से विधायक बने. उन्होंने भाजपा के रामलाल को हराया. साल 2013 में बीजेपी के रामचंद्र सुनारीवाल ने कांग्रेस के मदनलाल वर्मा को हराया. इसी तरह 2018 में बीजेपी के कालूराम मेघवाल ने कांग्रेस के मदनलाल वर्मा को मात दी है.

पीपल्दा सीट कांग्रेस को तीन बार मिली जीतः पीपल्दा से बीते पांच चुनाव में तीन बार कांग्रेस ने कब्जा जमाया व दो बार भाजपा जीती है. इस सीट पर एक बार बीजेपी एक बार कांग्रेस जीतती आई है. साल 1998 के चुनाव में रामगोपाल बैरवा यहां से जीते और गहलोत सरकार में मंत्री बने थे. 2003 में बीजेपी के प्रभुलाल, 2008 में कांग्रेस के प्रेमचंद नागर, 2013 में बीजेपी के विद्या शंकर नंदवाना और 2018 में कांग्रेस के रामनारायण मीणा जीते थे.

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