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पाक विस्थापित हिन्दुओं को नागरिकता का इंतजार, सरकारी नियमों में उलझी जिंदगी

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 17, 2023, 6:25 PM IST

Pakistan displaced Hindus in Rajasthan
Pakistan displaced Hindus in Rajasthan

Pakistan displaced Hindus in Rajasthan, पश्चिमी राजस्थान में हजारों की संख्या में पाक विस्थापित हिन्दू आज आधारभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर हैं, क्योंकि इनके पास नागरिकता नहीं है. वहीं, नागरिकता न होने के कारण इन्हें न तो काम मिल पाता और न ही सरकारी योजनाओं का फायदा. ऐसे में यहां विस्थापित हिन्दुओं की जिंदगी बद से बदत्तर हो गई है.

विस्थापित हिन्दुओं को नागरिकता का इंतजार

जोधपुर. पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत आने वाले हिंदुओं का सबसे बड़ा ठिकाना पश्चिमी राजस्थान है. इसमें भी जोधपुर में भारी संख्या में पाक विस्थापित रह रहे हैं. हजारों की संख्या में पाकिस्तान से आए हिंदुओं को नागरिकता का इंतजार है, लेकिन सरकारी लाल फीताशाही की सुस्त चाल और नियमों की बेड़ियों में इनकी नागरिकता की आस जकड़ कर रह गई है. हालांकि, जिला कलेक्टर के मार्फत नागरिकता देने का प्रावधान है, लेकिन नियम और दस्तावेजों की बाध्यता बड़ी बाधा है. यही कारण है कि तीन साल में जोधपुर में सिर्फ 822 विस्थापितों को ही नागरिकता मिल सकी है.

नियमानुसार मिले नागरिकता : वहीं, विस्थापित चाहते हैं कि कैंप लगाकर उन्हें नागरिकता दी जाए. विस्थापितों का कहना है कि जो लोग यहां कम से कम 7 साल और अधिकतम 12 साल से रह रहे हैं, उन्हें नियमानुसार नागरिकता मिलनी चाहिए. नियम है कि जिनके माता-पिता का जन्म 1947 से पहले भारत में हुआ था, उनको भारत आने के सात साल बाद नागरिकता दी जाती है. 1947 के बाद वालों को 12 साल बाद नागरिकता मिलती है. फिलहाल पश्चिमी राजस्थान में करीब 40 हजार ऐसे विस्थापित हैं, जो नागरिकता की आस में बैठे हैं.

पासपोर्ट नवीनीकरण बनी बड़ी परेशानी : भारत सरकार के गृह मंत्रालय के नोटिफिकेशन में नागरिकता का आवेदन करने वाले को अपना नवीनतम पाकिस्तानी पासपोर्ट लगाना होता है, लेकिन लंबे समय से भारत में लॉन्ग टर्म विजा पर रहने वाले लोगों के पासपोर्ट खारिज हो चुके हैं. जिन्हें नवीनीकरण करवाने के लिए पाकिस्तानी दूतावास में जाकर फीस चुकानी होती है. खुद की नागरिकता ले चुके दिलीप कुमार का कहना है कि बच्चे के पासपोर्ट रिन्यू के लिए पाक दूतावास लोगों को चक्कर कटवाता रहता है. इसी तरह से भेराराम के 10 पासपोर्ट हैं, जिनके लिए कम से कम 30 से 40 हजार नवीनीकरण का खर्चा है, जिसका भुगतान उनके लिए मुश्किल है.

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सरकार से आस तेज हो प्रोसेस : विस्थापित भागचंद भील बताते हैं कि नागरिकता देने का पावर भले ही कलेक्टर को दिया गया है, लेकिन प्रोसेस बहुत धीमा है. खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट समय पर नहीं आती है. इससे लगातार देरी हो रही है. इसके अलावा कई अन्य दस्तावेजी बाध्यताओं को सरल कर नागरिकता देने के लिए पूरा सिस्टम बनेगा तब लोगों को समय पर नागरिकता मिलेगी. साल 2012 से आए फरसूमल का कहना है कि नियमानुसार उन्हें 7 साल के बाद नागरिकता मिल जानी चाहिए और उन्होंने इसके लिए दो साल से आवेदन भी कर रखा है, लेकिन फिलहाल तक उन्हें नागरिकता नहीं मिल सकी है.

सीएए के नियम बने तो बड़ी राहत : सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट 2019 संसद से पारित हो चुका है, लेकिन इसके नियम अभी तक नहीं बने हैं. इस एक्ट के तहत भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के अल्पसंख्यक नागरिक जिनमें हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख शामिल है, जो प्रताड़ित होकर भारत आते हैं तो उनको नागरिकता दी जाएगी. बावजूद इसके नियम नहीं बनने से मसौदा लागू नहीं हो पा रहा है.

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पेश आती हैं ये दिक्कतें : पाकिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत विस्थापित जोधपुर, जैसलमेर और बाड़मेर क्षेत्र में आकर रहते हैं. इनमें ज्यादातर अनुसूचित जाति वर्ग के हैं. जोधपुर के कालीबेरी, चोखा और गंगाना की तरफ इनकी बस्तियां हैं और ये लोग पूरी तरह से सरकारी जमीन पर अवैध रूप से रह रहे हैं. इसके चलते कई बार इनको परेशानियों का भी सामना करना पड़ता है. यहां तक कि इन्हें काम और रोजगार मिलने में भी दिक्कतें पेश आती हैं. हालांकि, एलटीवी जारी होने पर आधार कार्ड बनने लगा है, जिससे बच्चों को स्कूल में दाखिला मिल जाता है, लेकिन किसी भी सरकारी योजना का इन्हें फायदा नहीं मिलता है.

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