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विदेशों तक जाती है जोधपुर की मीठी कचौरी, शुद्ध मावे से होती है तैयार, जानें 70 साल पुराना इतिहास

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 15, 2024, 4:55 PM IST

Jodhpur Famous Sweet Kachori
Jodhpur Famous Sweet Kachori

Jodhpur Famous Sweet Kachori, आज से करीब 70 साल पहले जोधपुर शहर में मावे कचौरी की शुरुआत हुई है और इसके जनक जयराम हलवाई थे. इस कचौरी की खास बात यह है कि इसे बनाने के लिए शुद्ध धी और फ्रेश मावे का इस्तेमाल किया जाता है.

जोधपुर की फेमस मीठी कचौरी

जोधपुर. कचौरी शब्द सुनते ही मूंग की दाल या फिर प्याज की कचौरी का ख्याल आता है, लेकिन जोधपुर में इससे इतर मावे की स्वीट कचौरी बनती है और इसकी मांग जिले व राज्य के इतर देश-विदेशों तक में है. शुद्ध देशी घी में बनने वाली इस कचौरी का निर्माण करीब 70 साल पहले शुरू हुआ था. यूं तो शहर की हर मिठाई की दुकान पर मावे की कचौरी मिलती है, लेकिन शहर के घास मंडी स्थित जयराम मुन्नीदास हलवाई की दुकान पर मिलने वाली मावे की कचौरी की बात ही कुछ और है.

Jodhpur Famous Sweet Kachori
मीठी कचौरी के जनक जयराम हलवाई

वहीं, जयराम हलवाई इस कचौरी के जनक थे, जिन्होंने रावतजी की दुकान पर नौकरी करते हुए इसकी शुरुआत की थी. हालांकि बाद में साल 1955 में उन्होंने खुद की दुकान शुरू कर इसको बढ़ावा दिया. वर्तमान में परिवार की चौथी पीढ़ी मावे की कचौरी बनाने का काम कर रही है. क्षेत्र के स्थानीय लोगों का कहना है कि इसका स्वाद हमेशा से एक जैसा है, क्योंकि इसे खालिस मावे से तैयार किया जाता है.

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अब भी बरकरार है वही टेस्ट : जयराम प्रजापत के परपोते वैभव प्रजापत बताते हैं कि हमारी खासियत हमारा मावा है. हम शुद्ध मावा से कचौरी बनाते हैं, जिसके चलते आज भी 70 साल से हमारी दुकान पर लोगों के आने का सिलसिला जारी है. वहीं, जोधपुर मूल के विदेश जाने वाले लोग हमेशा आर्डर देकर कचौरी खरीदते हैं और उसे अपने साथ ले जाते हैं. इसके अलावा जो बाहर से आते हैं, वे भी हमारे यहां से कचौरी लेना नहीं भूलते हैं.

Jodhpur Famous Sweet Kachori
ऐसे बनती है मावा कचौरी

यूं बनती है मावे की कचौरी : मावा कचौरी तैयार करने के लिए सबसे पहले मैदे में घी डालकर उसे गूथा जाता है. इससे वो खस्ता हो जाता है. वहीं, जयराम मुन्नीदास हलवाई की दुकान पर मावा कचौरी का मावा भी खुद ही तैयार किया जाता है. उनकी भट्टी पर तैयार मावे को पहले भूना जाता है. इसके बाद भुने हुए मावे में इलायची, जायफल, जावित्री और केसर मिलाई जाती है. फिर इसे मैदे की मोटी पूरी में भर दिया जाता है और हाथ से इसे कचौरी का आकार देकर देशी घी में तला जाता है. वहीं, शक्कर और घी की चाशनी पहले तैयार कर ली जाती है, जिसमें जावित्री और केसर मिला होता है. इधर, जब कचौरी तल जाती है तो उसे चाशनी में डाल दिया जाता है.

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कभी 6 आने की मिलती थी कचौरी : हलवाई जयराम प्रजातप ने नमकीन दाल की जगह मावा भरकर कचौरी बनाने की शुरुआत की थी. 1955 में जब उन्होंने अपनी खुद की दुकान शुरू की तो देशी की घी में तली मावा कचौरी 6 आने में मिला करती थी, लेकिन आज इसकी कीमत 65 रुपए हो गई है.

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