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Independence Day 2023 : जोधपुर के इस शख्स ने स्टैच्यू ढाल रणबांकुरों के शौर्य को किया सलाम, अब तक बना चुके हैं 20-25 म्यूजियम

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Published : Aug 15, 2023, 5:32 AM IST

आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताएंगे, जिसे देश की सेना से बेइंतहा प्यार है. उसके घर को फौजीवाला घर कहा जाता है.

Independence Day Celebration
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मूर्तिकार रणजीत सिंह राठौड़

जोधपुर. भारतीय सेना के पराक्रम का लोहा पूरी दुनिया मानती है. देश के लोगों को भारतीय सेना के पराक्रम व शौय की गाथाओं बताने के लिए कई प्रमुख जगहों पर सेना, वायुसेना के वॉर म्यूजियम बनाए गए हैं. जिनमें सेना की देश के लिए अर्जित की गई अभूतपूर्व उपलब्धियों को दर्शाया गया है. बीते दो दशक में ऐसे कई नए वॉर म्यूजियम स्थापित किए गए हैं. वहीं, जोधपुर के 43 वर्षीय रणजीत सिंह राठौड़ भी एक वॉर म्यूजियम बना रहे हैं. स्केच, लाइन आर्ट के साथ-साथ स्टैच्यू बनाने में माहिर रणजीत सिंह अब तक 20 से ज्यादा म्यूजियम बना चुके हैं. इतना ही नहीं सेना के प्रति उनका जुनून, समर्पण और प्रेम इस कदर है कि उनके घर में भी हर तरफ ऐसा ही कुछ नजर आता है, जिससे सेना के प्रति सम्मान बढ़ जाए.

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स्टैच्यू ढाल रणबांकुरों के शौर्य को किया सलाम

फौजीवाला घर - रणजीत सिंह ने अपने घर के बाहर भी फौजियों के बड़े-बड़े स्टैच्यू लगा रखे हैं. वहीं, शिकारगढ़ स्थित उनके घर के बाहर से कोई निकलता है तो इन स्टैच्यू को देख आश्चर्यचकित हो जाता है. उनकी पहचान भी फौजीवाला घर के रूप में हो गई है. घर में भारतीय सेना द्वारा बांग्लादेश निर्माण के दौरान पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण करवाने वाली अमर कृति भी लगी है. जिसमें लेफ्टिनेंट जनरल जगजीतसिंह अरोड़ा और पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी से दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा रहे हैं.

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परिवार की पृष्ठ भूमि भी सेना से जुड़ी - रणजीत सिंह बताते हैं कि उनका परिवार सेना से जुडा है. उनके दादा स्वर्गीय मांगूसिंह चंपावत द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग ले चुके हैं. पिता भारतीय वायुसेना में अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत हो चुके हैं और भाई अभी सेना में कार्यरत है. जब उनसे पूछा गया कि आप सेना में क्यों नहीं गए तो रणजीत सिंह ने कहा कि वो हमेशा उनके साथ रहे हैं और उनके दिल में कुछ अलग करने की चाह थी, ताकि उनकी एक अलग पहचान बने.

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अब तक बना चुके हैं 20-25 म्यूजियम

भारतीय सेना में बनी अलग पहचान - रणजीत सिंह बताते हैं कि 8-9 साल की उम्र से ही वो ये काम शुरू कर दिए थे. 9वीं कक्षा में पढ़ने के दौरान उन्होंने पहला म्यूजियम बनाया था और आज वो एक ग्रेजुएट हैं. हालांकि, वो अपने काम व कला को लेकर कोई विशेष पढ़ाई नहीं किए हैं. आगे मूर्ति निर्माण को लेकर उन्होंने कहा कि पहले क्ले मोल्डिंग होती है और फिर फाइबर ग्लास का उपयोग किया जाता है. उनकी अब इस काम में विशेषज्ञता हो गई है. साथ ही आज उनकी भारतीय सेना में तो एक अलग ही पहचान बन गई है.

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घर को बनाया म्यूजियम - रणजीत सिंह का कहना है कि वे अपने इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं. परिवार के बच्चों को भी यह सीखा रहे हैं. साथ ही उनके घर के बाहर लगे स्टैच्यू के अलावा उनके गार्डन में भी चारों ओर सेना से जुड़े पैनोरमा लगाए गए हैं. यहां तक कि सोफा व टेबल भी टैंक की तरह बनाए हैं. वे अपने इस काम को व्यावसायिक रूप से भी आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि सेना के लिए वो हमेशा काम करते रहेंगे.

नाथूलापास गेट से लेकर जैसलमेर वॉर म्यूजिमय तक बनाया - रणजीत सिंह अब तक सेना के 16 स्थानों पर काम कर चुके हैं. इनमें सिक्क्मि में स्थित नाथूलापास गेट भी शामिल है. उन्होंने वहां सेना के पराक्रम उकेरा. इसके अलावा जैसमलेर वॉर म्यूजियम में लौंगेवाला के युद्ध की कहानी को अपने आर्ट के जरिए पेश किया. इतना ही नहीं पूणे वॉर म्यूजियम, रेड हॉर्न डिविजन, जोधपुर वॉर म्यूजियम, नगरोटा वॉर म्यूजियम, जयपुर प्रेरणा स्थल, देवली आर्टली स्कूल, कोलबा मुंबई का वॉर म्यूजियम, आर्टरेक म्यूजियम शिमला, जोधपुर वॉर म्यूजियम, डूंगरपुर वॉर म्यूजियम, एअरफोर्स म्यूजियम जोधपुर, योद्धा स्थल भोपाल, आरआईएमसी देहरादून और उत्तरी चेन्नई के लिए भी काम कर चुके हैं.

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