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Rajasthan Integration Day : अगर पाकिस्तान में जा मिलता जोधपुर तो आज नहीं होता राजस्थान का ये स्वरूप...

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Published : Nov 1, 2022, 6:18 AM IST

राजस्थान के इतिहास के पन्नों में राजनैतिक दांव-पेंच और कूटनीति के कई किस्से (History of How Jodhpur was included in India) दर्ज हैं. इनमें से एक है जोधपुर के भारत में विलय होने की कहानी. तत्कालीन महाराज हनवंत सिंह जोधपुर को पाकिस्तान में शामिल करना चाहते थे. इसके कारण पूरे मारवाड़ सहित राजनीतिकों में कई दिनों तक उथल-पुथल मची रही और आजादी के 4 दिन पहले जोधपुर भारत का अभिन्न हिस्सा बन गया. देखिए ये रिपोर्ट...

Rajasthan Integration Day
राजस्थान एकिकरण दिवस

जोधपुर. राजस्थान का वर्तमान स्वरूप 1 नवंबर 1956 को गठित हुआ था. इस दिन सिरोही व अजमेर का (History of Rajasthan) विलय हुआ था, लेकिन अगर जोधपुर जैसी रियासत भारत में नहीं रहती तो शायद राजस्थान का यह स्वरूप नहीं होता. वर्तमान स्वरूप में जोधपुर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है. आजादी के समय तत्कालीन महाराज पाकिस्तान में शामिल होने की बात कह चुके थे, लेकिन अंत में वे भारत में विलय को राजी हो गए. इसी तरह से सिरोही के विलय में भी जोधपुर के शिक्षकों का योगदान था.

जब 1956 में वृहद राजस्थान की कल्पना हुई तो सिरोही जिले का विलय होना था. यह दो चरणों में हुआ था. उस समय वल्लभ भाई पटेल (Sardar Patel in History of Rajasthan) चाहते थे कि माउंट आबू गुजरात में रहे. इसके बाद 1953 में जस्टिस फैजल अली आयोग बना, जिसने राज्यों की सीमाओं को लेकर काम किया. इस आयोग में बतौर सदस्य जेएनवीयू के तत्कालीन विभागाध्यक्ष प्रो दशरथ शर्मा और प्रो जिनसैन शूरी शामिल हुए. इन्होंने सिरोही क्षेत्र का सर्वे किया और लोगों से मिले. उनकी रिपोर्ट पर ही सिरोही का अंतिम विलय राजस्थान में हुआ था.

कुछ ऐसा था राजस्थान का इतिहास

आजादी से चार दिन पहले माने थे महाराजा : जोधपुर जैसी मारवाड़ की बड़ी रियासत ने (History of How Jodhpur was included in India) आजादी से सिर्फ चार दिन पहले यानी की 11 अगस्त 1947 को भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. उस समय देश में कई तरह के उथल-पुथल चल रहे थे, जो इतिहास के पन्नों में आज भी दर्ज हैं. इनमें एक वाक्या था कि जोधपुर के तत्कालीन महाराजा हनवंत सिंह भारत की बजाय पाकिस्तान में मिलना चाहते थे. इस फैसले ने पूरे मारवाड़ की जनता ही नहीं देश के राजनीतिकों को चिंता में डाल दिया था.

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हालांकि, जोधपुर के इतिहासकार मानते हैं कि हनवंत सिंह एक महाराजा होने के साथ ही एक राजनीतिज्ञ भी थे. उनका लक्ष्य था कि जोधपुर को भारत में विशेष दर्जा मिले, इसके लिए उन्होंने कई मांगे रखीं थी. जेएनवीयू के इतिहास विभाग के आचार्य डॉ. दिनेश राठी बताते हैं कि महाराज उस समय के विलय के निमयों पर दबाव बनाना चाहते थे. ये उनकी कूटनीति रही होगी. अंत में उन्होंने भारत में ही विलय होना स्वीकार किया था. इसके साथ ही एक एक बात ये भी सामने आती है कि आजादी से ठीक पहले जून 1947 में उनके पिता महाराज उम्मेद सिंह की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी. वे भारत में ही रहने का निर्णय ले चुके थे. ऐसे में हनवंत सिंह सिर्फ अपनी रियासत के लिए विशेष प्रावधान चाहते थे, इसलिए ऐसी बात कही गई थी.

फ्रीडम ऐट मिड नाइट में दर्ज वाक्या : तत्कालीन समय के पत्रकार लैरी कॉलिंस व लैपियर की लिखी किताब फ्रिडम एट मिड नाइट के हिंदी अनुवाद के पेज नंबर 171 व 172 में हनवंत सिंह के पाकिस्तान में जाने का वर्णन है. इसमें बताया गया है कि महाराजा उम्मेदसिंह के बाद जोधपुर की कमान हनवंत सिंह को सौंपी गई थी. उस समय बीकानेर, जैसलमेर रियासत भोपाल नवाब के संपर्क में थे. नवाब के सलाहकार सर जफरउल्लाह खान ने हनवंत सिंह से मुलाकात कर पाकिस्तान में शामिल होने की बात कही. साथ ही यह भी कहा कि अगर आप आते हैं तो जिन्ना आपकी सभी शर्तें मानने के लिए खाली पेपर पर हस्ताक्षकर देने को तैयार हैं.

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उनकी जिन्ना से मुलकात दिल्ली में हुई थी, लेकिन उसी दिन इंपिरियल होटल (History of Maharaja Hanwant Singh of Jodhpur) में सरदार पटेल के विश्वस्त वीपी मेनन भी महारजा हनवंत सिंह से मिले. मेनन ने माउंटबेटन को हनवंत सिंह से मिलने के लिए तैयार किया. माउंट बेटन ने महाराजा हनवंत सिंह से बात की, उन्हें उनके पिता व सरदार पटेल के संबंधों के बारे में बताया. इस पर महाराज हनवंत सिंह भारत में विलय होने के लिए तैयार हो गए. इसके बाद माउंटबेटन वहां से निकल गए. कमरे में मेनन व हनवंत सिंह अकेले थे. हस्ताक्षर करने के लिए महाराजा ने जैसे ही पेन निकाला वो खोलते ही गन बन गया, जो उन्होंने मेनन पर तान दी. इस दौरान माउंटबेटन वापस आए और उन्होंने गन छीन ली. पेन रूपी गन बाद में माउंटबेटन अपने साथ ले गए थे, जिसे उन्होंने एक संग्रालय को दे दी थी.

विशेष दर्जा, रियायतें चाहते थे महाराज : जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष रहे प्रो जहूर मोहम्मद के अनुसार चतुर राजनीतिज्ञ होने से महाराज हनवंत सिंह विशेष दर्जा चाहते थे. इसकी वजह यह थी कि भारत सरकार ने ही उस समय कहा था कि जिस रियासत की 10 लाख जनसंख्या हो तो वे अलग यूनिट बन सकते हैं. यानी एक इकाई के रूप में रह सकते हैं. ऐसे में मारवाड़ की जनसंख्या थी तो हनवंत सिंह ने ज्यादा से ज्यादा फायदा लेने के लिए पाकिस्तान में शामिल होने का दिखावटी प्रयास किया. जबकि उनके पिता और वे स्वयं यह मन बना चुके थे कि हमें भारत में ही रहना है.

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प्रो जहूर मोहम्मद बताते हैं कि पाकिस्तान में शामिल होने की बात सिर्फ उस समय के लोगों के लिखी (Rajasthan Integration Day) किताबों में है, राज परिवार व अन्य के प्रमाण नहीं हैं. प्रो एसपी व्यास कहते हैं कि चाहे वीपी मेनन की किताब इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट हो या लैपियर की किताब फ्रिडम ऐट मिडनाइट, सभी में यह प्रयास नजर आता है कि उन्होंने महाराजा को भारत में मिलने के लिए मनाया था. जबकि वे सिर्फ जोधपुर के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए यह सबकुछ कर रहे थे.

मेनन ने कहा था कि धोखा खा जाएंगे जिन्ना से : महाराजा हनवंत सिंह के सलाहकार व जोधपुर रियासत के सबसे बड़े अधिकारी औंकार सिंह बाबरा ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि मेनन भी महाराजा हनवंत सिंह की विशेष शर्तें मानने को तैयार थे. मेनन की किताब इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट के पेज 80 पर उन्होंने ही लिखा है कि महाराज ने जो रियासतें बताई थी, उनको लेकर मेनन ने कहा था कि अगर आप सिर्फ हस्ताक्षर से खुश हैं तो मुझे कोई परेशानी नहीं है. लेकिन जो आप चाहते हैं वे असंभव है.

महाराजा ने कहा कि जिन्ना खाली पेपर दे रहे हैं. इस पर मेनन ने कहा कि आप धोखा खा जाएंगे. इस पर महाराजा हनवंत सिंह और जैसलमेर महाराजकुमार तीन दिन के लिए जोधपुर आए. उस समय हिंदू रियासत के मुस्लिम देश में शामिल होने पर भविष्य की परेशानियों पर चर्चा हुई. तीन बाद 11 अगस्त 1947 को दिल्ली में हनवंत सिंह ने भारत में विलय पर हस्ताक्षर कर दिए.

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