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...तो क्या केवल जिताऊ चेहरों पर दांव खेलेगी कांग्रेस, टिकट का यह फॉर्मूला कइयों का उड़ाएगा चैन

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Published : Apr 25, 2023, 6:27 PM IST

Updated : Apr 25, 2023, 6:39 PM IST

Congress Politics in Rajasthan
जिताऊ चेहरे पर दांव खेलेगी कांग्रेस

राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होना है. इस चुनाव में सरकार को रिपीट कराने के लिए सीएम अशोक गहलोत हर पहलू पर बारीकी से नजर बनाए हुए हैं. इस बीच पार्टी के स्तर पर किए जा रहे सर्वे में केवल उन्हीं चेहरों पर फोकस किया जा रहा है, जो जीत दिला सकते हैं.

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जयपुर. राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच राजनीतिक उठापटक सरकार के सवा 4 साल से ज्यादा का समय गुजरने के बाद भी जारी है. वहीं, दूसरी तरफ सीएम अशोक गहलोत इस कवायद में जुट गए हैं कि कैसे सरकार को रिपीट किया जाए. हालात यह हैं कि अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सचिन पायलट की ओर से किए जा रहे जुबानी हमलों का जवाब न देते हुए अपनी योजनाओं के सहारे सरकार रिपीट करवाने की बात कहते नजर आ रहे हैं.

अब चुनावी साल आ गया है तो यह भी साफ है कि योजनाओं के साथ ही कांग्रेस पार्टी को योग्य उम्मीदवार भी चाहिए, जो चुनाव में जीत दिला सकें. साथ ही उम्मीदवार भी ऐसे जो एंटी इनकंबेंसी से पार पाते हुए जीत दर्ज कर सकें. ऐसे में कांग्रेस पार्टी एक के बाद एक सर्वे करवाते हुए यह पता लगा रही है कि कांग्रेस का कौन सा नेता चुनाव जीतने में सक्षम है और कौन सा नहीं. लगातार चल रहे सर्वे के आधार पर यह संकेत मिल रहे हैं कि अगर जिताऊ नहीं हुआ तो कांग्रेस पार्टी जीते हुए विधायकों और मंत्रियों के टिकट काटने में गुरेज नहीं करेगी. इसके साथ ही जिताऊ फॉर्मूले में फीट होने पर चुनाव जीतने के लिए वह उन बागियों को भी मैदान में उतारने से नहीं हिचकिचाएगी, जिनकी बगावत के चलते 2018 के विधानसभा चुनावों में पार्टी प्रत्याशियों को हार मिली थी.

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पार्टी जिताऊ को दे रही प्राथमिकताः सूत्रों की मानें तो बागियों को टिकट देने में भी पार्टी जिताऊ को ही प्राथमिकता दे रही है. अगर किसी निर्दलीय या बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए नेता की हालत उसके विधानसभा में खराब है तो उसका टिकट पार्टी काटने में एक पल भी नहीं लगाएगी. भले ही इन नेताओ ने सरकार बचाने में कितना भी योगदान दिया हो. आपको बता दें कि निर्दलीय और बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए सभी 19 विधायकों को हाल ही में विधायकों के वन टू वन फीडबैक में भी बुलाया गया था, जो साफ संकेत है कि इन विधायकों को टिकट देने का कांग्रेस मानस बना रही है. बशर्ते कि वह फिर से और कांग्रेस के टिकट पर जीत दर्ज करने में सक्षम हों.

जीतने में सक्षम तो ही टिकटः राजस्थान में 2018 में कांग्रेस पार्टी सत्ता में आई, लेकिन चुनाव में कांग्रेस बहुमत के आंकड़े 101 तक ही पहुंची थी. ऐसे में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पहले बसपा के टिकट पर जीत कर आए 6 विधायकों को कांग्रेस पार्टी में शामिल करवाकर अपने बहुमत के आंकड़े को बढ़ाया. इसके बाद उन्होंने 13 निर्दलीय विधायकों को अपने साथ जोड़ते हुए संख्या बल को बहुमत के आंकड़े से कहीं आगे पहुंचा दिया. भले ही यह 19 विधायक कांग्रेस के ही प्रत्याशियों को चुनाव में हराकर विधानसभा क्यों न पहुंचे हों ?. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें इतनी ताकत दी कि वह अपने क्षेत्र में कांग्रेस के नेताओं और प्रत्याशियों से भी मजबूत हो गए. लेकिन इस मजबूती को अब तभी बरकरार रखा जा रहा है, ताकि पार्टी को जीत दिलाने में सक्षम हों, अन्यथा इन जीते हुए निर्दलीय या बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों के क्षेत्र में फिर से कांग्रेस के नेता को मजबूत किया जा रहा है.

विश्वसनीयता और जिताऊ के आधार पर ही टिकटः सरकार को समर्थन दे रहे 13 निर्दलीय विधायकों में से ज्यादातर तो कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं, जो पहले कई बार कांग्रेस के टिकट पर विधायक और मंत्री रह चुके हैं. इनमें बाबूलाल नागर, महादेव खंडेला और संयम लोढ़ा जैसे निर्दलीय विधायक कांग्रेस के टिकट पर पहले कई बार विधायक रह चुके हैं. वहीं, लक्ष्मण मीणा, बलजीत यादव, कांति प्रसाद मीणा, रामकेश मीणा, आलोक बेनीवाल, राजकुमार गौड़, रमिला खड़िया कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं. वहीं, बसपा से कांग्रेस में आए 6 विधायकों में जोगेंन्दर सिंह अवाना, दीपचंद्र खैरिया, लाखन मीणा, वाजिब अली और राजेद्र गुढ़ा भी कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं. निर्दलीयों में से कांग्रेस जिनको टिकट देने का मानस बना चुकी है, उनके पदों के हिसाब से माना जा रहा है कि टिकट मिलना तय है. लेकिन बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायकों को भले ही मंत्री पद या राजनीतिक नियुक्तियां दी गई हों, उन्हें विश्वसनीयता के आधार पर ही टिकट मिलेगा.

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इन 6 निर्दलीयों का टिकट लगभग तयः निर्दलीयों ने चुनाव जीतकर गहलोत सरकार का साथ दिया और सरकार बचाने में भी सहायता की. जिन नेताओं का टिकट लगभग पक्का है, उनके नाम भी लगभग साफ हैं, क्योंकि सरकार बचाने में सहायता करने पर इन निर्दलीयों को ताकत तो दी ही, लेकिन इनमें से कुछ निर्दलीयों को पद भी दिए. ऐसे में जिन निर्दलीयों को पद मिले हैं, उनके टिकट भी लगभग तय हैं, बाकी निर्दलीयों का जिताऊ और टिकाऊ होना मायने रखेगा. जिन निर्दलीय विधायकों को सरकार में भागीदारी मिली हुई है, उनमें रामकेश मीणा, बाबूलाल नागर और संयम लोढ़ा को तो मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना सलाहकार बनाया है. वहीं, महादेव सिंह खंडेला किसान आयोग का चैयरमैन, लक्ष्मण मीणा एसटी आयोग का चेयरमैन और रमिला खड़िया को एसटी आयोग में उपाध्यक्ष बनाकर संकेत दे दिए हैं कि इन 6 निर्दलीय विधायकों के टिकट पक्के हैं. इसके अलावा बचे निर्दलीय विधायक भले ही अपने टिकट तय मानकर चल रहे हों, लेकिन उनके टिकट पर संकट हो सकता है.

उधर सरकार को समर्थन देने वाले बसपा से कांग्रेस में आए 6 विधायकों में से 1 राजेन्द्र गुढ़ा को मंत्री तो लाखन मीणा डांग विकास बोर्ड का चेयरमैन और जोगेंद्र सिंह अवाना देवनारायण बोर्ड का चैयरमैन बनाया है. वहीं, वाजिब अली राज्य खाद्य आयोग का चेयरमैन, दीपचंद्र खैरिया को राज्य किसान आयोग का उपाध्यक्ष और संदीप यादव को भिवाड़ी शहरी विकास बोर्ड का चैयरमैन बनाया है. मतलब साफ है कि बसपा से कांग्रेस में आए विधायकों को सरकार ने पद दिए हैं, लेकिन इन विधायकों को टिकट मिलेंगे या नहीं, यह उनकी विश्वसनीयता पर निर्भर करेगा. क्योंकि मंत्री राजेंद्र गुढ़ा अब पूरी तरीके से पायलट कैंप में जा चुके हैं तो जोगिंदर अवाना को छोड़कर बाकी विधायक भी ढुलमुल रवैया दिखाते रहे हैं. ऐसे में इनमें से किसे टिकट मिलेगा, ये आने वाला समय ही बताएगा.

Last Updated :Apr 25, 2023, 6:39 PM IST
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