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Rajasthan Assembly Election : दो बार विधायकों ने दिया दगा, फिर भी सियासी जमीन पर खड़ी है बसपा, इस बार ठोक-बजाकर देगी टिकट

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Published : Jul 29, 2023, 7:09 AM IST

Bahujan Samaj Party in Rajasthan
Bahujan Samaj Party in Rajasthan

राजस्थान विधानसभा चुनाव में सियासी मैदान पर जीत का परचम लहराने के लिए भाजपा-कांग्रेस जहां रणनीति बना रही हैं, वहीं राजस्थान में पिछले 25 साल से सियासी जमीन पर पांव टिकाए खड़ी बसपा ने भी चुनावी समर में फिर से उतरने का मन बना लिया है. राजस्थान के सियासी इतिहास में दो बार विधायकों के साथ छोड़ने के बाद भी बसपा का वोट बैंक अब भी बरकरार है.

राजस्थान बसपा अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा

जयपुर. राजस्थान में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है. भाजपा की तरफ से जहां खुद पीएम नरेंद्र मोदी ने कमान अपने हाथ ले रखी है. वहीं, सीएम अशोक गहलोत योजनाओं के प्रचार और काम की बदौलत सरकार के रिपीट होने का दावा कर रहे हैं. राजस्थान में अब तक सत्ता भाजपा और कांग्रेस के इर्द-गीर्द ही रही है, लेकिन इन दोनों पार्टियों के बीच बहुजन समाज पार्टी ही अकेली ऐसी पार्टी है, जो 1998 से लगातार सीटें जीत रही है. भले ही बसपा के 6 विधायकों को दो बार तोड़कर कांग्रेस सरकार में शामिल कर दिया गया हो, लेकिन पार्टी के वोट बैंक में कोई कमी नहीं आई है.

2 से 6 सीट जीत तक पहुंची बसपाः 1998 में राजस्थान में बसपा ने पहली बार 2 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी. साल 2003 में भी बसपा के दो विधायक विधानसभा में पहुंचे. वहीं, साल 2008 में बसपा ने राजस्थान में जब 6 विधानसभा सीट पर जीत दर्ज की तो राजस्थान में पार्टी के भविष्य को लेकर कई तरह की चर्चा शुरू हो गई थी, लेकिन पार्टी की इस उम्मीदों को जल्द बड़ा झटका लगा.

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बसपा के टिकट पर चुनाव जीते सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए. इससे एक बार लगा कि जिस बसपा का राजस्थान में सूर्योदय हो रहा है, उसे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अस्त कर दिया. इन कयासों के बीच साल 2013 के चुनाव में चली मोदी लहर में जहां कांग्रेस पार्टी 21 सीटों पर सिमट गई, उस समय भी बसपा 3 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही. ऐसे में मोदी लहर में भी बहुजन समाज पार्टी ने राजस्थान में अपनी जमीन बनाए रखी. इसी का नतीजा था कि साल 2018 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर फिर से 6 विधायक बने, लेकिन इस बार भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बसपा के सभी 6 विधायकों का कांग्रेस पार्टी में विलय कर बसपा को झटका दे दिया. अब एक बार फिर राजस्थान में विधानसभा चुनाव सामने हैं और बहुजन समाज पार्टी फिर अपने वोट बैंक के आसरे चुनाव में उतरने की तैयारी में है.

Bahujan Samaj Party in Rajasthan
राजस्थान में बसपा की स्थिति

बसपा ने बनाई गुढ़ा इनसे दूरीः साल 2008 में पहली बार बसपा के जब 6 विधायक चुनाव जीते तो सभी ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली. 2013 में बसपा ने इन सभी 6 विधायकों से दूरी बनाई और किसी को टिकट नहीं दिया, लेकिन साल 2018 में बसपा ने राजेंद्र गुढ़ा पर फिर भरोसा कर उन्हें टिकट दे दिया. राजेंद्र गुढ़ा इस बार भी बसपा के सभी 6 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए. अब बहुजन समाज पार्टी ने राजस्थान में यह तय कर लिया है कि वह किसी उस नेता को टिकट नहीं देगी, जिसने विधायक बनने के बाद बसपा का दामन छोड़ कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. यही कारण है कि पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि भले ही राजेंद्र गुढ़ा कि अब कांग्रेस पार्टी से दूरियां हो गई हो, लेकिन वह गुढ़ा समेत बसपा छोड़कर जाने वाले किसी विधायक को टिकट नहीं देगी.

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बसपा ने घोषित किए तीन उम्मीदवारः राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस अब भी योग्य प्रत्याशियों की तलाश में हैं और एक के बाद एक सर्वे करवाए जा रहे हैं. वहीं, दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी ने अभी से प्रत्याशियों की घोषणा शुरू कर दी है. बहुजन समाज पार्टी ने राजस्थान में भरतपुर की नगर और नदबई तथा धौलपुर जिले की धौलपुर विधानसभा में प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं. इनमें से भी नगर और नदबई वही विधानसभा है, जहां वर्तमान विधायक बसपा की टिकट पर चुनाव जीतकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे. ऐसे में बहुजन समाज पार्टी ने इन विधानसभा में टिकट घोषित करके यह साफ कर दिया है कि वह 2018 में बसपा के टिकट पर जीते किसी प्रत्याशी को टिकट नहीं देगी.

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सीएम अशोक गहलोत के साथ बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए विधायक

20 साल में 13 ने छोड़ी बसपाः 1998 में बहुजन समाज पार्टी ने राजस्थान में अपना खाता खोला और बानसूर से जगत सिंह दायमा और नगर से माहिर आजाद विधायक बने. साल 2003 में बांदीकुई से मुरारी लाल मीणा और करौली से सुरेश मीणा बसपा के टिकट पर चुनाव जीते. 2008 में बसपा के छह विधायक चुनाव जीते, जिनमें नवलगढ़ से राजकुमार शर्मा, उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा, बाड़ी से गिर्राज सिंह मलिंगा, सपोटरा से रमेश मीणा ,दौसा से मुरारी लाल मीणा और गंगापुर सिटी से रामकेश मीणा शामिल रहे.

इन सभी ने बसपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था. 2013 में बसपा के टिकट पर सादुलपुर से मनोज कुमार न्यांगली, धौलपुर से बी एल कुशवाह और खेतड़ी से पूरणमल सैनी के रूप में तीन विधायक चुनाव जीते. बीएल कुशवाह के अपराधिक मामले में गिरफ्तार होने के बाद उनकी सीट पर उपचुनाव हुआ, जिसमें उनकी पत्नी शोभा रानी कुशवाहा ने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बन गई.

2018 में ये बने विधायक और छोड़ी बसपाः 2018 में बसपा के टिकट पर उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढ़ा, किशनगढ़ बास से दीपचंद खेरिया, नगर से वाजिब अली, नदबई से जोगिंदर सिंह अवाना, करौली से लाखन मीणा, तिजारा से संदीप यादव विधायक बने. इन सभी 6 विधायकों ने बसपा छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया. ऐसे में अब तक कांग्रेस के बने 19 विधायकों में से 12 विधायकों ने तो विधायक रहते दूसरी पार्टी में विलय कर लिया. वहीं, एक विधायक ने अगले चुनाव में पार्टी बदली, इस तरह से 13 विधायकों ने बसपा को छोड़ कांग्रेस की तरफ अपना रुख किया है. इसके बाद भी बसपा मैदान में खड़ी है और इस बार फिर चुनाव में जीत का ख्वाब भी पाल रही है. साथ ही यह भी तय कर चुकी है कि किसी भी बसपा छोड़ भागने वाले विधायक को अब पार्टी टिकट नहीं देगी.

यहां है बसपा की पकड़ः बहुजन समाज पार्टी की राजस्थान में अगर सबसे मजबूत पकड़ किसी क्षेत्र में है तो वह है पूर्वी राजस्थान है. पूर्वी राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, अलवर, सवाई माधोपुर और करौली में बहुजन समाज पार्टी के विधायक चुनाव जीतकर आते रहे हैं. वहीं, झुंझुनू और चूरु भी वह जिले हैं, जहां से बसपा के विधायक विधानसभा पहुंचते हैं.

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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा

डोटासरा बोले- चुनाव तक कई बार बदलेगी टिकटः बहुजन समाज पार्टी की ओर से 3 विधानसभा सीटों पर अभी से उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गई है. इसे लेकर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने तंज कसा और कहा कि हर पार्टी को चुनाव लड़ने का अधिकार है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी है, जिनके लेटर पैड में अभी चुनाव तक पता नहीं कितनी बार नाम बदलेंगे. साथ ही कहा कि नामांकन के आखिरी दिन तक ही पता लगेगा कि बसपा का उम्मीदवार कौन है?.

वहीं, बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने कहा कि पिछली बार भी जब 2008 में कांग्रेस ने बसपा के 6 विधायक तोड़े थे, उसके बाद 2013 में हुए चुनाव में कांग्रेस की जनता ने सत्ता से रवानगी करवा दी थी. इस बार भी जब कांग्रेस ने वही काम दोहराया है, तो 2023 में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को सत्ता से विदाई के लिए तैयार रहना चाहिए.

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