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जवाबदेही कानून के लिए जवाब मांगने एकत्रित हुए सामाजिक संगठन, कहा सरकार किसके दबाव में जवाबदेही से भाग रही

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Published : Jul 7, 2023, 9:31 AM IST

Updated : Jul 7, 2023, 1:20 PM IST

जवाबदेही कानून की मांग को लेकर गुरुवार से सामाजिक संगठन ने फिर से शहीद स्मारक पर धरना शुरू किया है. सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे और अरुणा रॉय ने इस धरने के माध्यम से सरकार से आखिरी विधानसभा सत्र में जवाबदेही कानून लाने की मांग की है.

जवाबदेही कानून के लिए जवाब मांगने एकत्रित हुए सामाजिक संगठन
जवाबदेही कानून के लिए जवाब मांगने एकत्रित हुए सामाजिक संगठन

जवाबदेही कानून के लिए जवाब मांगने एकत्रित हुए सामाजिक संगठन

जयपुर. प्रदेश में जवाबदेही कानून की मांग को लेकर एक बार फिर सामाजिक संगठन सड़कों पर है. पहले पार्टी घोषणा पत्र और फिर तीन बार बजट घोषणा में जवाबदेही कानून को लाने की घोषणा करने के बाद भी बिल विधानसभा में पेश नहीं करने पर अब सामाजिक संगठनों में रोष बढ़ रहा है. सामाजिक संगठनों की नाराजगी है कि सरकार ने जन कल्याणकारी योजनाओं के जरिए आमजन को राहत देने की बात तो करते हैं लेकिन जब तक अधिकारी और कर्मचारी की जवाबदेही लागू नहीं होगी, तब तक उसका लाभ आमजन को मिलना मुश्किल है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में 94 लाख से ज्यादा पेंशनधारी हैं, जिनमें से 9 लाख ऐसे पेंशनधारी हैं जिनको जिन्दा होने बावजूद मृत मानते हुए योजना से बाहर कर दिया गया है. हजारों पीड़ितों के पास सिलिकोसिस का सर्टिफिकेट है, लेकिन योजनाओं का लाभ नहीं. ऐसे कई उदाहरण है जिनके लिए जवाबदेही की मांग हम कर रहे हैं.

जवाबदेही कानून पर सरकार जवाब दे : सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान राजस्थान लंबे समय से राज्य में जवाबदेही कानून लाए जाने के लिए संघर्षरत हैं. अभियान की ओर से 2015 में पहली जवाबदेही यात्रा राज्य के सभी जिलों में जवाबदेही कानून को लेकर निकाली गई. उसके बाद लगातार धरने और उस समय की भारतीय जनता पार्टी की सरकार और बाद में कांग्रेस सरकार से मांग करते रहे. दूसरी जवाबदेही यात्रा के कई फेज हुए और उसी के साथ कई मुद्दों पर लोगों की समस्याओं पर शिकायत लिखी गई. उनके परिणाम देखने से पता चलता है कि जवाबदेही कानून की कितनी आवश्यकता है, गुरुवार से राजधानी जयपुर के शहीद स्मारक पर फिर से एकत्रित हुए हैं और सरकार से मांग कर रहे हैं कि जवाबदेही कानून की बात सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र और सरकार बनने के बाद तीन बार बजट घोषणा में की, लेकिन सरकार के पौने पांच साल गुजर जाने के बाद भी जवाबदेही पर कोई जवाब नहीं मिल रहा हैं. निखिल डे ने कहा कि 14 जुलाई से विधानसभा सत्र फिर से शुरू हो रहा है, ये सरकार का आखिरी सत्र है, सरकार से मांग से है कि इस बार तो सरकार जवाबदेही कानून सदन में लेकर आए. निखिल ने कहा आखिर सरकार जन सोशल सिक्योरिटी की बात देश में लागु करने की करती है तो फिर प्रदेश में जवाबदेही कानून लाने से क्यों बच रही है, आखिर सरकार किसके दबाव में है.

9 लाख पेंशनधार योजना से वंचित : सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि लंबे समय से हम लोग जवाबदेही कानून की मांग कर रहे हैं और हम इसे छोड़ने वाले नहीं है. हम ये कानून लेकर रहेंगे. उन्होंने कहा कि हम इस कानून की मांग क्यों कर रहे हैं जब हम सिलिकोसिस जैसी बीमारी से पीड़ित लोगों को देखते हैं तो हम भी बहुत भावुक हो जाते हैं, क्योंकि व्यवस्था में बैठे लोग ऐसे संवेदनशील विषय पर भी जवाबदेही से काम नहीं करते हैं. उन्होंने कहा कि सिलिकोसिस से पीड़ित ही नहीं बल्कि पेंशनधारकों को देखें तो 94 लाख है जिनमें से 9 लाख उन लोगों को इस योजना से बाहर कर दिया जो पहले इस योजना का लाभ ले रहे थे. ये सभी आज दर-दर भटक रहे हैं क्योंकि जवाबदेही की कोई व्यवस्था सरकार में नहीं है. इसलिए मुद्दा चाहे जो भी लेकिन जवाबदेही बहुत आवश्यक है.

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उनका कहना है कि राजस्थान सरकार ने राज्य में सिलिकोसिस नीति 2019 में बनाई जिसे आज तक ठीक से लागू नहीं किया गया है. राज्य में सिलिकोसिस नीति बनने के बाद भी सिलिकोसिस पीड़ितों को सहायता राशि के लिए भटकना पड़ रहा है. साथ ही सिलिकोसिस नीति में इनके लिए सहायता राशि सामाजिक सुरक्षा पेंशन, खाद्य सुरक्षा और उनके बच्चों को पढ़ाई के लिए पालनहार सहायता का प्रावधान किए जाने के बाद भी समय पर यह सब सहायता नहीं मिल पा रही है. जबकि सिलिकोसिस नीति में कहा गया है कि तकनीकी (डिजिटल) सहायता से तुरंत सहायता दिए जाने की बात कही गई है. ऐसे में लगता है कि सिलिकोसिस नीति बनाने के बाद भी सरकार किसी की इस सम्बन्ध में जवाबदेही अभी तक तय नहीं कर पाई.

शहीद स्मारक पर हुई जनसुनवाई : सामाजिक संगठनों ने राजधानी जयपुर में पुलिस आयुक्त कार्यालय के सामने शहीद स्मारक पर जवाबदेही धरने में सिलिकोसिस से संबंधित मुद्दों पर जन सुनवाई हुई, जिसमें उदयपुर, सिरोही, डुंगरपुर, बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, अजमेर, करौली, नागौर, बूंदी, जोधपुर, जयपुर, दौसा, भरतपुर, धौलपुर आदि जिलों से सिलिकॉसिस पीड़ित एवं उनके परिजन शामिल हुए. सिलिकोसिस एक ऐसी बीमारी है, जिसका कोई इलाज नहीं है यह खान, पत्थर घड़ाई, मिनरल्स ग्राइंडिंग, पत्थर क्रेसिंग सहित अन्य में काम करने वाले श्रमिकों को होती है. बता दें कि सितंबर 2019 में राजस्थान सरकार सिलिकोसिस पीड़ितों के लिए एक नीति लेकर आई थी. जिसमें सहायता के अलावा रेगुलेशन और प्रीवेंशन पर जोर दिया गया. लेकिन रेगुलेशन और प्रीवेंशन तो दूर आज तक लोग सालों से सहायता के लिए ही भटक रहे हैं. इसी तरह अवैध खनन से प्रभावित विभिन्न गांवों के लोगों ने हिस्सा लिया और अपनी पीड़ा बयां की.

Last Updated :Jul 7, 2023, 1:20 PM IST
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