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19 जनवरी से पहले नेता प्रतिपक्ष के नाम का ऐलान, कांग्रेस में जारी है कड़ी मशक्कत

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jan 13, 2024, 1:22 PM IST

LOP Selection in Rajasthan, कांग्रेस आलाकमान के लिए राजस्थान एक बार फिर चुनौती बनकर सामने आया है. विधानसभा चुनाव में हार का मुंह देखने के बावजूद पार्टी में चेहरों की लड़ाई अंदरुनी रूप से जारी है, जिसका परिणाम नतीजे के सवा महीने बाद तक पार्टी अपने विधायक दल के नेता का चुनाव नहीं कर पाई है.

LOP Selection in Rajasthan
LOP Selection in Rajasthan

जयपुर. राजस्थान में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस विधानसभा में सरकार के लिए चुनौती पेश करेगी, लेकिन कांग्रेस विधायक दल के नेतृत्व को लेकर संभावित नाम की फेहरिस्त लगातार घटती बढ़ती रही है. अब 19 जनवरी को विधानसभा सत्र के पहले माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व राजस्थान में विधायक दल के नेता का नाम तय कर लेगा.

हालांकि, पार्टी के लिए जातिगत समीकरण और कुशल नेतृत्व के अलावा भी कई चुनौतियां हैं, जिस तरह से बीते 6 सालों में राजस्थान में गुटबाजी चरम पर रही है. उसके बाद माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व आम राय के आधार पर ही नेता प्रतिपक्ष का चुनाव करेगा. इन चेहरों में जातीय और क्षेत्रीय आधार के साथ-साथ अनुभव के लिहाज से कई बड़े नाम रेस में है, जो कांग्रेस के विधायक दल के नेता के रूप में पार्टी की रीति-नीति को 5 साल तक सरकार के सामने चुनौती बनाकर पेश करेंगे.

इन नाम को माना जा रहा है कतार में : राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष को लेकर कई नाम पर मंथन किया जा रहा है. फिलहाल चर्चा में शामिल नाम में ओबीसी और जाट वर्ग को तवज्जो देने के लिहाज से प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और बायतु विधायक और पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी का नाम आगे है. हालांकि, सचिन पायलट को भी रेस में माना जा रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ का जिम्मा मिलने के बाद और संगठन में प्रमुखता मिलने के बाद माना जा रहा है कि प्रदेश की सियासत में प्रत्यक्ष रूप से पायलट का दखल नहीं होगा. वहीं, दलित चेहरे के रूप में टीकाराम जूली भी रेस में बने हुए हैं. इसी तरह आदिवासी चेहरे के रूप में महेंद्रजीत मालवीय के ऊपर मुरारी लाल मीणा का दावा अहम समझा जा रहा है. अनुभव के लिहाज से राजेंद्र पारीक या हरिमोहन शर्मा को भी कमान सौंपी जा सकती है.

पढ़ें : सीपी जोशी ने कांग्रेस पर साधा निशाना, बोले - राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में जाएं तो सभी पाप धूल जाएंगे

डोटासरा के नेता प्रतिपक्ष बनने पर बदलेगा प्रदेशाध्यक्ष : लोकसभा चुनाव से पहले नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से खासा अहम होंगे. ऐसे में अगर अनुभव और तेज तर्रार छवि के कारण पार्टी के मुखिया गोविंद सिंह डोटासरा को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, तो प्रदेश अध्यक्ष बदलकर नया चेहरा सामने लाना होगा. कांग्रेस की परिपाटी के मुताबिक फिर ऐसी स्थिति में किसी ब्राह्मण चेहरे पर पार्टी दाव खेल सकती है.

ऐसी स्थिति में राजेंद्र पारीक और हरिमोहन शर्मा को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है. वहीं, गुजरात के बाद की स्थिति को देखते हुए रघु शर्मा का दावा कमजोर है, तो महेश जोशी भी टिकट नहीं मिलने के बाद समझा जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व की नजर से बाहर है. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष को लेकर हालांकि अशोक गहलोत गुट और सचिन पायलट के खेमे में खींचतान देखने को मिलेगी.

पायलट और गहलोत गुट को भी करना होगा संतुष्ट : दो अलग-अलग खेमों में बंटी राजस्थान कांग्रेस 2013 और 2018 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी. जाहिर तौर पर इसके लिए पार्टी के अंदर गुटबाजी को बड़ा कारण माना जा रहा है. हैरत की बात यह है कि विधानसभा चुनाव में शिकस्त का सामना करने के बाद भी इस गुटबाजी पर विराम नहीं लग सका है. कोल्ड वार की तरह अप्रत्याशित रूप से इन खेमों के बयान सामने आते रहे हैं. हाल में सचिन पायलट ने जयपुर वापसी पर समर्थकों के बीच अपनी मौजूदगी का एहसास दिल्ली तक करवाने की कोशिश की तो अशोक गहलोत और उनके खेमे के नेता लगातार दिल्ली के संपर्क में है. यही वजह है कि विधायक दल का नेता पार्टी की ओर से अब तक नहीं चुना जा सका.

पहले विधानसभा सत्र की रणनीति तैयार : कांग्रेस ने विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को घेरने के लिए अनुभवी विधायकों के दम पर असरकारक रणनीति तैयार कर ली है. पहले ही सत्र में प्रतिपक्ष के विधायकों के सर्वाधिक प्रश्न लगाए गए हैं. इनमें लोकसभा चुनाव से पहले पिछली सरकार की योजनाओं को मुद्दा बनाया जाएगा. वहीं, ओपीएस, आरजीएचएस, मुख्यमंत्री निशुल्क बिजली योजना, चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यमिक स्कूल, मुख्यमंत्री कामधेनु बीमा योजना सहित कई योजनाओं से जुड़े प्रश्नों के जारी सदन में भजनलाल सरकार को विपक्ष घेरेगा.

सरकार को घेरने के लिए सवाल लगाने वाले विधायकों में पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा भी शामिल हैं. महिलाओं के लिए स्मार्टफोन वितरण को लेकर बामनवास विधायक इंदिरा मीणा ने भी सवाल लगाया है. इसके अलावा सरकार के सामने जल जीवन मिशन, अवैध बजरी खनन, ओपीएस, घरेलु और कृषि उपभोक्ताओं को फ्री बिजली, ERCP, पदोन्नति में आरक्षण से जुड़े सवाल भी परेशानी पैदा करेंगे.

जयपुर. राजस्थान में मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस विधानसभा में सरकार के लिए चुनौती पेश करेगी, लेकिन कांग्रेस विधायक दल के नेतृत्व को लेकर संभावित नाम की फेहरिस्त लगातार घटती बढ़ती रही है. अब 19 जनवरी को विधानसभा सत्र के पहले माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व राजस्थान में विधायक दल के नेता का नाम तय कर लेगा.

हालांकि, पार्टी के लिए जातिगत समीकरण और कुशल नेतृत्व के अलावा भी कई चुनौतियां हैं, जिस तरह से बीते 6 सालों में राजस्थान में गुटबाजी चरम पर रही है. उसके बाद माना जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व आम राय के आधार पर ही नेता प्रतिपक्ष का चुनाव करेगा. इन चेहरों में जातीय और क्षेत्रीय आधार के साथ-साथ अनुभव के लिहाज से कई बड़े नाम रेस में है, जो कांग्रेस के विधायक दल के नेता के रूप में पार्टी की रीति-नीति को 5 साल तक सरकार के सामने चुनौती बनाकर पेश करेंगे.

इन नाम को माना जा रहा है कतार में : राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष को लेकर कई नाम पर मंथन किया जा रहा है. फिलहाल चर्चा में शामिल नाम में ओबीसी और जाट वर्ग को तवज्जो देने के लिहाज से प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और बायतु विधायक और पंजाब के प्रभारी हरीश चौधरी का नाम आगे है. हालांकि, सचिन पायलट को भी रेस में माना जा रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ का जिम्मा मिलने के बाद और संगठन में प्रमुखता मिलने के बाद माना जा रहा है कि प्रदेश की सियासत में प्रत्यक्ष रूप से पायलट का दखल नहीं होगा. वहीं, दलित चेहरे के रूप में टीकाराम जूली भी रेस में बने हुए हैं. इसी तरह आदिवासी चेहरे के रूप में महेंद्रजीत मालवीय के ऊपर मुरारी लाल मीणा का दावा अहम समझा जा रहा है. अनुभव के लिहाज से राजेंद्र पारीक या हरिमोहन शर्मा को भी कमान सौंपी जा सकती है.

पढ़ें : सीपी जोशी ने कांग्रेस पर साधा निशाना, बोले - राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में जाएं तो सभी पाप धूल जाएंगे

डोटासरा के नेता प्रतिपक्ष बनने पर बदलेगा प्रदेशाध्यक्ष : लोकसभा चुनाव से पहले नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस की रणनीति के लिहाज से खासा अहम होंगे. ऐसे में अगर अनुभव और तेज तर्रार छवि के कारण पार्टी के मुखिया गोविंद सिंह डोटासरा को नेता प्रतिपक्ष बनाया जाता है, तो प्रदेश अध्यक्ष बदलकर नया चेहरा सामने लाना होगा. कांग्रेस की परिपाटी के मुताबिक फिर ऐसी स्थिति में किसी ब्राह्मण चेहरे पर पार्टी दाव खेल सकती है.

ऐसी स्थिति में राजेंद्र पारीक और हरिमोहन शर्मा को पार्टी की कमान सौंपी जा सकती है. वहीं, गुजरात के बाद की स्थिति को देखते हुए रघु शर्मा का दावा कमजोर है, तो महेश जोशी भी टिकट नहीं मिलने के बाद समझा जा रहा है कि शीर्ष नेतृत्व की नजर से बाहर है. पार्टी प्रदेशाध्यक्ष को लेकर हालांकि अशोक गहलोत गुट और सचिन पायलट के खेमे में खींचतान देखने को मिलेगी.

पायलट और गहलोत गुट को भी करना होगा संतुष्ट : दो अलग-अलग खेमों में बंटी राजस्थान कांग्रेस 2013 और 2018 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब नहीं हो सकी. जाहिर तौर पर इसके लिए पार्टी के अंदर गुटबाजी को बड़ा कारण माना जा रहा है. हैरत की बात यह है कि विधानसभा चुनाव में शिकस्त का सामना करने के बाद भी इस गुटबाजी पर विराम नहीं लग सका है. कोल्ड वार की तरह अप्रत्याशित रूप से इन खेमों के बयान सामने आते रहे हैं. हाल में सचिन पायलट ने जयपुर वापसी पर समर्थकों के बीच अपनी मौजूदगी का एहसास दिल्ली तक करवाने की कोशिश की तो अशोक गहलोत और उनके खेमे के नेता लगातार दिल्ली के संपर्क में है. यही वजह है कि विधायक दल का नेता पार्टी की ओर से अब तक नहीं चुना जा सका.

पहले विधानसभा सत्र की रणनीति तैयार : कांग्रेस ने विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को घेरने के लिए अनुभवी विधायकों के दम पर असरकारक रणनीति तैयार कर ली है. पहले ही सत्र में प्रतिपक्ष के विधायकों के सर्वाधिक प्रश्न लगाए गए हैं. इनमें लोकसभा चुनाव से पहले पिछली सरकार की योजनाओं को मुद्दा बनाया जाएगा. वहीं, ओपीएस, आरजीएचएस, मुख्यमंत्री निशुल्क बिजली योजना, चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना, महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यमिक स्कूल, मुख्यमंत्री कामधेनु बीमा योजना सहित कई योजनाओं से जुड़े प्रश्नों के जारी सदन में भजनलाल सरकार को विपक्ष घेरेगा.

सरकार को घेरने के लिए सवाल लगाने वाले विधायकों में पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा भी शामिल हैं. महिलाओं के लिए स्मार्टफोन वितरण को लेकर बामनवास विधायक इंदिरा मीणा ने भी सवाल लगाया है. इसके अलावा सरकार के सामने जल जीवन मिशन, अवैध बजरी खनन, ओपीएस, घरेलु और कृषि उपभोक्ताओं को फ्री बिजली, ERCP, पदोन्नति में आरक्षण से जुड़े सवाल भी परेशानी पैदा करेंगे.

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