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Special : राजस्थान में कांग्रेस के जाट नेताओं के लिए 'खतरा' बने बेनीवाल, समझें सियासी समीकरण

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Published : Jan 2, 2023, 7:20 PM IST

Beniwal can harm Congress in Rajasthan
Beniwal can harm Congress in Rajasthan

राजस्थान में अब हनुमान बेनीवाल केवल भाजपा के लिए ही (Beniwal can harm Congress in Rajasthan) नहीं, बल्कि कांग्रेस के लिए भी चुनौती बन गए हैं. बेनीवाल की पार्टी आरएलपी तेजी से अपना विस्तार कर रही है, जिससे कांग्रेस के जाट नेता खासा चिंतित हैं. यही वजह है कि अब सियासी वर्चस्व को बचाने और बनाए रखने के लिए खुले मंच से बयानों के तोप दागे जा रहे हैं.

राजस्थान में आरोप प्रत्यारोप की सियासत

जयपुर. एक वक्त था, जब कांग्रेस को राजस्थान में किसानों की पार्टी (Hanuman Beniwal became threat ) यानी जाट समर्थक दल कहा जाता था. इस जाति समुदाय के कई सियासी दिग्गज और उनके परिवार के लोग भले ही आज भी कांग्रेस से जुड़े हैं, लेकिन मौजूदा हकीकत यह है कि समय के साथ जाटों का सियासी रुझान भी बदला है. वहीं, भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे के समय में गंगाराम चौधरी, किलक परिवार, महरिया परिवार और कर्नल सोनाराम जैसे बड़े जाट नेता कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गए.

हालांकि, मेहरिया परिवार वापस कांग्रेस में लौट आया है. लेकिन इसी बीच हनुमान बेनीवाल और उनकी पार्टी आरएलपी के उदय ने कांग्रेस के जाट नेताओं में खासी हलचल मचा दी है. खास तौर से मारवाड़ की राजनीति में हनुमान बेनीवाल का नागौर से जोधपुर और बाड़मेर तक में आज अच्छी पकड़ बना ली है. जिसके कारण इन क्षेत्रों में कांग्रेस के जाट नेताओं को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

यही कारण है कि हरीश चौधरी और दिव्या मदेरणा जैसे नेता पहले ही लामबंद हो गए हैं, साथ ही ये नेता अब हनुमान बेनीवाल को अपने क्षेत्र में आने से रोकना चाहते हैं. भले ही 2018 के बाद हुए उपचुनाव में (Dilemma of Jat leader of Rajasthan Congress) आरएलपी ने कांग्रेस को फायदा पहुंचाया हो, लेकिन हकीकत यह है कि बेनीवाल की पार्टी अब धीरे-धीरे अपना विस्तार कर रही है. भले ही आएलपी वर्तमान में भाजपा को नुकसान पहुंचाते दिख रही है, लेकिन 2023 में जब मुख्य चुनाव होंगे तब भी क्या आरएलपी से कांग्रेस को फायदा होगा. ये वो मौलिक सवाल है, जो इन दिनों कांग्रेस के जाट नेताओं के दिमाग में चल रहा है. यही कारण है कि हरीश चौधरी और दिव्या मदेरणा लगातार बेनीवाल को उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं.

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कांग्रेस के जाट नेताओं का डर: वहीं, हरीश चौधरी ने खुले मंच से सीएम गहलोत और बेनीवाल के बीच सांठगांठ की बात कहते हुए कई गंभीर आरोप लगाए थे. चौधरी ने कहा था कि सीएम गहलोत बेनीवाल (Jat politics in Rajasthan) की पार्टी की सहायता कर रहे हैं. भले ही आज आरएलपी से कांग्रेस को लाभ हो रहा हो, लेकिन भविष्य में बेनीवाल कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बनेंगे और पार्टी की वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं.

RLP का बढ़ा वोट शेयर: चौधरी के आरोपों इतर यह भी हकीकत है कि जब से बेनीवाल भाजपा से अलग हुए हैं, उनके वोट बैंक में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. बानगी के तौर पर उपचुनाव के नतीजे सामने हैं. जिसमें भाजपा के वोटों में जबरदस्त कमी तो कांग्रेस के वोट शेयर में भी मुख्य चुनाव की तुलना में कमी देखी गई है. हालांकि, सियासी (Hanuman Beniwal became threat) जानकारों की मानें तो आरएलपी के चुनाव लड़ने से यह नुकसान मुख्य चुनाव में कांग्रेस को भी हो सकता है. यही कारण है कि कांग्रेस के प्रमुख जाट नेता हरीश चौधरी अब खुले तौर पर बेनीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिए हैं.

सियासी लाभ पर संशय, समझें समीकरण: राजस्थान में साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी को महज तीन सीटों पर जीत मिली तो कई सीटों पर वो दूसरे व तीसरे नंबर पर रहे. वहीं, भाजपा से गठबंधन कर बेनीवाल नागौर से संसदीय चुनाव जीतने में कामयाब रहे. इसके साथ ही उनके सांसद बनने के बाद खाली हुई खींवसर सीट से भाजपा ने अपना प्रत्याशी भी नहीं दिया. ऐसे में वहां मुख्य टक्कर कांग्रेस और आरएलपी के बीच हुई. जिसमें हनुमान बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल सीट को निकालने में कामयाब रहे.

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इसके बाद हुए किसान आंदोलन से बेनीवाल और भाजपा के बीच दूरियां बननी शुरू हुई और आखिरकार बेनीवाल ने भाजपा से नाता तोड़ लिया. इसके बाद जो उपचुनाव हुए उनमें भाजपा के वोट बैंक पर आरएलपी ने सेंध लगाई. सरदारशहर उपचुनाव में आरएलपी को 46000 वोट पड़े तो वहीं वल्लभनगर में 45000 वोट के साथ वो दूसरे स्थान पर रही. इसके अलावा सुजानगढ़ उपचुनाव में भी आरएलपी को 32000 वोट पड़े थे तो सहाड़ा में 12000 वोटों के साथ बेनीवाल की पार्टी तीसरे स्थान पर रही. ऐसे में साफ है कि कांग्रेस को आरएलपी के चुनाव लड़ने का फायदा तो मिला, लेकिन आने वाले समय में ये फायदा कांग्रेस को भी भारी पड़ सकता है.

आरोप-प्रत्यारोप: जहां कांग्रेस के पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी हनुमान बेनीवाल की पार्टी को खुले मंच से मुख्यमंत्री गहलोत की प्रायोजित पार्टी बताते हैं तो बेनीवाल भी चौधरी पर सीधा हमला कर गहलोत को उनका पॉलिटिकल फादर कहने से नहीं हिचके. बल्कि उन्होंने तो हरीश चौधरी की आगामी सियासी राह को लेकर भविष्यवाणी तक कर दी. बेनीवाल ने कहा कि चौधरी भाजपा के संपर्क में हैं और आगे हो सकता है कि वो भाजपा का दामन थाम लें.

वहीं, दिव्या मदेरणा और हनुमान बेनीवाल के बीच भी बयानबाजी का दौर अपने चरम पर है. दिव्या मदेरणा तो हनुमान बेनीवाल की विधानसभा क्षेत्र खींवसर में जाकर उन्हें चुनौती देती नजर आई. हालांकि, इस बीच (Beniwal can harm Congress in Rajasthan) खींवसर से कांग्रेस के टिकट पर उपचुनाव लड़े हरेंद्र मिर्धा की सोच एकदम पृथक रही है. उन्होंने कहा कि जाट आर्थिक रूप से संपन्न होने के साथ ही सियासी रूप से जागरूक और महत्वाकांक्षी हुए हैं. ऐसे में इतनी बड़ी संख्या वाली जाति हर जगह एक नहीं रह सकती है.

उपचुनाव के नतीजों पर एक नजर

लोकसभाभाजपाकांग्रेसआरएलपी
नागौरप्रत्याशी नहीं 478791 660051
विधानसभा भाजपा कांग्रेस आरएलपी
खींवसर चुनाव 26809 66148 83096
खींवसर उपचुनाव प्रत्याशी नहींं 73605 78235
मंडावा चुनाव 8059978253 प्रत्याशी नहीं
मंडावा उपचुनाव 60492 94196 प्रत्याशी नहीं
सरदारशहर चुनाव 78466 95282 10273
सरदारशहर उपचुनाव 64000 91357 46000
वल्लभनगर चुनाव 4666766302 प्रत्याशी नहीं
वल्लभनगर उपचुनाव 21000 65700 45000
सुजानगढ़ चुनाव 44883 83632 प्रत्याशी नहीं
सुजानगढ़ उपचुनाव 43000 79000 32000
सहाड़ा चुनाव 58414 65429 प्रत्याशी नहीं
सहाड़ा उपचुनाव 5800081000 12000
राजसमंद चुनाव 89709 65086 703
राजसमंद उपचुनाव 74704 69000 1500
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