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CM गहलोत के दिए गए बयान के विरोध में उतरे विभिन्न मेडिकल एसोसिएशन, कहा- अपनी नाकामी छुपा रही सरकार

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Published : Oct 29, 2022, 5:00 PM IST

CM Ashok Gehlot
CM Ashok Gehlot

हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने निजी अस्पतालों को लेकर एक बयान दिया था, अब उस बयान के विरोध में निजी अस्पतालों से जुड़े विभिन्न संगठन विरोध में उतर आए हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन से लेकर प्राइवेट क्लीनिक एंड हॉस्पिटल एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री के इस बयान पर विरोध जताया है.

जयपुर. निजी अस्पतालों को लेकर मुख्यमंत्री के दिए गए बयान के विरोध में विभिन्न मेडिकल एसोसिएशन उतर आए हैं. अशोक गहलोत ने एक बैठक के दौरान कहा था कि निजी अस्पतालों को (CM Gehlot Statement on Private Hospitals) काफी छूट दे रखी है, जिसके बाद निजी अस्पतालों ने प्रदेश में लूट मचा रखी है. सीएम अशोक गहलोत के इस बयान के बाद विभिन्न मेडिकल एसोसिएशन इस बयान का विरोध किया.

मामले को लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बयान जारी किया है, जो पूरी तरह से बेतुका और निराधार है. यह राज्य में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को बनाए रखने में विफलताओं को छिपाने और चुनावी वर्ष में सस्ता प्रचार (Medical Associations Targets Gehlot Government) हासिल करने के उद्देश्य से दिया गया है.

पढ़ें : समीक्षा बैठक में सीएम गहलोत बोले- प्राइवेट अस्पतालों को नहीं देंगे लूट की छूट...परसादी लाल ने कही ये बड़ी बात

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन का कहना है कि राजस्थान में निजी स्वास्थ्य संस्थान बहुत सस्ती दरों पर इलाज कर रहे हैं, लेकिन सरकार अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए निजी स्वास्थ्य प्रदाताओं पर दोष मढ़ रही है. गरीबों को भोजन, पानी, आवास और स्वास्थ्य की मुफ्त सेवाएं प्रदान करना सरकार का कर्तव्य है. आई एसोसिएशन का कहना है कि सरकार अपने सरकारी अस्पतालों का खर्च तो बीमा प्रदाता कंपनियों से निकाल रही है, लेकिन प्रदेश के निजी अस्पतालों को इसी तरह का कोई लाभ नहीं दे रही. राज्य सरकार राजनीतिक लाभ के लिए अनुचित प्रचार और जनता की सहानुभूति ले रही है.

राइट टू हेल्थ की नाकामी छुपा रही सरकार : वहीं, यूनाइटेड प्राइवेट क्लिनिक्स एंड हॉस्पिटल्स एसोसिएशन ऑफ राजस्थान का कहना है कि हाल ही में प्रदेश की गहलोत सरकार राइट टू हेल्थ बिल लेकर आई थी. इस बिल में काफी खामियां थी, जिसके बाद विधानसभा में यह बिल पारित नहीं हो पाया. ऐसे में निजी अस्पतालों से जुड़े संगठनों ने इसका विरोध भी किया था और इसी कारण निजी अस्पतालों पर इस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं.

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