जयपुर. राजस्थान कांग्रेस में एक बार फिर दो वरिष्ठ नेताओं के बीच की लड़ाई सार्वजनिक मंच तक पहुंच आई है. लेकिन इस जुबानी जंग की टाइमिंग मौजूदा कांग्रेस सरकार के लिए आगे मुसीबत बन सकती है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि इसी साल राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और सीएम गहलोत सरेआम मंचों से सरकार रिपीट कराने की बात कह रहे हैं. वहीं, रविवार को राजस्थान कांग्रेस में जारी आरोप-प्रत्यारोप के दौरे के बीच धौलपुर पहुंचे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्य के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके समर्थित विधायकों को आड़े हाथ लिया. इस दौरान सीएम ने 2020 के उस सियासी वाकया का जिक्र किया, जिसके नायक सचिन पायलट थे.
तीन साल बाद फिर वही राग - साल 2020 में सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ मानेसर चले गए थे, जहां उन्होंने गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का काम किया था. लेकिन ऐन वक्त पर प्रियंका गांधी और कांग्रेस के आला नेताओं ने पायलट को समझाया, जिसके बाद वो शांत भी हो गए थे. वहीं, इस वाकया के तीन साल बाद एक बार फिर से इसको लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है, क्योंकि खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक बार फिर धौलपुर में सभा को संबोधित करते हुए मानेसर गए विधायकों का किस्सा छेड़ दिया.
सीएम के निशाने पर पायलट - दरअसल, रविवार को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत धौलपुर के दौरे पर रहे, जहां उन्होंने महंगाई राहत कैंप का निरीक्षण किया. साथ ही सभा को संबोधित करते हुए सीएम ने बिना नाम लिए केंद्र सरकार के बहाने सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों पर हमला बोला. इस दौरान गहलोत ने कहा कि मैंने अपने विधायकों को बोल दिया है कि 10 करोड़ या इससे अधिक जितना भी पैसा लिया है, उसकी मैं भरपाई करूंगा. उन्होंने कहा बीजेपी से लिया हुआ पैसा अमित शाह को वापस करो, अगर अमित शाह का पैसा रख लिया तो हमेशा दबाब बनाकर रखेंगे.
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तब पायलट के साथ चले गए थे डेढ़ दर्जन विधायक - असल में उस दौरान सत्ताधारी पार्टी के डेढ़ दर्जन विधायकों ने सचिन पायलट का समर्थन करते हुए अपनी ही सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था. इन विधायकों का आरोप था कि सत्ता में उन्हें नजरअंदाज कर हाशिए पर रखा जा रहा है. वहीं, उनके नेता सचिन पायलट को भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नजरअंदाज कर रहे हैं. इसके बाद कार्रवाई करते हुए एआईसीसी ने पायलट को उपमुख्यमंत्री पद और प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटा दिया था. साथ ही अग्रिम संगठनों के अध्यक्षों का भी परिवर्तन किया गया था. जबकि मंत्री पद से रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह को हटाया गया था.
मानेसर जाने वाले विधायक
- सचिन पायलट
- हेमाराम चौधरी
- दीपेंद्र सिंह शेखावत
- रमेश मीणा
- मुरारी लाल मीणा
- बृजेंद्र ओला
- भंवरलाल शर्मा
- हरीश मीणा
- गजेंद्र सिंह शक्तावत
- वेद प्रकाश सोलंकी
- राकेश पारीक
- इंद्राज गुर्जर
- विश्वेंद्र सिंह
- सुरेश मोदी
- अमर सिंह जाटव
- मुकेश भाकर
- रामनिवास गावड़िया
हरीश मीणा ने जताई थी नाराजगी - हाल ही में मानेसर का जिक्र आने पर सचिन पायलट समर्थक नेता व देवली उनियारा विधायक हरीश मीणा ने नाराजगी जताई थी. मसला था प्रदेश कांग्रेस प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा के साथ फीडबैक बैठकों का दौर. जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के साथ रंधावा एक-एक करके विधायकों से फीडबैक ले रहे थे, तभी अजमेर संभाग के विधायकों के फीडबैक वाले दिन टोंक के देवली उनियारा विधायक हरीश मीणा से ही रंधावा ने वन टू वन बातचीत की. इस दौरान मीणा का परिचय कराते हुए प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि यह पहले डीजीपी रहे हैं. फिर भारतीय जनता पार्टी से सांसद रहे और इसके बाद मानेसर जाने वाले विधायकों में भी शामिल थे. तभी रंधावा के सामने डोटासरा की इस बात पर मीणा ने नाराजगी जताई थी. जिसके बाद रंधावा ने मामला संभालते हुए मीणा से अलग से बातचीत की थी.