ETV Bharat / state

गुमनाम मेडलिस्ट : भाला फेंक स्पर्धा में सूबेदार सरनाम ने पाए थे 7 गोल्ड...आर्मी से रिटायर होने के बाद गांव छूटा, किराए के मकान में जी रहे गुमनाम जिंदगी

author img

By

Published : Aug 13, 2021, 5:21 PM IST

Updated : Aug 13, 2021, 5:48 PM IST

Neeraj Chopra,  Paan Singh Tomar,  South Asian games,  Subedar Sarnam Singh
सूबेदार सरनाम सिंह की गुमनाम जिंदगी

1984 में सरनाम सिंह (sarnam singh) ने नेपाल के काठमांडू में साउथ एशियन गेम्स (South Asian games ) में 78.58 मीटर भाला (javelin) फेंक कर भारत को पहला स्थान हासिल कर देश को गोल्ड (gold medal) दिलाया. लेकिन आज सरनाम सिंह गुमनामी का जीवन जी रहे हैं.

धौलपुर. हाल ही में देश के होनहार युवा जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा (Neeraj Chopra) ने ओलंपिक (Olympic Games) में भाला फेंक स्पर्धा में भारत को पहला स्थान दिलाकर स्वर्ण पदक हासिल किया. लेकिन आर्मी से रिटायर एक सूबेदार मेजर 1984 में भाला फेंक प्रतियोगिता में देश को सोना दिला चुका है.

आर्मी की ओर से विभिन्न प्रतियोगिताओं में खेलते हुए सूबेदार सरनाम सिंह ने देश को स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक दिलाए हैं. लेकिन फिर हालात ऐसे बने कि रिटायर्ड सूबेदार सरनाम सिंह को 1 साल पहले अपने जन्मस्थान उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की फतेहाबाद तहसील छोड़कर परिवार के साथ पलायन करना पड़ा. पीछे गांव छूट गया, जायदाद छूट गई. सूबेदार सरनाम वर्तमान में धौलपुर शहर की दुर्गा कॉलोनी में किराए के मकान में गुमनाम जिंदगी जी रहे हैं.

जेवलिन थ्रो में देश को गोल्ड दिलाने वाला सूबेदार आज गुमनाम

भाला फेंक प्रतियोगिता का जिक्र आते ही जेहन में नीरज चोपड़ा का चेहरा उभरता है. लेकिन कभी सरनाम सिंह भी एक चेहरा था. सरनाम सिंह पुत्र दीवान सिंह, निवासी गांव अई, तहसील फतेहाबाद, जिला आगरा, उत्तर प्रदेश, हाल निवास दुर्गा कॉलोनी धौलपुर.

Neeraj Chopra,  Paan Singh Tomar,  South Asian games,  Subedar Sarnam Singh
आज परिवार के साथ किराए के मकान में गुमनाम जिंदगी

सरनाम आज गुमनामी का जीवन जी रहे हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि 18 सितंबर 1970 को आर्मी में वे बतौर सैनिक भर्ती हुए. सेना में जाने से पहले ही उनका रुझान खेलों की तरफ था. सरनाम के खेल के हुनर को देख आर्मी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें प्रेरित किया.

पढ़ें- नीरज को इस मुकाम तक पहुंचाने में दादी का रहा अहम रोल, चाचा ने सुनाया ये किस्सा

1982 में ओलंपिक में चूके, 1984 में पाया गोल्ड

सूबेदार सरनाम ने बताया कि आर्मी (Army) की तरफ से उन्हें 1982 में ओलंपिक खेलने का मौका मिला. लेकिन घायल होने के कारण वे पदक से चूक गए. 1984 में नेपाल के काठमांडू में साउथ एशियन प्रतियोगिता हुई थी. इस प्रतियोगिता में 78 मीटर 58 सेंटीमीटर भाला फेंककर सरनाम से पहला स्थान हासिल कर देश को गोल्ड मेडल दिलाया.

Neeraj Chopra,  Paan Singh Tomar,  South Asian games,  Subedar Sarnam Singh
मेडल्स का यूं लगाया ढेर

उन्होंने बताया कि उनका सफर यहीं नहीं रुका. आर्मी की तरफ से उन्हें देश में लगातार खेलने के मौके मिले. इंडोनेशिया, जकार्ता, जर्मनी, पाकिस्तान, नेपाल समेत कई देशों में हुई प्रतियोगिताओं में भाग लेकर उन्होंने पदक हासिल किए. नेशनल प्रतियोगिताओं में उन्होंने 7 गोल्ड मेडल हासिल किए. उस समय सुविधाओं और संसाधनों के घोर अभाव के बावजूद सूबेदार का लोहा हर जगह माना जाता था.

Neeraj Chopra,  Paan Singh Tomar,  South Asian games,  Subedar Sarnam Singh
तस्वीरों में जिंदा हैं मेडल के किस्से

पड़ोसियों ने जमीन-जायदाद पर किया कब्जा

उन्होंने बताया कि खेल के कारण आर्मी ने उन्हें लगातार प्रमोशन भी दिए. सूबेदार मेजर के पद से सेवानिवृत्त होकर सरनाम अपने गांव पहुंच गए. लेकिन गांव में पहुंचने के बाद सरनाम सिंह से जमीन को लेकर पड़ोसियों ने झगड़ना शुरू कर दिया. गांव के लोग उनकी जमीन और खेतों पर कब्जा कर चुके थे. खेतों पर लगे ट्यूबवेल को भी तहस-नहस कर दिया गया.

पढ़ें- टोक्यो के पदकवीरों का सम्मान, नीरज चोपड़ा बोले- यह मेरा नहीं, पूरे देश का मेडल है

आगरा जिला प्रशासन को उन्होंने इस बारे में कई मर्तबा शिकायत दी. लेकिन हर बार निराशा हाथ लगी. ऐसे में सरनाम सिंह 1 साल पहले पैतृक गांव से पलायन कर पूरे परिवार को लेकर धौलपुर शहर आ गए. आज सरनाम सिंह धौलपुर में किराए के मकान पर रहकर गुमनामी का जीवन जीने को मजबूर हैं. ईटीवी भारत से वार्ता में उन्होंने बताया कि सरकार उनको मौका दे तो वे युवाओं को निखार सकते हैं. ओलंपिक के लिए नई नस्ल को तैयार करने के लिए सब कुछ झोंक सकते हैं. सरनाम सिंह ने सरकार पर भी बेरुखी का आरोप लगाया है.

Neeraj Chopra,  Paan Singh Tomar,  South Asian games,  Subedar Sarnam Singh
आर्मी की ओर से खेलते हुए कई मेडल किये हासिल

पान सिंह तोमर की राह पर चल देता, मगर...

देश को 1984 में सोना दिलाने वाले सूबेदार सरनाम सिंह ने बताया रिटायर्ड होने के बाद वे गांव पहुंचे तो पाया कि पड़ोसियों ने उनकी जमीन जायदाद पर कब्जा कर लिया है. पड़ोसियों ने उनके भतीजे को झूठे मुकदमे में फंसा दिया. खेतों पर लगे ट्यूबवेल को भी तहस नहस कर दिया. पड़ोसियों ने प्रताड़ित किया तो उन्होंने पान सिंह तोमर (Paan Singh Tomar) की तरह बदला लेने की योजना बनाई. लेकिन परिवार और बच्चों की तरफ देखकर उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिये.

इसके बाद सरनाम सिंह जमीन जायदाद को छोड़कर परिवार के साथ अपने गांव से पलायन कर धौलपुर आ गए. सूबेदार सरनाम सिंह ने सरकार पर भी आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें आर्थिक मदद की बात तो दूर सरकार ने कभी प्रशंसा पत्र तक देने की जहमत नहीं उठाई. आर्मी से रिटायर्ड इस कर्मशील शख्स के हौसले बरकरार हैं. लेकिन सिस्टम की तरफ से सरनाम सिंह निराश हैं.

Last Updated :Aug 13, 2021, 5:48 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.