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Special: धौलपुर का बेशकीमती कालीन कारोबार खत्म होने की कगार पर, मजदूरों को प्रशासन से आस

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Published : Aug 20, 2020, 1:37 PM IST

कोरोना वायरस ने जहां पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है. वहीं इसने धौलपुर के कालीन उद्योग को बैकफुट पर ला दिया है. इस उद्योग से जुड़े मजदूर परिवार बेरोजगार होकर घर पर बैठे हैं.

Carpet business, धौलपुर न्यूज
कालीन व्यवसाय ठप होने से मजदूरों पर छाया संकट

धौलपुर. वैश्विक महामारी कोरोना मजदूर वर्ग और लघु उद्योग के लिए त्रासदी बनकर आई है. जिले का प्रसिद्ध हथकरघा गलीचा उद्योग पूरी तरह से चौपट हो गया है. यहां के बनाए कालीन की पहले देश के साथ विदेशों में भारी डिमांड थी लेकिन आज उसके खरीददार ही नहीं हैं.

कालीन व्यवसाय ठप होने से मजदूरों पर छाया संकट

कोरोना महामारी की चपेट में आने से आधा साल निकल चुका है लेकिन हालात सामान्य होते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं. कोरोना रोगियों की संख्या में इजाफा होने से केंद्र सरकार और राज्य सरकार के लिए चिंता का बड़ा विषय बना हुआ है. केंद्र सरकार से लेकर देश की राज्य सरकारें कोरोना की रोकथाम के लिए विशेष प्रयास कर रही हैं लेकिन संक्रमण के केसों में गिरावट नहीं आ रही है.

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कालीन बनानेवाले मजदूर परेशान

लॉकडाउन के कारण काम धंधे-ठप हो गए थे. अब अनलॉक में काम शुरू तो हुआ है लेकिन उससे पहले ही कई व्यवसायों की पूरी तरह से कमर टूट गई है. सबसे बुरा असर तो लघु एवं कुटीर उद्योग पर पड़ा है.

6 से अधिक गांव में कालीन उद्योग के कारण जलता है चूल्हा

लघु और कुटीर उद्योग से जुड़े लोग मौजूदा वक्त में बेरोजगारी के दौर से गुजर रहे हैं. वहीं धौलपुर का मशहूर हथकरघा गलीचा उद्योग खत्म होने के कगार पर पहुंच चुका है. बाड़ी उपखंड के गांव सेवा का पुरा, पाय का पूरा, नुनहेरा सहित 6 से अधिक गांव में गलीचा का निर्माण किया जाता है. इस कारण इस व्यवसाय से बड़ी संख्या में ग्रामीण जुड़े हैं.

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उद्योग से जुड़े मजदूर के सामने रोजी रोटी का संकट

विदेशों में होती है कालीन की सप्लाई

धौलपुर में निर्मित बेशकीमती कालीन की मांग देश के आगरा, ग्वालियर, जयपुर, हैदराबाद, लखनऊ आदि शहरों में अधिक थी. जहां से बड़े सप्लायर इन बेशकीमती कालीनों को फ्रांस, रूस, इटली, ब्राजील, इंग्लैंड अनेकों देशों के लिए भेजते थे लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह कुटीर उद्योग दम तोड़ रहा है.

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कोरोना ने इस व्यवसाय को चौपट कर दिया है. कालीनों की डिमांड खत्म हो गई है. कोरोना के कारण दूसरे देशों से आयात और निर्यात पर असर पड़ा है. ऐसे में विभिन्न देशों आने वाला डिमांड पूरी तरह से बंद है. कभी इस कारोबार से हथकरघा मजदूरों का परिवार फल फूल रहा था लेकिन अब दाने-दाने के लाले पड़ रहे हैं.

लाखों में बिकता है एक कालीन

हथकरघा उद्योग संचालक महेश कुशवाह ने बताया कि पिछले 6 महीने पूर्व गलीचा उद्योग बहुत अच्छा फल-फूल रहा था. एक कालीन की कीमत मार्केट में करीब एक लाख से अधिक है. जिसे तीन महिला 1 महीने में 8 घंटे की लगातार कड़ी मेहनत कर तैयार करती है. वहीं तीनों को वो पहले 30 हजार की मजदूरी देते थे.

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यहां की कालीन की विदेशों में भारी मांग

दूसरे उद्योग संचालक केशव कुशवाह पीड़ा के साथ कहते हैं कि कोरोना के कारण कामकाज बंद है. प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. वहीं केशव कहते हैं कि उनके पास कोई दूसरा रोजगार नहीं है. जिससे वो अपनी आजीविका चला सके.

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गलीचा उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि प्रशासन की अनदेखी के कारण यह कारोबार शुरू से ही झोपड़ियों में संचालित किया जा रहा था. अब भी इनको कोई भी सुविधा नहीं दी जा रही है. जिसके कारण यह बेशकीमती कारोबार आज बंद होने के कगार पर पहुंच गया है.

हैंडीक्राफ्ट फेयर बंद होने से भी व्यवसाय पर बुरा असर

हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए समय-समय पर हैंडीक्राफ्ट मेले का आयोजन किया जाता है, जहां लोग अपना सामान लेकर बेचते हैं लेकिन कोरोना के कारण अब ऐसे आयोजन भी ठप हैं.

उद्योग को संबल देनेवाली योजनाएं

वहीं जिला उद्योग अधिकारी कृष्णकांत शर्मा ने बताया राजस्थान सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री ने लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना जारी की है. जिसमें लघुउद्योग को बढ़ावा देने के लिए 25 लाख रुपए तक का 8% सब्सिडी पर लोन दिया जाता है. दूसरी केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री सृजन योजना भी जारी है. जिसमें 15% से लेकर 35% तक अनुदान दिया जाता है.

ग्रामीण क्षेत्रों की उद्योग इकाइयों के लिए 20 से 35% तक का अनुदान दिया जाता है. शर्मा ने बताया हथकरघा उद्योग संचालक अगर सरकार द्वारा संचालित मेले में अपने उपकरणों एवं गलीचों को भेजते हैं तो उसके लिए सरकार उनको आने जाने का किराया और रोजगार भत्ता देती है.

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सरकार कई योजनाओं के माध्यम से लघु उद्योग को संबल देने के दावे करती है लेकिन इन योजनाओं के लाभ से इस उद्योग के संचालक और मजदूर कोसो दूर हैं. जिले का हथकरघा गलीचा उद्योग संसाधनों के अभाव और प्रशासन की उदासीनता के कारण मौजूदा वक्त में बंद पड़ा है. मजदूर घर बैठे सिस्टम और सिस्टम के जिम्मेदारों की तरफ आस लगाए बैठे हैं.

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