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राजस्थानी भाषा अकादमी के अध्यक्ष ने कहा- बिना बजट के चल रही अकादमी, गिनाई चुनौतियां

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Published : Nov 2, 2022, 1:30 PM IST

राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति (Rajasthani Academy of Literature and Culture) अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगानी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की. जिसमें उन्होंने अकादमी की चुनौतियों के बारे में बताया, साथ ही उन्होंने कहा कि आज अकादमी बिना बजट के चल रही है. ऐसे में विकास के मार्ग में कइयों चुनौतियां मुंह उठाए खड़ी हैं.
Rajasthani Academy of Literature and Culture
अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगानी से खास बातचीत

बीकानेर. राजस्थानी भाषा को मान्यता देने व इसे संविधान की आठवीं अनुसूची (Eighth Schedule of the Constitution) में शामिल करने को लेकर कई बार आवाज उठी, लेकिन सियासी नफा-नुकसान के चक्कर में आज तक इसे वो मुकाम हासिल नहीं हुआ, जिसकी वो हकदार है. सरकारी स्तर पर भी इस भाषा को लेकर हुए प्रयास केवल कागजी ही साबित हुए. हालांकि पिछले दिनों राजस्थानी भाषा साहित्य व संस्कृति अकादमी में सरकार ने अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति की है, बावजूद इसके अकादमी के कामकाज में कोई खास फर्क नहीं आया है. जिसके कई कारण हैं. इन सभी बातों को लेकर अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगानी से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.

छंगानी ने बताया कि आज देश में राजस्थानी भाषा बोलने वालों की संख्या करीब 16 करोड़ हैं. वहीं, समृद्ध साहित्यिक पहचान के बाद भी इस भाषा को आज तक संविधान की आठवीं सूची में शामिल नहीं किया गया. असल में सरकारी स्तर पर इस भाषा के प्रोत्साहन और बढ़ाने को लेकर आज तक कोई गंभीरता नहीं दिखी. या फिर कह सकते हैं कि जो भी प्रयास किए गए वो केवल कागजों तक ही सिमट कर रह गए. पिछले दिनों प्रदेश की गहलोत सरकार ने बीकानेर के शिवराज छंगानी को राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का अध्यक्ष बनाया. इसके साथ ही प्रदेश सरकार ने इस अकादमी में अलग-अलग सदस्यों की भी नियुक्ति की, लेकिन इसके बावजूद अकादमी के कामकाज में कोई रफ्तार नहीं आई है.

अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगानी से खास बातचीत

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बिना बजट के चल रही अकादमी: अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगानी ने कहा कि पूर्णकालिक स्टाफ के साथ ही इसके लिए सरकार से बजट की जरूरत है. अकादमी फिलहाल बिना बजट के ही चल रही है. सरकार से बजट पाने के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं. छंगानी ने कहा कि बजट स्वीकृत होने के बाद ही अकादमी को स्थायी और सुचारू ढंग से चलाया जा सकेगा. साथ ही पुस्तकों के प्रकाशन और साहित्यकारों के सम्मान के बाबत कार्यक्रम आयोजित किए जा सकेंगे.

विपरीत परिस्थितियों में भी प्रयास जारी: अकादमी में कई विपरीतगामी लोग हैं, जो इन परिस्थितियों में भी निरंतर प्रयासरत है. ताकि किसी भी कीमत पर अकादमी बंद न हो. सीधे तौर पर सचिव को लेकर उन्होंने कहा कि सचिव पर मैं पूरी तरह से निर्भर हूं. उन्हें मुझसे हर काम के लिए सलाह लेना चाहिए, ताकि हम आगे बढ़ सके.
9 साल बाद मिला अध्यक्ष: वैसे तो सियासी नफा-नुकसान के विश्लेषण में कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे पर राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिलने में रोड़ा अटकाने की बात कहते रही है. लेकिन हकीकत ठीक इसके विपरीत है. वहीं, सूबे में कांग्रेस शासन के 4 साल पूरे होने के बाद अकादमी में अध्यक्ष की नियुक्ति हुई है तो पिछले बीजेपी सरकार में पूरे 5 साल तक इस अकादमी में अध्यक्ष व अन्य सदस्यों की नियुक्ति तक नहीं की गई.

नहीं संचालित हो पाई गतिविधियां, न मिले पुरस्कार: आमतौर पर अध्यक्ष नहीं होने पर संभागीय आयुक्त या अन्य अधिकारी को अध्यक्ष का चार्ज दे दिया जाता है. दूसरे पदों पर बैठे उच्च अधिकारी अकादमी के कामकाज में इतनी रुचि नहीं लेते हैं. यही कारण है कि पिछले 9 सालों में अकादमी की ओर से राजस्थानी भाषा के साहित्यकारों को दिए जाने वाले हर वर्ष के सम्मान पिछले आठ, नौ सालों से आयोजित ही नहीं हुए हैं. किसी भी साहित्यकार को राजस्थानी भाषा को लेकर पुरस्कार तक नहीं दिए गए.

अकादमी भी बीकानेर में और मंत्री भी बीकानेर से: खास बात यह है कि राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी का मुख्यालय बीकानेर है, जो कला संस्कृति मंत्रालय के अधीन है. इस मंत्रालय के मंत्री डॉ. बीडी कल्ला बीकानेर से ही हैं. साथ ही बीकानेर के सांसद अर्जुन मेघवाल भी केंद्रीय कला संस्कृति राज्यमंत्री हैं. इसके बावजूद राजस्थानी भाषा को मान्यता नहीं मिल पा रही है. पिछले दिनों पूर्व मंत्री देवी सिंह भाटी ने भी बीकानेर जिला कलेक्ट्रेट में बैठक ले रहे केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल से राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने को लेकर किए गए प्रयासों पर सवाल किया था. लेकिन उनके सवाल का कोई माकूल जवाब नहीं मिला.

जोधपुर में हुआ आयोजन: पिछले सप्ताह जोधपुर में भी राजस्थानी भाषा को लेकर लिटरेचर फेस्टिवल की तर्ज पर अंजस महोत्सव का आयोजन हुआ था. जिसमें राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर लंबी चर्चा हुई थी. बावजूद इसके हाल वही ढाक के तीन पात वाली है.

राजस्थानी सिनेमा भी उपेक्षित: हिंदी दिवस के मौके पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस बात को स्वीकार किया था कि हिंदी सिनेमा ने हिंदी भाषा को विस्तार के लिए अधिकाधिक मुकाम मुहैया कराया है. आज हिंदी भाषा इस मुकाम पर है, उसका सबसे बड़ा श्रेय बॉलीवुड को जाता है. लेकिन आज राजस्थानी भाषा को राजस्थान में भी समर्थन नहीं मिल पा रहा है. जिसकी बानगी समय-दर-समय देखने को मिलते रही है.

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