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क्या कांग्रेस में बीडी कल्ला को कमजोर करने की हो रही कोशिश ? इन राजनीतिक घटनाक्रम से मिल रहे संकेत

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Published : Aug 1, 2023, 8:44 PM IST

BD Kalla and OSD Lokesh Sharma
बीडी कल्ला और लोकेश शर्मा

राजस्थान में बीकाने की लड़ाई दिलचस्प होती जा रही है. कांग्रेस की ओर से जहां मंत्री बीडी कल्ला जीत का दावा करते नजर आ रहे हैं तो वहीं मुख्यमंत्री के ओएसडी लोकेश शर्मा भी लगातार बीकानेर का दौरा कर रहे हैं. कुछ राजनीतिक घटनाक्रम से ते यही संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस में कल्ला को कमजोर करने की कोशि हो रही है.

किसने क्या कहा, सुनिए...

बीकानेर. साल 2023 के अंत में राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होने हैं और सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के साथ ही विपक्षी भाजपा भी अब चुनाव की तैयारियों में जुट गई है. चुनाव के नजदीक आते ही चुनाव लड़ने वाले दावेदार सक्रिय हो जाते हैं. चुनाव के टिकट की दौड़ में कुछ नए चेहरों को मौका मिलता है तो कुछ पुराने चेहरों की छुट्टी हो जाती है. इसका कारण पुराने नेताओं की बजाय नए चेहरों को आगे लाने की सोच के रूप में देखा जाता है. राजनीतिक घटनाक्रम में बीकानेर में भी कुछ ऐसे ही संकेत कांग्रेस की ओर से मिल रहे हैं, जहां पार्टी के वरिष्ठ नेता और शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला को कमजोर करने की कोशिश भी होती नजर आ रही है.

राजस्थान कांग्रेस में सबसे वरिष्ठ नेताओं में शुमार शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला को लेकर इन दिनों कांग्रेसी खेमे में कई चर्चा है. बीकानेर पश्चिम से लगातार 9 बार कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव लड़ने वाले कल्ला अब तक 6 चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन इस बार चुनाव से पहले भाजपा के मुकाबले खुद उनकी पार्टी से उनके लिए चुनौतियां मिलती नजर आ रही हैं, जिससे ये संकेत मिल रहा है कि आने वाले समय में पार्टी में कल्ला की राह आसान नहीं है. कल्ला को पार्टी में अंदरखाने कमजोर करने की कोशिश के संकेत देने वाली कुछ राजनीतिक घटनाएं महज इत्तेफाक नहीं लगतीं. एक ओर जहां कांग्रेस में जिताऊ कैंडिडेट का पैरामीटर तय होने की बात कही जा रही है, लेकिन खुद मंत्री कल्ला इस बार भी 10वीं दफे बीकानेर से ही चुनाव लड़ने की बात पूरे दमखम के साथ कई बार कह चुके हैं, लेकिन कांग्रेस के अंदरखाने की सियासत कुछ और ही कहानी कहती है.

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दरअसल, कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी बिना कारण नहीं होता है और राजनीति संभावनाओं का खेल है. यहां कब क्या हो जाए यह राजनीति के धुरंधर भी नहीं बता सकते. आइए जानते हैं वह क्या कारण और घटनाएं हैं, जिनसे पार्टी में मंत्री बीडी कल्ला के वर्चस्व को चुनौती के रूप में देखा जा रहा है और उनके दावेदारी पर खतरा मंडरा रहा है.

पावरफुल विभागों से हटाकर शिक्षा मंत्री बनाया : प्रदेश कांग्रेस सरकार में 2018 में कल्ला को प्रदेश के सबसे ज्यादा बजट वाले दो महत्वपूर्ण विभागों पानी और बिजली की जिम्मेदारी के साथ ही कला संस्कृति मंत्रालय की जिम्मेदारी भी दी गई थी. एक बार हुए सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में कल्ला से इन दोनों विभागों को लेकर शिक्षा मंत्रालय का महकमा दे दिया गया. वैसे तो शिक्षा विभाग में प्रदेश की सबसे ज्यादा सरकारी कर्मचारी हैं, लेकिन कल्ला के साथ ही राज्य मंत्री के तौर पर जाहिदा खान को भी मंत्री बनाया गया. मंत्री के तौर पर दो पावरफुल विभागों से हटाकर शिक्षा मंत्री बनाने से ही कल्ला के वर्चस्व को चुनौती मिलने की कहानी शुरू होती है.

जाहिदा को मिला अधिकार : पहली बार राज्य मंत्री को भी कैबिनेट मंत्री के बराबर शिक्षा विभाग में कामों और अधिकारों का बंटवारा हुआ. यहां तक कि इस बंटवारे में कुछ अधिकारों में कल्ला से ज्यादा अधिकार जाहिदा को मिला. हालांकि, कहा जा रहा है कि राजस्थान में राहुल गांधी की यात्रा में जाहिदा खान के पास मंत्री होने के बाद भी अधिकार नहीं होने के बारे में सीधे राहुल गांधी से बात की गई और जिसके बाद आलाकमान के निर्देश पर यह फेरबदल हुआ. बताया जा रहा है कि तृतीय श्रेणी शिक्षकों के तबादले भी सीधे तौर पर मंत्री जाहिदा के अधिकार क्षेत्र में होंगे. सीधे तौर पर शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला का इसमें कोई दखल नहीं होगा.

आलाकमान की मीटिंग में शामिल नहीं : पिछले दिनों राजस्थान की कांग्रेस में सुलह और आने वाले चुनाव की व्यूह रचना को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी की मौजूदगी में प्रदेश के प्रमुख 30 कांग्रेसी नेताओं की बैठक हुई. इस बैठक में मंत्री बीडी कल्ला को शामिल नहीं किया गया. दरअसल, बताया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस की ओर से भेजी गई 30 नेताओं की सूची में कल्ला का नाम नहीं था. इस मीटिंग में शांति धारीवाल और महेश जोशी जैसे कद्दावर नेता भी नहीं थे, लेकिन इनका नहीं होना सितंबर की घटना से जुड़ा होना माना गया था. लेकिन प्रदेश कांग्रेस में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व नेता प्रतिपक्ष के रूप में एकमात्र कल्ला ही एक ऐसे नेता हैं, यहां तक कि सरकार में वरिष्ठ मंत्री होने के बावजूद भी कल्ला इस बैठक में नहीं थे. ऐसे जब प्रदेश कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की बैठक में कल्ला का नाम आता है, लेकिन मीटिंग में बुलाए गए प्रमुख नेताओं में उनको शामिल नहीं करना यह बताता है कि कांग्रेस में कल्ला को लेकर ऑल इज वेल की स्थिति नहीं है.

पीसीसी कार्यकारिणी में भी प्रभाव नहीं : दो-तीन दिन पहले प्रदेश कांग्रेस की ओर से जारी हुई प्रदेश कार्यकारिणी में भी मंत्री बीडी कल्ला कैंप पूरी तरह से नदारद रहा. मंत्री धारीवाल और दूसरे नेताओं की सिफारिश पर कई नेताओं को प्रदेश कांग्रेस कमेटी में जगह मिली है. बीकानेर से आने वाले कल्ला कैंप के किसी भी नेता को इस कार्यकारिणी में जगह नहीं मिली है, जबकि बीकानेर से ही आने वाले दूसरे मंत्रियों और नेताओं से जुड़े लोगों को पद दिए गए हैं. शहर कांग्रेस को लेकर भी मंत्री बीडी कल्ला अपनी पसंद का अध्यक्ष नहीं बना पाए.

OSD का बीकानेर दौरा और दावेदारी : इन सब कारणों में सबसे बड़ा कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के विशेष अधिकारी लोकेश शर्मा का भी नाम जुड़ना माना जा रहा है. जिसके बाद इन संकेतों को बल मिलता है कि वाकई में मंत्री बीडी कल्ला के लिए कांग्रेस में सब कुछ सही नहीं है. किसी दूसरे कांग्रेसी नेताओं की कल्ला के सामने टिकट की दावेदारी करना बड़ी बात नहीं है, लेकिन मूल बीकानेर से नहीं होकर भी लगातार लोकेश शर्मा का बीकानेर में दौरा करना और खुले तौर पर मीडिया में बीकानेर से चुनाव लड़ने का संकेत देना, साथ ही मंत्री बीडी कल्ला से जुबानी जंग. यह सब वह कारण हैं जो बताने के लिए काफी हैं कि कल्ला के लिए आने वाले समय में पार्टी में टिकट के लिए चुनौती खड़ी की जा रही है. जानकार तो यहां तक कहते हैं कि मुख्यमंत्री के विशेषाधिकारी का इस तरह से बीकानेर आना और कल्ला को अब युवाओं को मौका देते हुए मार्गदर्शक की भूमिका में रहने की सलाह देने जैसे बयान खुद की इच्छा से संभव नहीं है. यह कहा जा सकता है कि ऊपरी तौर पर मिले निर्देशों के बाद ही शायद लोकेश शर्मा बीकानेर में लगातार दौरा कर रहे हैं.

राजनीतिक अपवाद के लिए जाने जाते हैं कल्ला : वर्तमान परिस्थितियों के मुताबिक कल्ला के लिए राह भले ही आसान नहीं हो, लेकिन राजस्थान में राजनीतिक अपवाद और बीडी कल्ला एक-दूसरे के पर्याय हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस की ओर से लगातार दो बार चुनाव हारे नेताओं को टिकट नहीं देने के फैसले के इतर बीडी कल्ला ही एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्हें पार्टी ने इस फार्मूले को तोड़कर टिकट दिया. कल्ला से पहले शहर कांग्रेस के अध्यक्ष यशपाल गहलोत को पार्टी ने पश्चिम से उम्मीदवार बना दिया गया था, लेकिन ऐन मौके पर यशपाल का टिकट काटकर वापिस कल्ला को दिया गया. जिसके बाद कल्ला ने पार्टी के फैसले को सही साबित किया और चुनाव जीता और अब प्रदेश सरकार में शिक्षा मंत्री हैं.

इससे पहले 1998 में भी चुनाव से पहले हुए एक राजनीतिक घटनाक्रम में कल्ला को पार्टी से निलंबित किया गया, लेकिन उस घटनाक्रम में खुद का कसूर नहीं होने की बात कल्ला ने साबित की. जिसके बाद न सिर्फ कल्ला का निलंबन वापस हुआ, बल्कि उन्हें पार्टी ने टिकट भी दिया और कल्ला ने पार्टी के फैसले को सही साबित किया और चुनाव जीतकर मंत्री बने. इस कार्यकाल में पहली बार प्रदेश में मंत्री के रूप में कल्ला के पास कार्मिक मंत्रालय रहा जो आज तक राजस्थान में किसी भी मंत्री के पास नहीं रहा.

अब क्या होगा ? हालांकि, इन सब बातों के बावजूद लगातार मंत्री बीडी कल्ला कई मौकों पर साफ कर चुके हैं कि वही पार्टी की ओर से विनिंग कैंडिडेट हैं और चुनाव जरूर लड़ेंगे. लेकिन यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि पार्टी एक बार फिर कल्ला पर भरोसा करती है या नहीं. इस बार विकास के मामले में मंत्री बीडी कल्ला अपने विरोधियों को कोई मौका नहीं देना चाहते हैं. इसीलिए लगातार क्षेत्र में सड़क, हॉस्पिटल और अन्य कामों को लेकर सक्रिय भी नजर आ रहे हैं. देखने वाली बात होगी कि पहले 100 सीटों की चुनाव से 2 महीने पहले घोषणा करने की कांग्रेस की कवायद में बीकानेर पश्चिम से कांग्रेस का चेहरा मंत्री बीडी कल्ला ही होंगे या कोई और.

सरकारी बंगला किया खाली : इसके अलावा पिछले दिनों मंत्री के तौर पर मिलने वाले सरकारी बंगले को भी कल्ला ने खाली कर दिया. जयपुर में ही अपने निजी आवास पर शिफ्ट हो गए. हालांकि, इसके पीछे कोई कारण नहीं बताया गया, लेकिन बताया जा रहा है कि अंदर खाने में इसे कल्ला की नाराजगी के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि, कल्ला सिविल लाइंस में एक अन्य मंत्री के घर पर रोजाना जनसुनवाई भी करते हैं. वहीं, भाजपा ने इसे मुद्दा बनाया और कल्ला के बंगला खाली करने को लेकर खुद बीकानेर के दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कटाक्ष किया था.

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