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Budh Pradosh Vrat 2022: इन मुहूर्त में करें भगवान शिव की पूजा, जानिए क्या है इसकी कथा

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Published : Dec 21, 2022, 6:53 AM IST

budh pradosh vrat ki katha
बुध प्रदोष आज, भगवान शिव की पूजा से सफल होते सब काम

प्रदोष व्रत प्रतिवर्ष 24 बार आता है. यह व्रत हर महीने में दो बार आता है. प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन प्रदोष व्रत (Budh Pradosh Vrat 2022) का पालन किया जाता है. प्रदोष व्रत को त्रयोदशी व्रत के नाम से भी जाना जाता हैं. यह व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है.

बीकानेर. पौष माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 21 दिसंबर को है. आज बुधवार है और आज प्रदोष होने से इसको बुध प्रदोष (Budh Pradosh Vrat 2022) कहा जाता है. इसी दिन व्रत रखा जाएगा. इस दिन भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा की हाती है. इसके लिए प्रदोष का पूजा मुहूर्त मान्य होता है.

प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति को आरोग्य, धन, संपत्ति, पुत्र आदि की प्राप्ति होती है. प्रदोष का अर्थ संध्या काल से है. यह भी एक संयोग है कि पौष मास की मासिक शिवरात्रि 21 दिसंबर को है. इस बार प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि एक ही दिन है. इस दिन व्रत और पूजा करने से दोनों व्रतों का पुण्य फल प्राप्त होगा. शिवरात्रि की पूजा का मुहूर्त निशिता काल में होता है, लेकिन दिन में भी पूजा पाठ कर सकते हैं. इसकी कोई मनाही नहीं होती है.

बुध प्रदोष व्रत: बुधवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को सौम्य प्रदोष, सौम्यवारा प्रदोष, बुध प्रदोष कहा जाता है. इस दिन व्रत करने से बौद्धिकता में वृद्धि होती है. वाणी में शुभता आती है. जिन जातकों की कुंडली में बुध गृह के कारण परेशानी है या वाणी दोष इत्यादि कोई विकार परेशान करता है तो उसके लिए बुध प्रदोष व्रत से, बुध की शुभता प्राप्त होती है. छोटे बच्चों का मन अगर पढाई में नहीं लग रहा होता है तो माता-पिता को चाहिए की बुध प्रदोष व्रत का पालन करें इससे लाभ प्राप्त होगा.

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संकट होते दूर: प्रदोष व्रत को करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है. कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं.

कैसे करें प्रदोष व्रत की पूजा: सायंकाल पूजा से पहले स्नान फिर से करें और उसके बाद शिव पूजा प्रारंभ करें. प्रदोष काल (Budh Pradosh Vrat) में भगवान शिव का षोडशोपचार तरीके से पूजन और प्रदोष व्रत की कथा कहने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती करें और उसके बाद सभी को प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें.

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इन नियमों से करें व्रत: प्रदोष व्रत में बिना जल पिए व्रत रखना होता है, किन्तु यदि कोई निर्जला व्रत नहीं रख सकता तो सामान्य व्रत भी रख सकता है. सुबह स्नान करके भगवान शंकर, पार्वती और नंदी को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची भगवान को चढ़ाएं. शाम के समय पुन: स्नान करके इसी तरह शिवजी की पूजा करें. भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजा करें. पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं. भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं.

8 दीपक आठ दिशाओं में जलाएं: आठ बार दीपक रखते समय प्रणाम करें. ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं, फिर शिव चालीसा का पाठ करने के बाद आरती करें. शिव स्त्रोत, मंत्र जप करें. रात्रि में जागरण करें. पूजा के अंत में भगवान शिव से अपनी मनोकामना व्यक्त कर उनसे क्षमा प्रार्थना कर लें. फिर प्रसाद वितरण करें. व्रत में दान करने का महत्व होता है, इसलिए गरीब को दान की वस्तुएं निकाल भेंट करें.

दरअसल, मान्यता है कि प्रदोष व्रत को मुख्य रूप से भगवान शिव (Lord Shiva) की कृपा पाने के लिए किया जाता है. इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की आराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. पुराणों के अनुसार प्रदोष व्रत को करने से बेहतर स्वास्थ्य और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है.

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