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अजमेर में उड़ान ने दिए बच्चों को पंख, एक 'मसीहा' की मेहनत लाई रंग

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Published : Nov 15, 2022, 2:29 PM IST

Udaan Society of Ajmer
अजमेर में उड़ान ने दिए बच्चों को पंख

शिक्षा किसी भी बच्चे का मूल अधिकार है. कोशिश की जाए तो बगैर सरकारी मदद के भी ज्ञान की ज्योति जलाई जा सकती है. अजमेर की उड़ान सोसाइटी यही काम कर रही है (Udaan Society of Ajmer). पंख दे रही है उन्हें जो सामर्थ्यवान नहीं है. महंगी कोचिंग, महंगी फीस चुकाने में सक्षम नहीं हैं. बच्चों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं एक शख्स, जो इनके लिए किसी मसीहा से कम नहीं!

अजमेर. उड़ान सोसाइटी उन बच्चों को पंख दे रही है जो जीवन में कुछ करना चाहते हैं लेकिन महरुमियां उनके कदम रोकती हैं. 15 साल से अजमेर स्थित ये संस्था भीख मांगने वाले या कचरा बीनने वाले बच्चों के भीतर शिक्षा की अलख जगा रही है (Udaan Society of Ajmer). ध्येय एक ही है इन्हें समाज में सिर उठा कर जीने के लायक बनाना. कक्षा 1 से 8वीं तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा के साथ फ्री स्टेशनरी, कपड़े, जूते चप्पल और Conveyance तक मुहैया कराती है.

15 वर्षो से अजमेर में उड़ान संस्था भिक्षावृत्ति और कचरा बीनने वाले बच्चों को शिक्षा से जोड़कर उन्हें देश का जिम्मेदार नागरिक बना रही है. संस्था कक्षा एक से आठवीं तक के बच्चों को न केवल शिक्षा दे रही है बल्कि एक वक्त का खाना भी उन्हें मुहैया करवा रही है. बच्चों के लिए निशुल्क किताबें और स्टेशनरी के अलावा कपड़े और जूते चप्पल भी संस्था की ओर से दिए जाते हैं. सबसे खास बात है कि इन बच्चों को संस्था के वाहन के माध्यम से कच्ची बस्तियों से लाया और छोड़ा जाता है.

अजमेर में उड़ान ने दिए बच्चों को पंख

जोस ने पहले पंचशील इलाके में पहली से आठवीं तक के बच्चों को फ्री कोचिंग देना शुरु किया (Ajmer educating Slum Children). अब शास्त्री नगर रोड स्थित दाता नगर में 9वीं से 10वीं तक के बच्चों को कोचिंग मुहैया करा जा रही है. संस्था ने एक कदम और आगे बढ़ाते हुए अब नवी और दसवीं तक के विद्यार्थियों को भी कोचिंग दे रही है. संस्था 350 से अधिक गरीब बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रही है.

एक घटना ने बदल डाली जिन्दगी: इन बच्चों के भीतर शिक्षा की अलख जगाने वाले शख्स का नाम सुनील जोस है. उड़ान के निदेशक हैं और सैंट एंसेल्म स्कूल में गणित के शिक्षक हैं. पत्नी सरकारी स्कूल में व्याख्याता हैं. 2 बच्चे हैं जो सेटल हैं. 15 साल पहले की उस मार्मिक घटना के बारे में बताते हैं जिसने इनके जीवन को बदल कर रख दिया. कहते हैं उस रात पत्नी के साथ एक बर्थडे पार्टी से लौट रहे थे. आयोजन होटल में था. खाना खाने के बाद जब होटल से बाहर निकले तो कुत्तों के भौंकने और बच्चों के चिल्लाने की आवाज से ठिठक गए. पत्नी को वहीं रुकने के लिए कह उस आवाज की ओर चल पड़े.

होटल के पीछे झाड़ियों में उन्होंने जो कुछ देखा उससे उनकी रूह कांप गई. देखा वहां पड़ी जूठन के लिए कुत्ते और बच्चे संघर्ष कर रहे थे. ये सब असहनीय था. उन्होंने बताया कि सभी बच्चों के रहने के ठिकाने का पता लेकर उन्होंने बच्चों को वहां से रवाना कर दिया. अगले दिन स्कूल में पढ़ाने के बाद सुनील जोस ने घर से कुछ रोटियां और सब्जी टिफिन में ली और बस्ती की ओर चल पड़े.

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आसान नहीं था पढ़ाना: जोस बच्चों को पढ़ाना चाहते थे लेकिन उनका परिवार आड़े आ रहा था. उन्हें समझाना आसान नहीं था. लेकिन जब बच्चों को खाना लिया गया तब बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे शुरुआत में एक पेड़ के नीचे पढ़ाया जाने लगा. फिर अपने घर पर बात की. पत्नी और बच्चों से कहा कि वो स्कूल से मिलने वाले अपने वेतन को ऐसे बच्चों को शिक्षित करने में खर्च करेंगे. उस दिन से सुनील जोस अपना पूरा वेतन बच्चों के खाने पीने और पढ़ाई में खर्च देते हैं.

कारवां बढ़ता गया: सुनील जोस ने बताया कि शुरुआत में 10 से 12 बच्चो को एक समय का भोजन देकर पढ़ाना शुरू किया. बाद में एक वैन खरीदी और बच्चों को बस्तियों से घर लाकर खिलाना और पढ़ाना शुरू किया. धीरे धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। 1 से 8 वी कक्षा तक के बच्चों को पहले सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलवाया गया. स्कूल के बाद बच्चों को घर लाकर खिलाया और पढ़ाया. गर्व होता है कि इनके पढ़ाए कई बच्चे अब अच्छी जगहों पर नौकरी कर रह हैं. पंचशील से शुरू किया सफर अब दाता नगर तक पहुंच गया है. यहां नौवीं और दसवीं के बच्चों को फ्री कोचिंग दी जा रही है. ये सभी बच्चे श्रमिक वर्ग से नाता रखते हैं.

जोस कहते हैं कि ये सब कुछ केवल उनके वेतन से संभव नहीं था उनके साथ शिक्षकों की एक टीम जुटी रही. टीम का उद्देश्य गरीब तबके के बच्चों को शिक्षा की धारा से जोड़ना है. शहर के बेहतरीन शिक्षक अल्प वेतनमान पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. कुछ भामाशाह भी संस्था की मदद को आगे आए हैं.

संस्था की नेक अपील: जोस का ये सफर रोटी के लिए संघर्ष करते कुत्तों और बच्चों को देख कर शुरू हुआ था. वो जानते हैं कि भरे पेट से ही निश्चिंत होकर ये बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं. यही वजह है कि वो लोगों से कहते हैं कि खाने को बर्बाद न करें. अजमेर वासियों से अपील करते हैं कि अगर किसी कार्यक्रम या समारोह में खाना बचता है तो उनकी संस्था से सम्पर्क कर उसे डोनेट कर दें.

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