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SPECIAL आनासागर झील के वेट लेंड में बने सेवन वण्डर्स, लेकव्यू पार्क और पाथ वे को हटाने का एनजीटी के निर्देश, बीजेपी और कांग्रेस में मचा घमासान

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Published : Aug 9, 2023, 10:22 AM IST

Updated : Aug 9, 2023, 11:04 AM IST

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अजमेर शहर की शान आनासागर झील के किनारे अजमेर स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से बनाए गए पाथ वे सेवन वंडर्स पार्क और अन्य निर्माणों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) ने अतिक्रमण मानते हुए इसे हटाने के निर्देश देने से प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है.

एनजीटी का आदेश

अजमेर. अजमेर शहर की शान आनासागर झील के किनारे अजमेर स्मार्ट सिटी प्राइवेट लिमिटेड की ओर से बनाए गए पाथ वे सेवन वंडर्स पार्क और अन्य निर्माणों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ( एनजीटी ) ने अतिक्रमण मानते हुए इसे हटाने के निर्देश देने से प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है. याचिकाकर्ता अशोक मलिक बनाम राजस्थान सरकार के केस में यह निर्णय एनजीटी का है. इधर एनजीटी के फैसले को लेकर सियासत भी गरमाने लगी है.

याचिकाकर्त्ता अशोक मलिक ने बताया कि आनासागर झील में 300 बीघा के लगभग वेटलैंड क्षेत्र है. किसी भी झील, तालाब क्षेत्र में स्थित वेटलैंड या प्रवाह क्षेत्र में किसी भी तरह का पक्का निर्माण प्रतिबंधित है. वही नियम आना सागर झील पर भी लागू होते है. अजमेर कलेक्टर और स्मार्ट सिटी के तत्कालीन अधिकारियों ने नियमों और विरोध को तांक में रखकर वेटलैंड क्षेत्र में सेवन वंडर पार्क, पाथवे, लेक व्यू पार्क और अन्य निर्माण करोड़ों रुपए की लागत से किए हैं. जनता के पैसे की बर्बादी के साथ साथ इन निर्माण से आनासागर झील का क्षेत्र 40 प्रतिशत तक घटा दिया है. इसका खामियाजा इस बार की बारिश में जनता को भुगतना पड़ा है. झील का दायरा कम होने से बरसात में पानी सड़कों पर कई दिनों तक जमा रहा. अजमेर के लिए परेशानी हमेशा के लिए बन गई है.

याचिकाकर्त्ता अशोक मलिक ने बताया कि नगर निगम ने मामले में एनजीटी के समक्ष पक्ष रखा था कि आनासागर झील का निर्माण 1135 से 1145 के बीच हुआ. झील का निर्माण अर्णोराज ने करवाया था. यह मानव निर्मित झील है. आनासागर झील वेटलैंड रूल्स 2017 के तहत नोटिफाई नहीं है. यह रामसर कन्वेंस का उल्लंघन है. एनजीटी ने नगर निगम के दावों को सिरे से खारिज कर दिया. साथ ही एनजीटी ने माना की झील वेटलैंड के दायरे में आती है और इस पर वेटलैंड नियम लागू है. मलिक ने कहा कि एनजीटी के निर्देश पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो एक महीने बाद एक्सक्यूशन एप्लीकेशन को अमल में लाएंगे. आदेश की पालना नहीं होने पर एनजीटी जुर्माना भी लगा सकती है. उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत इन निर्माणों को तोड़ना जरूरी है. मलिक ने बताया कि आनासागर झील में काश्तकारों से वेटलैंड भूमि अधिग्रहित की गई थी. जिसका भुगतान दी काश्तकारों को नहीं किया गया.

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नो कंस्ट्रक्शन जोन घोषित होने के बाद भी किया निर्माण : याचिका कर्त्ता अशोक मलिक बताते हैं कि देश के डिफेंस सेक्रेट्री अजय विक्रम सिंह ने सेवानिवृत्ति के बाद वर्ष 2007 में आनासागर झील को बचाने और झील में गंदे नालों के पानी को रोकने के लिए हाई कोर्ट में याचिका लगाई. उनकी याचिका पर हाईकोर्ट ने अजमेर कलेक्टर को निर्देश दिए कि वह झील संरक्षण के तहत कार्य करें. साथ ही झील क्षेत्र में वेटलैंड बनाया जाए. इस आदेश पर तत्कालीन कलेक्टर ने नोटिफिकेशन जारी किया. साथ ही झील संरक्षण के तहत 300 बीघा वेटलैंड के लिए काश्तकारों से भूमि अधिग्रहित की गई. अधिग्रहण की कार्रवाई के खिलाफ काश्तकारो ने हाई कोर्ट की शरण ली. हाई कोर्ट ने इस मामले में स्टे दे दिया. इससे अधिग्रहण की प्रक्रिया रुक गई. काश्तकारों को अधिग्रहण का पैसा भी नहीं मिला.

उन्होंने बताया कि अजमेर विकास प्राधिकरण ने काश्तकारों को पैसा दिए बिना ही म्यूटेशन अपने नाम करा लिया. प्राधिकरण बिना पैसे दिए काश्तकारों की भूमि का मालिक बन गया. जबकि यह मामला कोर्ट में विचाराधीन था. अजमेर को स्मार्ट सिटी बनाए जाने की सौगात मिली तब तत्कालीन कलेक्टर गौरव गोयल के समय तय किया गया कि आनासागर झील के चारों ओर पाथवे बनाना है. उन्होंने बताया कि पाथवे बनने से पूर्व ही आना सागर झील के वेटलैंड क्षेत्र को नो कंस्ट्रक्शन जोन घोषित हो चुका था. मलिक ने बताया कि संविधान का आर्टिकल 14 कहता है कि कानून की नजर में सब समान हैं. कोर्ट में मामला विचाराधीन होने और काश्तकारों को भूमि अधिग्रहण का पैसा दिए बिना ही अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड में पाथवे का निर्माण कर दिया. उन्होंने बताया कि पाथवे का निर्माण तब शुरू हुआ था जब भवानी सिंह देथा अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के चेयरमैन और अजमेर प्रभारी सचिव थे.

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झील का दायरा कम कर अजमेर का किया बड़ा नुकसान : बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व यूआईटी चेयरमैन धर्मेश जैन ने कहा कि आना सागर झील की गहराई 16 फीट थी. सन 1975 में अजमेर में आई बाढ़ भी देखी थी. तब आनासागर की भराव क्षमता के ऊपर 3 फीट पानी था. जैन बताते हैं कि आनासागर झील क्षेत्र में ही तत्कालीन यूआईटी ने सागर विहार कॉलोनी आवासीय कॉलोनी बसाई और हाउसिंग बोर्ड ने यहां पर मकान बनाकर रिहायशी क्षेत्र बनाया. इस रिहायशी क्षेत्र को बसाने के लिए प्लान भी बनाई थी जो आज भी मौजूद है. इसके बाद झील की भराव क्षमता 13 फीट कर दी गई. जैन ने बताया कि झील के किनारे चौपाटी बनाए जाने की योजना थी, लेकिन मार्ग में कई अतिक्रमण आ रहे थे. अतिक्रमण के खिलाफ भी मैंने आवाज उठाई तो मुझे भू माफियाओं की ओर से कई धमकियां भी मिली. इसके अलावा चौरसिया वास तालाब में झील के ओवरफुल पानी को ले जाने की भी योजना तैयार की गई थी, लेकिन वह भी ठंडे बस्ते में गई. झील में वेटलैंड के लिए काश्तकारों से भूमि अधिग्रहण की गई लेकिन उसका पैसा भी काश्तकारों को नहीं दिया गया.

देवनानी को कहा था पाथवे को उपलब्धि में ना गिनवाए : जैन ने कहा कि मौजूदा विधायक वासुदेव देवनानी को भी मैंने कहा था कि जिस पाथवे को आप उपलब्धि के रूप में गिना रहे हैं अब उसका विरोध क्यों कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अजमेर का सबसे बड़ा नुकसान आनासागर झील के दायरे को 40 प्रतिशत घटाकर किया गया है. उन्होंने कहा कि एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमृत सरोवर की योजना बना रहे हैं. दूसरी ओर राज्य सरकार ने आनासागर झील के चारों और पाथवे बनाकर आनासागर झील का दायरा कम कर दिया. पाथवे बनाने के लिए लाखो टन मिट्टी आनासागर झील में डाली गई है. यह बहुत बड़ा पाप आनासागर झील के साथ किया गया है. उन्होंने कहा कि आनासागर झील से मिट्टी निकलनी चाहिए तब जाकर इसकी भराव क्षमता वापस पुराने लेवल पर आए.

ईडी की हो कार्रवाई और तत्कालीन जनप्रतिनिधि को भी लें दायरे में : कांग्रेस के पूर्व प्रदेश सचिव और अजमेर उत्तर से कांग्रेस के प्रत्याशी रहे महेंद्र सिंह रलावता ने बीजेपी पर तंज करते हुए कहा कि पाथवे का निर्माण कार्य तब शुरू हुआ था जब केंद्र और प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी. वासुदेव देवनानी और अनीता भदेल सरकार में राज्य मंत्री थे. पाथवे, लेक व्यू, समेत अन्य विकास कार्यों में मौजूदा विधायक वासुदेव देवनानी का नाम शिलापट्ट पर है. पाथवे को तो देवनानी अपनी उपलब्धि बताते रहे हैं. रलावता ने आरोप लगाया कि जब यह पाथवे बन रहा था तब बीजेपी के नेताओं को यह नजर नहीं आ रहा था. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करने की बात करती है और ईडी से जांच करवाने की बात करती है तो इस मामले की ईडी से जांच करवानी चाहिए. ईडी की जांच में तत्कालीन जनप्रतिनिधियों को भी दायरे में लेना चाहिए. तत्कालीन जनप्रतिनिधियों की स्वीकृति से ही पाथवे, लेक व्यू एवं सेवन वंडर का निर्माण हुआ है. इस भ्रष्टाचार के खेल में उनकी मौन स्वीकृति थी.

Last Updated :Aug 9, 2023, 11:04 AM IST
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