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Health Tips : दिल की बीमारी कैसे पहचाने? जानें क्यों आता है हार्ट अटैक, एक्सपर्ट से समझिए

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Published : Mar 5, 2023, 10:17 PM IST

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दिल की बीमारी कैसे पहचाने?

दुनिया भर में तेजी से बढ़ती गंभीर बीमारियों में से एक हृदय रोग भी (Health tips from heart specialist) है. पहले कभी ह्रदय रोग 50 वर्ष की आयु के बाद हुआ करते थे, लेकिन अब देखने में आ रहा है कि ह्रदय रोग हर उम्र में हो रहा है.

दिल की बीमारी कैसे पहचाने?

अजमेर. इंसान के शरीर में दिल (हृदय) महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. ऐसे में लंबी जिंदगी जीने के लिए दिल को स्वस्थ रखने की जिम्मेदारी भी हर व्यक्ति की है. दिनचर्या में छोटी-छोटी आदतें सुधार कर दिल को स्वस्थ रखा जा सकता है. दिल को स्वस्थ रखने के लिए चलिए जानते हैं अजमेर जेएलएन अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियो फिजिशियन डॉ. माधव गोपाल अग्रवाल से दिल का ख्याल रखने के लिए हेल्थ टिप्स.

हृदय रोग के यह तीन कारण : अजमेर जेएलएन अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियो फिजिशियन डॉक्टर माधव गोपाल अग्रवाल ने हृदय रोग संबंधी बीमारियों और उनसे बचने के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि अनियमित दिनचर्या, शारीरिक निष्क्रियता, खानपान और तनाव हृदय रोग के प्रमुख कारण हैं. डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि हृदय रोग जेनेटिक बीमारी भी होती है जो माता-पिता से संतान में भी हो सकती है. उन्होंने बताया कि हृदय रोग से संबंधित तीन तरह की बीमारी होती है. पहली हृदय की धड़कन कम और ज्यादा होना. दूसरा, वाल्व की समस्या और तीसरी समस्या हार्ट अटैक की है.

डॉक्टर अग्रवाल बताते हैं कि दिल की धड़कन कम और ज्यादा होना दोनों ही घातक होता है. उन्होंने बताया कि हृदय में विद्युत प्रवाह से ह्रदय में पम्पिंग होती है. इससे पूरे शरीर में रक्त का संचार होता है. हृदय की गति कम और ज्यादा होने पर किडनी फेल होने या बीपी लो होने के चांस बढ़ जाते हैं. रोगी का ईसीजी जांच करने या लक्षणों से पता चलता है कि रोगी की धड़कन कम चल रही है या ज्यादा चल रही है. उसके अनुसार ही रोगी को इलाज दिया जाता है. ड्रग्स एडिट या तनाव में रहने वाले लोगों में दिल की धड़कन तेज और ज्यादा होने की समस्या रहती है.

उन्होंने बताया कि हृदय की बीमारियों में दूसरा प्रमुख कारण दिल में छेद होना है. दिल में छेद होना जन्मजात भी हो सकता है. डॉक्टर अग्रवाल ने बताया कि हृदय में छेद रहने पर रोगी को बार-बार जुखाम, खांसी, बुखार रहता है और उसका शारीरिक विकास भी कम होता है. उन्होंने बताया कि माता के गर्भ में पल रहे 3 से 4 महीने के बच्चे में भी हृदय में छेद होने की समस्या का पता लगाया जा सकता है. जिसका समय पर इलाज किया जा सकता है.

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वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. माधव गोपाल अग्रवाल बताते हैं कि वाल्व की समस्या ग्रामीण और गरीब बच्चों में ज्यादा देखने को मिलती है. STAPHYLO COCCI इंफेक्शन बच्चों में पाया जाता है. इससे जोड़ों में दर्द रहता है. यह 5 से 10 वर्ष की आयु तक होता है. इसमें बैक्टीरिया हृदय के वाल्व पर जमा हो जाता है. इस कारण वाल्व का खुलना और बंद होना रुक जाता है. इस कारण रोगी में सांस भी फूलती है. उन्होंने बताया कि लड़कियां के बालिग होने पर जब पहली बार गर्भ धारण करती हैं तब जांच में पता चलता है. वरना उससे पहले जागरूकता की कमी से बच्चों में इस तरह की समस्या का पता माता-पिता को नहीं चलता. इस कारण वह बच्चों को चिकित्सक को भी नहीं दिखाते.

उन्होंने बताया कि हृदय रोग की समस्याओं पर ध्यान नहीं देने पर जान भी जा सकती है. ह्रदय में वाल्व की समस्या से गर्भवती महिलाओं की मौत भी हो सकती है. पहले ही बीमारी का पता चलने पर महिला को इलाज होने तक गर्भधारण नहीं करने की सलाह दी जाती है. वरिष्ठ कार्डियो फिजिशियन डॉक्टर माधव गोपाल अग्रवाल ने बताया कि हृदय में वाल्व संबंधी बीमारी का इलाज केवल सर्जरी है. इसमें वाल्व को रिपेयर या फिर बदला जा सकता है. ह्रदय रोग का तीसरा कारण हार्ट अटैक के बारे में बताते हुए डॉ. अग्रवाल कहते है कि हार्ट अटैक अब किसी भी आयु में हो सकता है. हार्ट अटैक का मुख्य कारण हार्ट में कोरोनरी आर्टरी में वसा जमना है. उन्होंने बताया कि शारीरिक श्रम कम करने से, ज्यादा तनाव लेने, बिगड़ी हुई लाइफस्टाइल, अशुद्ध और वसायुक्त खान पान, डायबिटीज के कारण हार्ट अटैक की समस्या ज्यादा रहती है.

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हृदय रोग के लिए यह होती है जांच : डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि हृदय रोग की मूल समस्या जानने के लिए चिकित्सक रोगी का ईसीजी जांच, ब्लड टेस्ट, इको, कार्डियोग्राफी/ टीएमटी, एंजियोग्राफी, बाईपास करवाते हैं. इन जांच के माध्यम से ही रोगी की असल बीमारी पकड़ में आती है और इलाज उसी के अनुसार किया जाता है.

हृदय को स्वस्थ रखने के लिए इन बातों का रखें ख्याल : बातचीत में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. माधव गोपाल अग्रवाल ने बताया कि हृदय रोग से बचने के लिए व्यक्ति को अपने वजन पर नियंत्रण करना आवश्यक होता है. उन्होंने बताया कि वजन के लिए बेसलमेटोबोलिक इंडेक्स (बीएमआई) एक प्रकार की जांच होती है. उन्होंने बताया कि व्यक्ति की हाइट और वेट के बीच संतुलन होना चाहिए. बीएमआई जांच में व्यक्ति की हाइट और वेट के संतुलन की जांच होती है. उन्होंने बताया कि व्यक्ति में बीएमआई 25 रहता है तो वह फिट है. जबकि, 25 से 30 तक यह रिस्की माना जाता है. 30 से 35 होने पर हाई रिस्क माना जाता है.

डॉ. माधव गोपाल अग्रवाल ने बताया कि खान-पान का हर व्यक्ति को विशेष ध्यान रखना चाहिए. फल और सब्जियों का उपयोग ज्यादा करें. वसा युक्त भोजन मसलन फास्ट फूड का उपयोग न करें. रोज व्यायाम और योगा अवश्य करें. उन्होंने बताया कि बीड़ी, सिगरेट शराब और अन्य नशा दिल की बीमारी को और बढ़ाता है. इसलिए नशे से दूर रहे. उन्होंने बताया कि 40 वर्ष की उम्र पार करने वाले लोगों में अगर सीने में दर्द और जकड़न, घबराहट होना, चक्कर आना, सीढ़ियां चढ़ने पर सांस फूलना, चलने फिरने पर तेज पसीना आना और उल्टी आना जैसे लक्षण नजर आते हैं तो उन्हें तुरंत हृदय रोग विशेषज्ञ से चिकित्सा परामर्श लेना चाहिए.

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