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अजमेर के 1992 ब्लैकमेल कांड पर बनीं फिल्म Ajmer Files, रिलीज होने के पहले ही विवादों में घिरी

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Published : Jun 6, 2023, 7:56 PM IST

कश्मीर फाइल्स और केरला फाइल्स के बाद 1992 में अजमेर में हुए अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड पर आधारित फिल्म Ajmer Files आने वाली है. यह फिल्म जुलाई में रिलीज होने वाली है.रिलीज होने के पहले ही फिल्म विवादों में घिर गई है.

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अजमेर के 1992 ब्लैकमेल कांड पर बनीं फिल्म Ajmer Files

अजमेर के 1992 ब्लैकमेल कांड पर बनीं फिल्म Ajmer Files

अजमेर. सन् 1992 में अजमेर में हुआ अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड देश का सबसे घिनौना कांड था. इस कांड ने कई लड़कियों की जिंदगी तबाह कर दी तो कई लड़कियों ने आत्महत्या कर ली. इस कांड को लेकर अब एक फिल्म बनी है अजमेर फाइल्स. यह फिल्म जुलाई माह में रिलीज होने जा रही है. फिल्म रिलीज होने से पहले ही अजमेर दरगाह की अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने फिल्म को पॉलीटिकल स्टंट बताया है. दूसरी ओर बीजेपी नेताओं का कहना है कि फिल्म से हिंदू धर्म के लोगों में जागरूकता आएगी.

इस फिल्म से नई पीढ़ियां जागरूक होंगीः ब्लैकमेल कांड का बदनुमा दाग आज भी अजमेर पर लगा हुआ है. यह वो कांड था जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था. इस कांड में अधिकांश आरोपी दरगाह के खादिम समुदाय से जुड़े हुए थे. इन आरोपियों में कुछ तत्कालीन समय में यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारी थे. इस फिल्म को लेकर अभी से ही चर्चे शुरू हो चुके हैं. अजमेर दरगाह से जुड़ा एक पक्ष इस कांड को दरगाह और चिश्ती समुदाय से जोड़ने से खफा है. उनका कहना है कि अच्छे बुरे लोग हर समाज में होते हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दरगाह और उससे जुड़े खादिमों को बदनाम किया जाए. दूसरी ओर बीजेपी नेताओं का कहना है कि फिल्म के माध्यम से तत्कालीन समय का लव जिहाद का काला सच लोगों के सामने आएगा. इससे नई पीढ़ियां जागरूक होंगी. उन्हें पता चलेगा कैसे एक विशेष समुदाय से जुड़े लोग लव जिहाद के नाम पर लड़कियों की जिंदगियां तबाह कर रहे हैं और यह सब कुछ नया नहीं है.

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दरगाह और चिश्ती समुदाय को टारगेट करना गलत: सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में खादिमो कि संस्था अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने अजमेर फाइल्स फिल्म को पॉलीटिकल स्टंट बताया है. चिश्ती ने कहा कि पहले कश्मीर फाइल्स फिल्म आई थी जो एकतरफा स्टोरी थी. कर्नाटक चुनाव के वक्त निकट राज्य केरला को लेकर केरला फाइल करके एक फिल्म आई जिसको वहां की जनता ने रिजेक्ट कर दिया. इस फिल्म में 32 हजार लड़कियों को पीड़ित बताया गया था. जबकि तीन ही पीड़ित केरला हाईकोर्ट में पहुंची थीं. इसी तरह अजमेर फाइल्स में कुल 12 लड़कियां हैं. जबकि ढाई सौ लड़कियां इस कांड में बताई जा रही हैं. उन्होंने कहा कि अजमेर फाइल्स के नाम से ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह को लेकर आरोप लगाए जा रहे हैं. जबकि दरगाह में यह घटना घटित नहीं हुई और दरगाह से जुड़े हुए चिश्ती को भी बदनाम किया जा रहा है.

चिश्ती कौम को बदनाम किया जा रहा हैः दरगाह से जुड़े हुए 5 हजार खादिम है. इनमें 5 से 7 जने कांड में शामिल थे, लेकिन पूरी चिश्ती कौम को बदनाम किया जा रहा है. अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने कहा कि राजस्थान में चुनाव आगामी दिनों में होने जा रहे हैं ऐसे में ध्रुवीकरण के लिए ऐसा किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस फिल्म के माध्यम से चिश्ती परिवार को ही टारगेट किया जा रहा है. इस कांड में कुछ लोगों को सजा हो चुकी है. वहीं कुछ लोग के खिलाफ मामला कोर्ट में विचाराधीन है. चिश्ती ने कहा कि जनता समझदार है. कर्नाटक के निकट राज्य केरला को लेकर केरला फाइल्स स्टोरी बनीं. जिसको कर्नाटक की जनता ने रिजेक्ट कर दिया. उन्होंने कहा कि हर समाज में अच्छे और बुरे लोग होते हैं. इस कांड में एक ही समाज के लोग नहीं बल्कि कई समाज के लोग शामिल थे. इसमें कर्मचारी भी शामिल थे. उन्होंने कहा कि दरगाह को इसलिए टारगेट किया जा रहा है क्योंकि यहां गैर मुस्लिम भी आते हैं. दरगाह में गैर मुस्लिम न आए इसलिए यह फिल्म बनाई गई है. चिश्ती ने कहा कि ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल है.

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लड़कियों का हुआ था आर्थिक और शारीरिक शोषणः पूर्व राज्य मंत्री एवं अजमेर दक्षिण से विधायक अनिता भदेल ने कहा कि अजमेर के इतिहास में अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड बदनुमा दाग है. तत्कालीन समय में कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं को स्कैंडल में फंसाया गया और उनकी अश्लील फोटो खींचकर उन्हें ब्लैकमेल किया गया. स्कैंडल में फंसी लड़कियों का आर्थिक और शारीरिक रूप से शोषण किया गया. भदेल ने फिल्म निर्देशक को धन्यवाद दिया है. उन्होंने कहा कि इस फिल्म से दो चीजें सामने आएगी. इस कांड को अंजाम देने वाले लोगों का चेहरा बेनकाब होगा. वहीं आने वाली पीढ़ी खासकर बच्चियों को पता नहीं है कि लव जिहाद के आधार पर किस तरह से उन्हें ब्लैकमेल कर उनकी जिंदगी को बर्बाद किया जाता है. इस फिल्म के माध्यम से समाज को भी जागरूकता मिलेगी. उन्होंने कहा कि जो कोई भी इस फिल्म का विरोध कर रहे हैं उनसे पूछा जाना चाहिए कि वह इस फिल्म का विरोध क्यों कर रहे हैं. विरोध करने वाले क्या अपराधियों के साथ खड़े है. क्या वह खुद भी इस कांड में अपराधी हैं.

कांग्रेस की थी मिलीभगत: उन्होंने कहा कि जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाना कहां का न्याय है. यह करके क्या साबित करना चाहते हैं. भदेल ने कहा कि फिल्म का विरोध कर रहे लोग उन बच्चियों का जीवन वापस लौटा सकते हैं जिन्होंने आत्महत्या की है या जिनका जीवन बर्बाद हुआ है. इस फिल्म का विरोध नहीं किया जाना चाहिए और जो लोग विरोध कर रहे है ऐसे लोग भी कहीं न कहीं इस अपराध में सम्मिलित है. भदेल ने कहा कि सन 1992 में प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी. इस कांड में कई लोगों के नाम थे जो बाद में हटा दिए गए. इसके से जुड़े आरोपियों को आज तक सरकार उपकृत करती आई है. पीड़ितों को समय पर न्याय नहीं मिला. इसका कारण लचर जांच के साथ जांच में छोड़ी गई खामियां थीं. उन्होंने कांड में बहुत सारे लोग अपराधी थे लेकिन कुछ ही लोगों को इसमें शामिल किया गया. भदेल का आरोप है कि इस कांड में कहीं न कहीं कांग्रेस की भी मिलीभगत थी. तत्कालीन कांग्रेस के पदाधिकारी इस कांड में शामिल थे.

मुख्य आरोपी सजा से बच गयाः भाजपा शहर अध्यक्ष रमेश सोनी ने कहा कि अजमेर का अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड अजमेर के लिए अभिशाप है. तत्कालीन समय में कॉलेज और स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं को बहला-फुसलाकर उनके साथ लव जिहाद के माध्यम से विशेष वर्ग के युवकों की ओर से उनके साथ दुष्कर्म करने और अश्लील फोटो खींचकर उनका आर्थिक और शारीरिक रूप से शोषण किया गया, यह निंदनीय है. सोनी ने कहा कि आज भी कई पीड़ित दादी-नानी बनने के बाद भी उस पीड़ा को झेल रही हैं. उन्होंने कहा कि कानून व्यवस्था के लचीलापन का फायदा आरोपियों ने उठाया है. उस वक्त कानून से आरोपियों को कठोर से कठोर सजा मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल पाई. पूरा अजमेर इस बात का गवाह है कि इस कांड का मुख्य आरोपी मानसिक रोगी बनकर सजा से बच गया. वही इस कांड में लोग डर की वजह से गवाह के लिए खड़े नहीं हुए. जिन पीड़ितों ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत दिखाई उन्हें आज भी 32 साल बाद कोर्ट में बुलाए जाने पर आना पड़ता है. यानी पीड़िता ने जो दंश झेला उससे कहीं ज्यादा पीड़ा पीड़ितों ने बार-बार कोर्ट जाकर झेली है.

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