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यूक्रेन से लौटे मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए बढ़ानी होंगी 20 फीसदी सीटें, फीस भी करनी होगी आधी...एक्सपर्ट्स बोले- प्रैक्टिकली संभव नहीं

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Published : Mar 19, 2022, 7:53 PM IST

Updated : Mar 19, 2022, 10:53 PM IST

यूक्रेन से लाए गए मेडिकल स्टूडेंट्स (medical students returned from Ukraine) की पढ़ाई पूरी कराना भी अब सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. ऐसा इसलिए क्योंकि देश में 605 एमबीबीएस कॉलेज में करीब 90 हजार सीटें हैं जबकि हर साल मेडिकल की पढ़ाई के लिए 33 हजार स्टूडेंट्स विदेश जाते हैं. ऐसे यूक्रेन से बड़ी संख्या में लौटे विद्यार्थियों के लिए एमबीबीएस में 20 फीसदी सीटें बढ़ानी होगी तभी उनकी डिग्री पूरी हो सकेगी. हालांकि एक्सपर्ट्स का कहना है प्रैक्टिकली ऐसा संभव नहीं है. पढ़ें पूरी खबर...

medical students returned from Ukraine
medical students returned from Ukraine

कोटा. यूक्रेन से मेडिकल स्टूडेंट्स (medical students returned from Ukraine) घर तो लौट आए हैं लेकिन अभी उनकी मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि सभी अपना कोर्स अधूरा ही छोड़कर आए हैं और डॉक्टर बनने का सपना भी बीच में ही अटका हुआ है. यूक्रेन से लौटे मेडिकल स्टूडेंट्स की अधूरी पढ़ाई पूरी कराने के लिए भी सरकार की ओर से मेडिकल कॉलेजों में सीटें बढ़ानी पड़ेंगी. इसके अलावा उनकी फीस में भी रियायत देनी होगी, तभी ये संभव हो पाएगा. जबकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि फिलहाल ये जमीनी स्तर पर संभव नहीं है.

भारत में वर्तमान में 605 एमबीबीएस कॉलेज में 90,825 मेडिकल सीटें हैं. जबकि हर साल विदेश जाने वाले विद्यार्थी करीब 33,000 हैं जिनका ऑफिशियल डाटा भी मौजूद नहीं है. ऐसे में इन बच्चों को सरकारी मेडिकल सीट उपलब्ध कराना सरकार के लिए टेढ़ी खीर है. इन्हें अब दोबारा से नीट का एक्जाम देना होगा. देश में नए मेडिकल कॉलेज खोलने होंगे. साथ ही जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज बनाया जाएगा.

medical students returned from Ukraine

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हालांकि एक साथ 30 से 32 हजार विद्यार्थियों को कॉमन प्लेटफार्म पर सुविधा उपलब्ध करवाना मुश्किल बात होगी. एक साथ इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना भी संभव हो पाना बड़ी बात है. एक नए मेडिकल कॉलेज को तैयार होने में 3 से 4 साल का समय लगता है. जबकि उसे पूरी तरह से बंद कर खड़ा होने में 6 से 7 साल लग जाते हैं. इस हिसाब से इन विद्यार्थियों को भारत में एमबीबीएस में प्रवेश दिलाना प्रैक्टिकली संभव नहीं लग रहा है.

विदेश में 25 से 50 लाख, भारत में दोगुनी फीस
भारत से जाने वाले बच्चे करीब 400 से ज्यादा विदेशी कॉलेज में पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें अकेले रशिया में 200 से ज्यादा कॉलेज हैं. जहां चार से पांच हजार विद्यार्थी हैं. इसके अलावा यूक्रेन में करीब 20 और चाइना में 45 मेडिकल कॉलेज व यूनिवर्सिटी भारतीय छात्रों को प्रवेश दे रही है.

एक्सपर्ट परिजात मिश्रा का मानना है कि रशिया और यूक्रेन में फीस एमबीबीएस की 20 से 24 लाख रुपए तक है. जबकि कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज़्बेकिस्तान, और जॉर्जिया में यह फीस 15 से 18 लाख रुपए हैं. नेपाल और बांग्लादेश में 50 से 55 लाख में एमबीबीएस हो रही है. जबकि भारत में कुछ छोटे कॉलेज और यूनिवर्सिटी में करीब 60 लाख रुपए का खर्चा एमबीबीएस में आ रहा है.

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वहीं बड़े कॉलेजों की बात की जाए तो यह आंकड़ा एक करोड़ से ज्यादा है. विदेशों में आधी फीस में ही एमबीबीएस होने के चलते स्टूडेंट वहां पर जा रहे हैं. विदेश जाने वाले बच्चों में सबसे ज्यादा रशियन फेडरेशन की कंट्री होने जा रहे हैं. इसके बाद चाइना, यूक्रेन, कजाकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, जॉर्जिया, पोलैंड, बांग्लादेश, फिलिपिंस, नेपाल, पोलैंड, क्रोशिया, सरबिया व टर्की में एमबीबीएस के लिए जा रहे हैं.

हर साल 35 से 35 हजार विद्यार्थी विदेश में ले रहे हैं प्रवेश
कोटा में निजी कोचिंग संस्थान के करियर काउंसलर एक्सपर्ट परिजात मिश्रा का कहना है कि भारत से बाहर एमबीबीएस करने जाने वाले विद्यार्थियों का कोई भी ऑफिशल डाटा उपलब्ध नहीं है. अधिकांश बच्चे एजेंट के जरिए ही एमबीबीएस करने बाहर के विश्वविद्यालय और मेडिकल कॉलेज में जाते हैं. सरकारी एजेंसी या फिर कोई प्रॉपर चैनल नहीं है. यूनिवर्सिटी की तरफ से ही वीजा और ऐडमिशन लेटर आता है. जिसके बाद में संबंधित एंबेसी स्टूडेंट को वीजा जारी कर देती है. हालांकि बीते 5 सालों की बात की जाए तो 33 से 35 हजार स्टूडेंट बाहर एमबीबीएस करने जा रहे हैं. कोविड-19 के 2 साल 2020 व 2021 में संख्या कम थी. इसमें 4 से 5 हजार बच्चों की कमी आई थी.

भारत में अधिकतम सीटें 250 विदेशों में 600 तकः मिश्रा का कहना है कि भारत में 605 मेडिकल कॉलेज में 90825 एमबीबीएस की सीटें हैं. सरकारी कॉलेजों में यह आंकड़ा आधा रह जाता है. जिसमें करीब 300 के आस-पास मेडिकल कॉलेज है और 45,000 एमबीबीएस की सीटें हैं. भारत में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 250 सीट अधिकतम है. जबकि यूक्रेन और रशिया में यह आंकड़ा 600 से भी ज्यादा पहुंच रहा है. मेडिकल एजुकेशन के इंफ्रास्ट्रक्चर की बात की जाए तो रशिया और यूक्रेन में भारत से काफी अच्छा है.

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भारत में सब्सिडाइज एजुकेशन बच्चों को मिले
एक्सपर्ट का मानना है कि बाहर पढ़ने जा रहे बच्चों के कारण भारत लाखों रुपए का रेवेन्यू भी खो रहा है. कर्नाटक में सरकार ने प्राइवेट कॉलेजों में भी सरकारी फीस पर ही एमबीबीएस करवाने का नियम बनाया हुआ है. इसका फायदा वहां से एमबीबीएस करने वाले विद्यार्थियों को मिल रहा है. इसी तरह मध्य प्रदेश में सरकार गरीब बच्चों को मुख्यमंत्री प्रोत्साहन योजना के तहत एमबीबीएस करवा रही है. योजना के तहत आने वाले कॉलेजों में स्टूडेंट्स की फीस को सरकार वहन करती है. इसी तरह से अगर सरकार पूरे भारत में ही ऐसी योजनाओं को क्रियान्वित करती है, तो उसका फायदा इन बच्चों को मिलेगा और बाहर से एमबीबीएस करने वाले बच्चों की संख्या कम होगी.

बच्चों के साल बिगड़ जाएंगे, वे पिछड़ भी जाएंगे
यूक्रेन से वापस लौटे बच्चों के पैरंट्स ने कोटा में एक समिति बनाई है. जिसके अध्यक्ष विभाकर जोशी हैं. जोशी का मानना है कि सब कुछ ठीक चल रहा था. हमें कोई प्रॉब्लम नहीं थी. अब बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं. उनके पढ़ाई सुचारू और सुव्यवस्थित तरीके से कैसे चलेगी? हमारी राज्य और केंद्र सरकार दोनों से गुजारिश है कि जिस तरह से यूक्रेन से हमारे बच्चों को लाने में मदद की है. उसी तरह से शिक्षा की व्यवस्था की जाए. हमारा मानना है कि इन बच्चों को वहां के सिलेबस से एक समरूपता लेते हुए भारत में एडमिशन दिया जाए. सरकार यह कर सकती है. इससे बच्चों को समस्या नहीं होगी, अन्यथा कई बच्चों के साल बिगड़ जाएंगे और वह पिछड़ जाएंगे.

परिवार ही बर्बाद हो जाएगा पूंजी पढ़ाई में लगाई
श्रीनाथपुरम में रहने वाले विष्णु प्रसाद शर्मा की बेटी भी यूक्रेन से वापस लौटी है. उनका कहना है कि मैंने और अधिकांश पेरेंट्स ने बच्चों को भारत में एमबीबीएस की पढ़ाई महंगी होने के चलते ही विदेश में भेजा था. इसके लिए भी जमा पूंजी से पैसा दिया था. साथ ही शिक्षा ऋण भी बच्चों के लिए लिया है. अब वहां पर पढ़ाई होना असंभव है, इसके चलते हमारे बच्चों का भविष्य अंधकार में जाता दिख रहा है.

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इन बच्चों के साथ उनके परिवार भी बर्बाद हो जाएंगे क्योंकि वह पूरी जमा पूंजी लगा चुके हैं. कुछ सालों में तो एजुकेशन लोन की किश्त भी चुकानी होगी. विष्णु प्रसाद शर्मा का कहना है कि नेशनल मेडिकल कमीशन चाहे तो अपनी तरफ से अतिरिक्त सीट बच्चों को उपलब्ध करवा दें. जिनसे स्टूडेंट्स एमबीबीएस कर ले और कॉलेज को अतिरिक्त आय भी हो जाएगी.

मेरी यूनिवर्सिटी में ही है 3 से 4 हजार स्टूडेंट
आरकेपुरम निवासी धृति शर्मा का कहना है कि चेन्निवेस्सी यूनिवर्सिटी बीते 2 सालों से पढ़ाई कर रही थी. चौथा सेमेस्टर मेरा पूरा हो गया है और अब आगे की पढ़ाई में डिस्टरबेंस आ रहा है. वहां पर पैनिक की सिचुएशन पैदा हो गई है. हमारी यूनिवर्सिटी कब खुलेगी, कब क्लासेज होगी और हम कब वापस लौटेएंगे? इसका कोई अंदाजा नहीं है. भारत सरकार को हमारे लिए तुरंत फैसला लेना चाहिए.

मेरी यूनिवर्सिटी में तीन से 4 हजार भारतीय छात्र हैं. जबकि पूरे यूक्रेन में एमबीबीएस के 16000 स्टूडेंट हैं. अब इन सब के साथ ही समस्या खड़ी हो गई. हमारी यूनिवर्सिटी के इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान नहीं पहुंचा है, जबकि कुछ स्टूडेंट्स खारकीव और कीव में हैं, उनकी तो पूरी यूनिवर्सिटी खत्म हो चुकी है, उनकी पढ़ाई कैसे होगी?. हमारी यूनिवर्सिटी ने ऐसा आर्डर भी निकाला है कि कीव और खारकीव यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स की पढ़ाई हमारे यहां आगे पूरी करवाई जाएगी.

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सरकार हमारी एमबीबीएस यूक्रेन की फीस में यहां करवाए
यूक्रेन में बीते 4 सालों से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही विशाखा पारेख का कहना है कि भारत वापस लौटने के बाद में ऑनलाइन पढ़ाई शुरु तो हो गई है. लेकिन लगातार नहीं चल पा रही है. वहां पर कई सारी समस्याएं हैं. यूनिवर्सिटी का इंफ्रास्ट्रक्चर बिगड़ गया है. नेटवर्क का भी इश्यू है. हम सरकार से यही कह सकते हैं कि हमारा पढ़ाई लगातार रखें. हमने इतना कोर्स कर लिया है, तो हम शुरू से पढ़ाई नहीं कर सकते हैं. यहां पर सीट से बढ़ानी चाहिए. एमबीबीएस में पढ़ाई भी लगातार होनी चाहिए. हमें सीट बढ़ाकर इसी फीस में प्रवेश दे दिया जाए.

अधिकांश स्टूडेंट ने लिया एजुकेशन लोन
यूक्रेन से वापस लौटे स्टूडेंट के सामने एक समस्या और है. उन्होंने एजुकेशन लोन लेकर वहां पर पढ़ाई का फैसला किया था. क्योंकि अधिकांश मिडिल क्लास फैमिली से हैं. जिन्हें नीट क्वालीफाई करने के बाद में सरकारी कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला और प्राइवेट कॉलेज की फीस उनके पेरेंट्स वहन नहीं कर पा रहे थे. क्योंकि वह 60 लाख से एक करोड़ रुपए है. इसके चलते ही इन बच्चों ने सस्ती एमबीबीएस करने के लिए विदेशों का रुख किया था. अब उनके ऊपर संकट आ गया है. अब उनके परिजन एजुकेशन लोन की इंस्टॉलमेंट भी कैसे अदा कर पाएंगे?

Last Updated :Mar 19, 2022, 10:53 PM IST
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