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हर व्यवस्था की कमजोरियों को कोरोना महामारी ने उजागर किया है...सच्चा लोकतंत्र, सत्ता और जिम्मेदारी के विकेन्द्रीकरण से खुद को अलग करता है: चिदंबरम

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Published : Jul 16, 2021, 3:42 PM IST

Updated : Jul 16, 2021, 7:49 PM IST

Seminar in Rajasthan Legislative Assembly,  Rajasthan Legislative Assembly
राजस्थान विधानसभा

राजस्थान विधानसभा में शुक्रवार को 'वैश्विक महामारी और लोकतंत्र की चुनौतियां' विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कोरोना काल में केंद्र सरकार की केंद्रीकृत व्यवस्था की आलोचना करते हुए इसे सबसे बड़ी चुनौती बताया. वहीं, सीपी जोशी ने कहा कि लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब देश की इकोनॉमी मजबूत होगी. कटारिया ने कहा कि कोरोना काल खंड में सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा के क्षेत्र में रही.

जयपुर. कोरोना महामारी (Corona Pandemic) में लोकतंत्र की चुनौतियां केवल राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि वैश्विक चुनौतियां हो गई हैं. कोरोना महामारी ने वैक्सीन राष्ट्रवाद को भी जन्म दिया जो विकृत मोड़ ले सकता है. यह कहना है पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम (P Chidambaram) का. राजस्थान विधानसभा (Rajasthan Legislative Assembly) में शुक्रवार को 'वैश्विक महामारी और लोकतंत्र के समक्ष चुनौतियां' विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया. सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए पी चिदंबरम ने कहा कि इस महामारी ने कई चुनौतियों को जन्म दिया है.

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पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि हर देश और हर राजनीतिक व्यवस्था को महामारी ने चुनौती दी है और हर शासक को महामारी से खतरा है. सच है, कुछ दूसरों की तुलना में अधिक कमजोर हैं. चिदंबरम (P Chidambaram) ने कहा कि प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था यह दावा करती है कि वो अपने लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त है, लेकिन इस महामारी ने उन दावों में व्याप्त खामियों को उजागर भी किया है.

हर व्यवस्था की कमजोरियों को इस महामारी ने उजागर किया है

कोरोना के कारण लॉकडाउन लगा, कई लोगों के रोजगार छिन गए, बच्चे शिक्षा से वंचित हो गए और कई लोग काल के ग्रास बन गए. भारत में दूसरी लहर आई, लेकिन कुछ देश ऐसे हैं जहां तीसरी और चौथी लहर का सामना भी हो गया. महामारी का सबसे भयावह पहलू यह है कि यह कब खत्म होगा और यह कब खत्म होगा यह कोई नहीं जानता. ये सभी महामारी के बारे में चिंतित होने के कारण हैं.

उन्होंने कोरोना महामारी में कई चुनौतियों को जन्म देने की बात कही और 7 चुनौतियों को भी गिनाया. इसमें खास तौर पर पहली चुनौती केंद्रीकरण के खतरे को बताया. उन्होंने कहा कि एक सच्चा लोकतंत्र सत्ता और जिम्मेदारी के विकेन्द्रीकरण द्वारा खुद को अलग करता है. यह सिद्धांत एक संघीय देश में अधिक मान्य है और इससे भी अधिक मान्य है यदि देश राज्यों का एक संघ है, जहां प्रत्येक राज्य इतिहास, भाषा, संस्कृति और लोगों की राजनीतिक पसंद के आधार पर अन्य राज्यों से अलग है. चिदंबरम (P Chidambaram) ने इस दौरान कोरोना के टीकों की आपूर्ति से जुड़ा मामले का उदाहरण दिया.

हर शासक को महामारी से खतरा है

चिदंबरम (P Chidambaram) ने कहा कि दूसरी चुनौती टीकाकरण कार्यक्रम के डिजाइन और क्रियान्वयन में है. उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में लोगों को टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. केंद्र और राज्य सरकार लोगों को सूचित करने और उन्हें शिक्षित करने के लिए मिलकर काम करें और लोगों को इसके लिए प्रेरित करें. ऐसे प्रयास में राजनीति का कोई स्थान नहीं है.

उन्होंने कहा कि राजनीतिक पक्षपात जिसमें ऑक्सीजन, वेंटिलेटर और टीकों का आवंटन आदि से जुड़ी बातें सामने आई, जिससे महामारी के खिलाफ जंग को झटका लगा. उन्होंने संसाधन और उसके आवंटन को तीसरी चुनौती बताया. साथ ही लोगों के बीच असमानता और गरीबी को चौथी चुनौती बताया. पांचवी चुनौती लोगों की पीड़ा को कम करने के लिए विधायी शाखा को काम करने योग्य बनाना है. कार्यपालिका शाखा सारी शक्तियां अपने हाथ में लेने के लिए तैयार है और विधायी शाखा को एक मध्यस्थ के रूप में मानता है.

एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां शक्तियों का स्पष्ट पृथक्करण होता है, जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका में है. विधायक खुद को मुखर कर सकते हैं. यूनाइटेड किंगडम जैसे पुराने स्थापित लोकतंत्रों में संसद को बैठक के लिए बुलाना और लगभग दैनिक आधार पर इसके सत्र आयोजित करना अकल्पनीय होगा.

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पाठ्यपुस्तकों से बंधे लोकतंत्र संसद का सत्र न बुलाने या संसद के सत्रों को कम करने का बहाना ढूंढते हैं. वे संसदीय समितियों की बैठकें नहीं करने के लिए नियमों में बहाने ढूंढेंगे. वे इस तरह की समिति की बैठकों की सुविधा के लिए प्रौद्योगिकी को नियोजित नहीं करने के तर्क भी पाएंगे. यही वह कीमत है जो जनता और निर्वाचित विधायक शासकों को पत्र का पालन करने की अनुमति देने के लिए चुकाते हैं. लेकिन संवैधानिक लोकतंत्र की भावना को दफन करते हैं.

कोरोना काल खंड में सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा

चिदंबरम ने कहा कि लोकतंत्र के लिए चुनौतियां केवल राष्ट्रीय स्तर पर नहीं बल्कि वैश्विक चुनौतियां भी है. इस दौरान उन्होंने महामारी में वैक्सीन राष्ट्रवाद के जन्म की बात भी कही और इसे असामान्य घटना बताया. पी चिदंबरम (P Chidambaram) ने कहा कि टीके को बढ़ावा देने के लिए मैं आपके टीके के उपयोग से अनुमति नहीं दूंगा. यह स्थिति इस वैश्विक महामारी के लिए अत्यंत ही प्रतिकूल प्रतिक्रिया रही. इस दौरान उन्होंने भारत में बने कोवैक्सीन को कुछ देशों में अनुमोदन को रोक देने का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा कि वैक्सीन राष्ट्रवाद ने महामारी के खिलाफ वैश्विक सहयोग के चक्र में बहुत कुछ बदलाव कर दिया.

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि कोरोना काल खंड में सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा के क्षेत्र में रही क्योंकि शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन एजुकेशन की बात कही गई. लेकिन आज मेरे जनजाति क्षेत्र में कई परिवारों के पास इंटरनेट नहीं है, मोबाइल नहीं है फिर उनके बच्चों की शिक्षा कैसे पूरी होगी.

कटारिया (Gulabchand Kataria) ने कहा कि ऑनलाइन क्लासेस (Online Classes) को लेकर कितनी भी ऊंची बातें कर लो और कह दो कि एक घर में 12 मोबाइल हो सकते हैं, लेकिन आदिवासी क्षेत्र में आज भी स्थिति खराब है और इस बारे में हम लोगों को विचार करना चाहिए. कटारिया ने कहा कि आर्थिक और सामाजिक व्यवस्थाओं को भी देखना चाहिए क्योंकि भगवान ताले में बंद हैं और लॉकडाउन आता रहा तो भगवान ताले में ही बंद रहेंगे. इससे लाखों लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी.

लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब देश की इकोनॉमी मजबूत होगी

कटारिया ने कहा कि मेडिकल तैयारियों के लिहाज से जो देश खुद को सक्षम समझते थे और प्रगतिशील मानते थे, उन्होंने भी कोरोना की पहली लहर आई तो हाथ खड़े कर दिए. उनके वहां होने वाली मृत्यु के आंकड़ों को देखकर पूरी दुनिया थर्राने लगी. भारत ने कोरोना की पहली लहर को आसानी से पार कर लिया क्योंकि समय रहते देश में लॉकडाउन और अन्य व्यवस्था सरकार ने कर ली थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लॉकडाउन के फैसले पर लोगों को बुरा जरूर लगा, लेकिन वह फैसला सही था.

राष्ट्रमंडल संसदीय संघ राजस्थान शाखा के सभापति और विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी (Speaker CP Joshi) ने सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इस देश का लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब देश की इकोनॉमी मजबूत होगी. इकोनॉमी को मजबूत करने के लिए जरूरी है कि हम ऐसी नीति अपनाएं जिससे देश की इकोनॉमी मजबूत हो और आम लोगों का जीवन स्तर और आगे बढ़ सके.

देश की इकोनॉमी को समझना बेहद जरूरी

जोशी ने कहा कि कोई भी जनप्रतिनिधि प्रभावशाली ढंग से अपनी भूमिका का निर्वहन तब तक नहीं कर सकता यदि वे इकोनॉमी को नहीं समझता. इसलिए इस देश की इकोनॉमी को समझना बेहद जरूरी है. विचारधारा अलग और वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, लेकिन देश का निर्माण करने में जिन्होंने भूमिका निभाई उनके अनुभवों का लाभ लेकर हमें इस देश के लोकतंत्र को मजबूत करने का प्रयास करते रहना चाहिए. जोशी ने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम (P Chidambaram) आलोचक नहीं समालोचक हैं और वे देश की नीतियों में किस तरीके से परिवर्तन हो ताकि देश के विकास को गति मिल पाए इसके लिए रेगुलर मीडिया में आर्टिकल भी लिखते हैं.

राज्यसभा सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे (Vinay Sahasrabuddhe) ने कहा कि भारत देश के डीएनए में ही डेमोक्रेसी है क्योंकि प्राचीन काल से यहां आध्यात्मिक जनतंत्र है. लोकतंत्र केवल वोटिंग या चर्चा का विषय नहीं है बल्कि विचार विमर्श से निकलने वाला नवनीत है. महामारी ने पूरे देश ही नहीं बल्कि विश्व में संदेह का वातावरण निर्मित कर दिया है. अपरिचित के भय ने सभी को जकड़ लिया है. महामारी के दौर में लोगों के आम जीवन गतिविधियों को बुरी तरह प्रभावित किया है.

भारत देश के डीएनए में ही डेमोक्रेसी है

उन्होंने बताया कि इस दौर में विश्व के अनेक लोकतांत्रिक देशों ने लोगों को मूलभूत अधिकारों व मीडिया की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत ने महामारी के दौर में भी वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक नहीं लगाई बल्कि सोशल मीडिया और इंटरनेट का प्रयोग टेस्ट ट्रेक एंड ट्रीट नीति के लिए किया गया और देश में महामारी के दौरान भी मीडिया को पूरी स्वतंत्रता दी गई.

Last Updated :Jul 16, 2021, 7:49 PM IST
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