राजस्थान में सियासी हवा ने बदला रुख : पैगाम लाये डाकिए, चिट्ठी लेकर दिल्ली लौटे

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Published : Jul 25, 2021, 3:02 PM IST

राजस्थान राजनीति, rajsathan political crisis

राजस्थानी में एक मशहूर कहावत है 'आपणी पीड़ा आफरी- पण दूजा दुख होया दुबला' इसका मतलब है अपना दुख नहीं दिख रहा है और दूसरे की फिक्र में परेशान हो रहे हैं. राजस्थान की मौजूदा अशोक गहलोत सरकार और कांग्रेस संगठन की भी कमोबेश यही स्थिति नजर आती है.

जयपुर. प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर आज हुए सियासी घटनाक्रम के बाद सवालों के सिलसिले में कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं. मसलन इसमें सबसे अव्वल है कि चर्चा की शुरुआत तब हुई जब दिल्ली में राज्यसभा सांसद और संगठन मंत्री केसी वेणुगोपाल ने राजस्थान में अपने सियासी दौरे का जिक्र किया और किसी ऑफिशियल काम से आने की बात कही.

इसके बाद यह साफ हुआ कि वेणुगोपाल अकेले नहीं आ रहे हैं, बल्कि उनके साथ पार्टी के प्रदेश प्रभारी अजय माकन भी राजस्थान आने वाले हैं और फिर सियासी मायने का सिलसिला इस कदर तेज हुआ कि इस दौरे के बाद प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर सत्ता और संगठन की भागीदारी वाली एक बैठक से किसी बड़े राजनीतिक फैसले का आंकलन भी किया जाने लगा.

पर सवाल यह है कि जिस काम से वेणुगोपाल राजस्थान आ रहे थे वह काम क्या था ? दूसरा मसला यह है कि इतना क्या महत्वपूर्ण हुआ कि हवाई सफर छोड़कर आनन-फानन में दिल्ली दरबार से इन दो बड़े नेताओं को सड़क के जरिए राजस्थान आना पड़ा ? तीसरा मसला यह है कि देर रात मुख्यमंत्री आवास पर बैठक में क्या कुछ निकला और फिर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के टि्वटर हैंडल से आए ट्वीट में इस बात का कहा जाना कि पार्टी के प्रदेश मुख्यालय पर किसी बैठक का आयोजन न होकर एक स्वागत का कार्यक्रम रखा गया है, आखिर ये रणनीति क्यों बदली गई ?

राजस्थान राजनीति, rajsathan political crisis
पीसीसी चीफ डोटसरा का ट्वीट

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इन सबके बाद आखिर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह कहा जाना कि सोनिया गांधी जो फैसला करेंगी वह उन्हें मंजूर है, आखिर अभी फैसले की चर्चा क्यों हो रही थी ? जब मसला ही स्वागत-सत्कार का है.

राजस्थान के इस सिलसिले की शुरुआत से लेकर आखिर तक के घटनाक्रम से अंदाजा तो यही लगता है कि राजस्थान में किसी बड़े घटनाक्रम की सुगबुगाहट उठ रही थी. ऐसे में बैठक या फिर औपचारिक स्वागत कार्यक्रम के बाद जिस अंदाज में मुखातिब होकर अजय माकन ने कहा कि वह महंगाई, पेगासस और स्थानीय भाजपा के द्वारा उठाए गए मसलों को लेकर रणनीति पर पीसीसी के अंदर खाने बात कर रहे थे, ये बात कुछ राजनीतिक पंडितों की नजर से पचने वाली नहीं है.

अब अजय माकन के द्वारा बोली गई आखिरी बात कि वे 27 और 28 जुलाई को राजस्थान फिर लौटेंगे और विधायकों के साथ रायशुमारी के बाद संगठन से लेकर सत्ता तक के फैसलों में उनकी भागीदारी को सुनिश्चित करेंगे, यह बात साफ़ संकेत है कि राजस्थान कांग्रेस की सत्ता और संगठन में होने वाले फैसले अब तक एक केंद्र से तय हो रहे थे और सत्ता के इस स्थानीय क्षेत्र के फैसलों से संगठन और सत्ता दोनों में नाराजगी थी.

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लिहाजा आलाकमान अब 'ऑल इज वेल' वाली पॉलिटिक्स के लिए दखल देना चाह रहा है. इसी वजह से आलाकमान का पैगाम लेकर डाकिया आया, डाक पहुंचाई और ऐसा हुआ कि संदेश का जवाब भी लेकर लौट गया. कांग्रेस के मौजूदा घटनाक्रम पर राजस्थान की सियासी समझ रखने वाले यह कहते हैं कि माकन प्रदेश प्रभारी होने के नाते बेहतर तस्वीर दिखाने की कोशिश भले ही कर रहे हैं, लेकिन अंदरखाने सुलग रही चिंगारी पर उनके बयानों के ठंडे छींटों का कोई असर नहीं होगा. बल्कि राजस्थान के मॉनसून ने दिल्ली से आए अंगारों को बुझाकर काफी हद तक शांत जरूर कर दिया है.

सियासी नजरिए से इशारों-इशारों में कही जाने वाली बात को एक बार के लिए परे रख दिया जाये, तो अब हम इस पूरे घटनाक्रम के असली मायनों को समझने की कोशिश करते हैं. जिसमें यह काफी हद तक साफ है कि पंजाब में हुए घटनाक्रम के बाद कई मर्तबा वहां से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को दिल्ली दरबार में हाजिर होना पड़ा था. पर राजस्थान में अशोक गहलोत का दिल्ली दौरा तय नहीं हो पाया और दिल्ली दरबार के लोगों को ही राजस्थान आकर पार्टी के अंदरूनी हालात से निपटने के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व की रणनीति को स्थानीय नेतृत्व के साथ साझा करना पड़ा.

जो भी संदेश दिल्ली से आया उसके प्रतिउत्तर के रूप में जवाब रात को ढाई घंटे चली चर्चा में तय हो गया. उसके बाद मुख्यमंत्री आवास से केसी वेणुगोपाल और अजय माकन होटल चले गए, सुबह गोविंद सिंह डोटासरा ने एक बार फिर अशोक गहलोत के संदेशवाहक के रूप में उनसे मिले और उन्हें गहलोत के जवाब से वाकिफ कराया.

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फिर पार्टी के मुख्यालय पर जोर-शोर के साथ बदलाव की बयार का इंतजार कर रहे लोगों के हाथ मायूसी लगी. प्रति उत्तर पर आलाकमान के रुख का इंतजार करने का विकल्प दूसरे धड़े के हाथ लगा. अपने टोंक दौरे का कार्यक्रम बदल कर सचिन पायलट के पीसीसी जाने का मकसद हल नहीं हो पाया. तारीखों में मंत्रिमण्डल विस्तार और फेरबदल के साथ ही राजनीतिक नियुक्ति पर कोई समयबद्ध फैसला नहीं हो सका.

अंदरखाने की चर्चाओं में सत्ता और संगठन के प्रमुख नेताओं से दिल्ली के नेताओं की बढ़ती दूरी पर क्षेत्रीय क्षत्रप की जादूगरी का असर पूरी तरह से हावी रहा. इस बीच आम रायशुमारी में औपचारिक रूप से यह तय हो गया कि राजस्थान की सियासत से जुड़े आने वाले फैसलों में हरी झंडी दिल्ली से मिलेगी. फ्री हैंड का फिलहाल कोई विकल्प नहीं है और अप्रत्याशित दौरे के परिणाम अप्रत्यक्ष होकर रह गए हैं.

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