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चुनावी रण में राजस्थान: बिसात पर मोहरों को बैठाने की तैयारी, बीजेपी में भी बदलाव का इशारा !

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Published : May 15, 2022, 10:07 AM IST

राजनीति में एक पुरानी और प्रचलित कहावत है, जिसके तहत कहा जाता है कि यहां बिना मायनों की कोई बात नहीं होती है. मतलब साफ है कि राजनीति में जो कुछ दिखता है या फिर होता है, उसके मायने सियासी नजरिए से अहम होते हैं. राजस्थान में फिलहाल कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की रीति नीति में एक बदलाव के तहत चुनावी सक्रियता का एहसास (Rajasthan Amid Election Battle) होने लग गया है.

BJP indicates Changes
चुनावी रण में राजस्थान

जयपुर. राजस्थान में खास तौर पर भारतीय जनता पार्टी को देखा जाए, तो रणनीति यह इशारा करती है कि बीजेपी में चुनावी शंखनाद के लिए लिहाज से बिगुल फूंकने की तैयारी है. उसके लिए जरूरी वॉर्मअप फिलहाल नेताओं ने शुरू कर दिया है. राजनीतिक दौरे हो या फिर बयानबाजी में मुद्दे, राजस्थान में चुनावी सक्रियता का इशारा आज साफ होता जा रहा है. हाल में जेपी नड्डा के दौरे और अमित शाह के दौरे की तैयारी यह इशारा करती है कि जल्द प्रदेश भाजपा में चुनाव के लिहाज से काफी कुछ बदल सकता है. हाल ही में हुई चर्चा तब जोर पकड़ने लगी जब पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे बाबोसा यानी पूर्व उपराष्ट्रपति स्वर्गीय भैरों सिंह शेखावत एक कार्यक्रम में शिरकत करने के लिए जाने वाली है. पूर्व IPS बहादुर सिंह की भैरोंसिंह शेखावत पर लिखी किताब का विमोचन बिड़ला ऑडिटोरियम में होगा, जहां कैलाश मेघवाल, राजपाल सिंह शेखावत और नरपत सिंह राजवी जैसे सरीखे नेता राजे के साथ मंच साझा करेंगे.

याद आ गए बाबोसा: राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीतिक एंट्री (Rajasthan Amid Election Battle) के लिये बाबोसा यानी स्वर्गीय भैरोंसिंह शेखावत को अहम वजह माना जाता है . प्रदेश की राजनीति में सैंकड़ों शिष्य तैयार करने के बाद भी उन्हें अपनी सियासी जमीन को संभालने के लिये केन्द्र से वसुंधरा राजे को लाना पड़ा था . पर वक्त के साथ बीजेपी हो या फिर राजे और अन्य नेता , बाबोसा और उनकी यादों को हाशिये पर रख दिया गया. अब एक किताब के जरिये जब राजे समेत कुछ नेता मंच ( babosa of politics Bhairon Singh Shekhawat) पर होंगे, तो सवाल इस आयोजन से ज्यादा इसमें शामिल चेहरों के एक जाजम पर जमा होने को लेकर रहेगा. राजपाल सिंह शेखावत को खुले तौर पर राजे गुट में देखा जाता रहा है, वे खुद को शेखावत के शागिर्द के रूप में पेश करते रहे हैं , वहीं कैलाश मेघवाल की राजनीतिक पारी में भैरों सिंह शेखावत के बाद वसुंधरा राजे का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. लिहाजा ये दोनों चेहरे इस कार्यक्रम में होने पर हैरानी वाली बात नहीं है, पर शेखावत के दामाद और विधायक नरपत सिंह राजवी का राजे का साथ मंच साझा करना प्रदेश भाजपा में शतरंज की नई बाजी की तैयारी सा दिखने लगा है.

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चुनावी रण में राजस्थान

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वरिष्ठ होने के बावजूद राजवी को पहले टिकट के लिये मशक्कत करनी पड़ी और राजे के दूसरे कार्यकाल के पूरा होने तक मंत्री पद के इंतजार में रहना पड़ा , ये सब साफ कर चुका था कि दोनों के बीच सब कुछ बेहतर नहीं है, पार्टी के मंच की बात हो या फिर किसी और प्लेटफार्म की, राजे और राजवी को अरसे से एक साथ नहीं देखा गया . इस बीच बीजेपी की मौजूदा तस्वीर में जब चेहरे की लड़ाई जग-जाहिर है. जब ये कयास लगाये जा रहे हैं कि इस बार के चुनाव में टिकट वितरण के दौरान भी पुराने नेताओं की छुट्टी हो सकती है , तो फिर बोबासा की इस किताब के विमोचन के जरिये प्रदेश भाजपा की इस तस्वीर को नये समीकरण के लिहाज से देखा जा सकता है. जिसमें वक्त के साथ चुनावी मैदान में किसी एक धड़े के पैर मजबूती से रखने की कसरत को पूरा करते हुए देखा जाएगा.

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गंगानगर और हनुमानगढ़ में यूपी वाली रणनीति, पोस्टर में एकजुटता का पैगाम: हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश प्रकाश नड्डा ने राजस्थान का दौरा किया था श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में नड्डा ने या फिर भाजपा नेताओं ने जो कुछ कहा वह बीजेपी की यूपी वाली चुनावी चाल का इशारा है राजस्थान में मौजूदा सरकार पर विभाजनकारी नीति के आरोप लगाए गए सांप्रदायिकता के मुद्दों पर बात हुई और लगभग वही भाषण सुनने को मिले जो कि यूपी चुनाव से पहले सुनाई पड़ते थे. नड्डा ने सांप्रदायिक हिंसा में राजस्थान को पहले मुकाम पर बता दिया तो जोधपुर की हिंसा का भी जिक्र करते हुए सीधे-सीधे सीएम अशोक गहलोत हो निशाने पर लिया मतलब साफ है कि बीजेपी के लिए धर्म संप्रदाय को लेकर राजस्थान की मोदी का जो स्थिति है वह आने वाले वक्त में चुनाव का अहम मुद्दा होगी.

इन सबसे अहम है हाल में जेपी नड्डा के दौरे पर मंच की तस्वीरें, जिन्हें वसुंधरा राजे के ट्विटर हैंडल पर देखा जा सकता है, इन तस्वीरों में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा के दोनों तरफ प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को संदेश देने के लिहाज से बैठाया गया है. मंच के बैकड्रॉप पर भी राजे की मौजूदगी है , जबकि अंदर की बात किसी से छिपी नहीं है , ऐसे में आलाकमान एक मंच के जरिये जगजाहिर होती फूट के डैमेज कंट्रोल की कवायद में जुटा है. यह भी साफ है. अहम यह है कि मंच और तस्वीर के जरिये जो पैगाम देने की कोशिश की जा रही है, क्या वह नतीजों में तब्दील हो सकेगा.

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