जयपुर. प्रशांत किशोर की कांग्रेस पार्टी में एंट्री नहीं होगी. चर्चाएं बहुत सी हैं. इसे प्रशांत किशोर की 'न' समझी जाए या फिर कांग्रेस पार्टी की, लेकिन ये तय हो गया है कि प्रशांत किशोर और कांग्रेस के रास्ते जुदा (PK no Entry Into Congress) हो गए हैं. तरह-तरह के अंदाजे लगाए जा रहे हैं. इस पूरे प्रोसेस में राजस्थान का कोई सीधा कनेक्शन नहीं दिख रहा. फिर भी पीके को लेकर यहां गजब की हलचल थी. राजस्थान के पदाधिकारियों में अजीब सी बेचैनी दिख रही थी. दो धड़ों में बंटी कांग्रेस असमंजस में थी. पीके की एंट्री को सचिन पायलट बनाम अशोक गहलोत के तौर पर देखा जाने लगा था. लोग कह रहे थे कि पायलट की नैया पार लगेगी तो गहलोत के लिए मुश्किलें होंगी. यानी फायदा पायलट का तो नुकसान गहलोत का बताया जाने लगा था.
यही वजह थी कि अप्रैल का तीसरा हफ्ता राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की चुगली कर रहा था. लेकिन फिर रणदीप सुरजेवाला और उसके बाद पीके के ट्वीट ने कयासों पर ब्रेक लगा दिया. अब प्रशांत किशोर की कही न के बाद बदलाव की बयार वाली चर्चाएं भी थम गई हैं. कहा जा रहा है कि 8 सदस्यों की कमेटी ने आलाकमान को सौंपी रिपोर्ट में कुछ ऐसे सवाल खड़े किए कि नो एंट्री मुमकिन हो गई.
हालांकि इस नो एंट्री की पटकथा (politics behind PK no entry) उसी दिन लिख दी गई थी जिस दिन राजस्थान के मुखिया, कांग्रेस आलाकमान से मिलने दिल्ली पहुंचे थे. मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने पीके (Gehlot On PK) के लिए 'ब्रांड' और 'एजेंसी' जैसे शब्दों का प्रयोग किया था. कहा था कि वो एक प्रोफेशनल एजेंसी हैं. अपनी बात को विस्तार देते हुए गहलोत बोले- 'पीके अब एक ब्रांड बन चुके हैं इसलिए ही उनके बारे में चर्चा हो रही है, अन्यथा चाहे सत्ताधारी दल भाजपा हो या कांग्रेस हो या अन्य कोई दल हर कोई ऐसी एजेंसियों की हेल्प लेता रहा है.'
अब अंदाजा लगाया जा रहा है कि शायद ऐसे ही विचार गहलोत ने कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के समक्ष रखे होंगे. दूसरी ओर सार्वजनिक तौर पर रखे गए सीएम के विचारों ने अन्य कांग्रेसी नेताओं का भी हौसला बढ़ाया (Gehlot played big Role Behind PK no Entry) होगा. जो नेता दबी जुबान से प्रशांत किशोर का विरोध कर रहे थे वो खुलकर प्रशांत किशोर की खामियां भी गिनाने लगे होंगे. अंदरखाने कहा जा रहा है कि गहलोत के बोलने का ही असर हुआ कि कमेटी ने भी खुलकर अपने विचार रखे. इसके बाद कांग्रेस की ओर से प्रशांत किशोर के सामने ऐसी शर्तें रखी गईं कि प्रशांत किशोर ने खुद ही कांग्रेस में एंट्री के लिए न कह दिया.
तो क्या दिग्वजिय संग मिलकर हुआ पीके का पत्ता साफ!: प्रशांत किशोर की नो एंट्री ने एक बार फिर ये साबित कर दिया है कि कांग्रेस पार्टी में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का इकबाल बुलंद है. यही कारण है कि राज्यसभा सांसद और पीके को लेकर बनी कमेटी के सदस्यों में से एक दिग्विजय सिंह जयपुर आकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से उनकी राय लेकर गए. उसके बाद ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सोनिया गांधी की मुलाकात हुई. कहा जा रहा है कि गहलोत ने सोनिया गांधी को पीके की एंट्री से होने वाले नुकसान के बारे में अवगत कराया जिससे पीके का पत्ता खुद ब खुद साफ हो गया.