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राजीव गांधी स्टडी सर्कल का वेबिनार विवादों में, भाजपा ने कहा- राजकीय कार्यक्रम हुआ गरिमा के विपरीत

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Published : May 21, 2021, 10:57 PM IST

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राजीव गांधी स्टडी सर्कल का वेबिनार विवादों में

राजीव गांधी स्‍टडी सर्कल व राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्‍वाधान मे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर हुआ राष्ट्रीय वेबीनार विवादों में है. वेबीनार का विषय ‘लोकतंत्र मे संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्ता जरूरी है’ था. लेकिन कार्यक्रम में विषय पर चर्चा कम और केंद्र सरकार के खिलाफ वक्ताओं ने ज्यादा बोला. यही कारण है कि भाजपा अब इस राजकीय कार्यक्रम को गरिमा के खिलाफ करार दे रहे हैं.

जयपुर. राजीव गांधी स्‍टडी सर्कल व राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्‍वाधान मे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर हुआ राष्ट्रीय वेबीनार विवादों में है. वेबीनार का विषय ‘लोकतंत्र मे संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्ता जरूरी है’ था. लेकिन कार्यक्रम में विषय पर चर्चा कम और केंद्र सरकार के खिलाफ वक्ताओं ने ज्यादा बोला. यही कारण है कि भाजपा अब इस राजकीय कार्यक्रम को गरिमा के खिलाफ करार दे रहे हैं. नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया और पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरुण चतुर्वेदी सहित कई भाजपा नेताओं ने कार्यक्रम आयोजकों पर जुबानी हमला बोला है.

राजीव गांधी स्टडी सर्कल का वेबिनार विवादों में

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया गरजे

नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने भी अपना विरोध जाहिर किया. कटारिया ने एक बयान जारी कर कहा कि इस वेबिनार में राजस्थान सरकार के मंत्री, शिक्षाविद एवं अन्य सम्मिलित हुये. लेकिन इसमें संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्ताओं पर चर्चा नहीं की गई. बल्कि लगभग सभी वक्ताओं ने लोकतांत्रिक संवैधानिक रूप से चुने हुये वर्तमान केन्द्र सरकार के विरोध में बोलना उचित समझा. कटारिया ने कहा की वक्ताओं ने केन्द्र की विनिवेश नीति के लिये वर्तमान सरकार को दोषी बताया. जबकि विनिवेश नीति तीन दशक पुरानी है और इसका संवैधानिक संस्थाओं की स्वावयत्ता से दूर-दूर तक सरोकार नहीं है. यह विषय से परे राजनैतिक मामला हैं.

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कटारिया ने कहा कि कार्यक्रम में चुनाव आयोग द्वारा कई चरणों में चुनाव कराने की आलोचना की गई. यह वक्ताओं द्वारा स्‍वयं चुनाव आयोग की स्वायत्ता में दखल है. वही कार्यक्रम में कृषि कानून पर ऊंगली उठाई गई जबकि यह कानून देश की सबसे बड़ी संवैधानिक संस्थान लोकसभा और राज्यसभा द्वारा बनाया गया हैं. इस पर प्रश्न उठाना और इसका विरोध करना लोकसभा की स्वायत्ता में दखल अंदाजी हैं. नेता प्रतिपक्ष के अनुसार इस प्रकार इस पूरे कार्यक्रम मे घोषित विषय पर चर्चा नहीं हुई बल्कि एक राजनीतिक दल का कार्यक्रम हुआ. राजस्थान सरकार के इस कार्यक्रम में शिक्षक छात्र अधिकारी शामिल थे और इसमें सोनिया गांधी की प्रशंसा व महिमामंडल ना सिर्फ अनावश्यक व विषय से परे था. बल्कि यह एक राजकीय कार्यक्रम की गरिमा के विपरित भी था.

चतुर्वेदी ने लगाया कार्यक्रम का राजनीतिकरण करने का आरोप

भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. अरुण चतुर्वेदी ने राज्य सरकार पर राजीव गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है. चतुर्वेदी ने आरोप लगाया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि के अवसर पर कॉलेज शिक्षा विभाग व राजीव गांधी स्टडी सर्किल के संयुक्त तत्वाधान में परिचर्चा आयोजित की गई. जिसमें सभी शिक्षकों, NSS के स्वयंसेवकों व कर्मचारियों को जुड़ना अनिवार्य किया गया. इस परिचर्चा में वक्ताओं में केवल एक पक्षीय वक्तव्य देकर केंद्र सरकार को कटघरे में खड़े करने का प्रयास किया.

चतुर्वेदी ने कहा कि कार्यक्रम में वक्ताओं ने विनिवेशन, एयरपोर्ट्स के निजीकरण के लिए मोदी सरकार को आरोपित करने का प्रयास किया. जबकि सच्चाई सभी जानते हैं. यह दोनों ही काम पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के समय शुरू हो गए थे. चतुर्वेदी के अनुसार कार्यक्रम में वक्ताओं के रूप में उपस्थित विभिन्न कांग्रेस सरकार के मंत्रियों ने केंद्र सरकार पर CBI, ED, Election Commission सहित अन्य संवैधानिक संस्थाओं के राजनीतिकरण का आरोप लगाया.

चतुर्वेदी के अनुसार परिचर्चा संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्ता पर नहीं हुई. क्योंकि यदि इस पर अकादमिक चर्चा होती तो आपातकाल, 80 के दशक में न्यायपालिका की स्थिति, विभिन्न केंद्रीय सरकारों द्वारा अपने राजनीतिक उदेश्यों को पूरा करने के लिए धारा-356 के दुरुपयोग, 70-80 के दशक में न्यायाधीशों की नियुक्ति, शाहबानो प्रकरण में न्यायालय के निर्णय को पलटने, कुछ राज्यों द्वारा सीबीआई के कार्य में अवरोध, मुख्यमंत्री द्वारा राज्यपाल के संवैधानिक दायित्वों में अवरोध आदि विषयों पर भी चर्चा होती.

चतुर्वेदी ने कहा कि अच्छा होता राजस्थान सरकार इस परिचर्चा को खुला मंच प्रदान करती. जिससे सभी को भी अपने अकादमिक विचार रखने का अवसर मिलता. लेकिन शायद सरकार को डर था कि अगर खुला मंच दिया तो आजादी के बाद संवैधानिक संस्थाओं के प्रत्यक्ष अवमूल्यन के बहुत सारे मामलों पर भी चर्चा होती.

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