मैं साइन कर देता तो नरसिम्हा राव सरकार में ही बन जाते राम मंदिर और मस्जिद-शंकराचार्य निश्चलानंद

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Published : Sep 20, 2022, 9:12 PM IST

Shankaracharya Swami Nischalananda Saraswati, Swami Nischalananda Saraswati in Jaipur

गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का कहना है कि अगर वे साइन कर देते, तो नरसिम्हा राव सरकार के दौरान ही राम मंदिर और पास में ही मस्जिद बन (Nischalananda Saraswati on Ram Mandir) जाती. जयपुर आए निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि मोहम्मद साहब, ईसा मसीह के पूर्वज हिन्‍दू थे.

जयपुर. हिंदू समाज सनातन परंपरा के प्रचार प्रसार करे, तो जल्द भारत पूरी तरह से हिंदू राष्ट्र बन जाएगा. ये कहना है तीन दिवसीय प्रवास पर जयपुर पहुंचे गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का. निश्चलानंद सरस्वती ने जयपुर में हिंदू धर्म दर्शन को बढ़ावा देने पर अपनी बात रखी. साथ ही उन्‍होंने कहा कि तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार का अयोध्या में मंदिर और मस्जिद बनाने का लक्ष्य (Nischalananda Saraswati on Ram Mandir) था. अगर वे साइन कर देते, तो मंदिर और मजिस्‍द उसी दौरान बन जाते. उन्होंने मक्का में मक्केश्वर महादेव होने और मोहम्मद साहब, ईसा मसीह के पूर्वजों को सनातनी वैदिक और हिंदू बताया.

शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि सबके पूर्वज सनातनी, वैदिक और हिन्दू थे. मोहम्मद साहब के पूर्वज कौन थे, ईसा मसीह के पूर्वज कौन थे, हिन्दू वैदिक सनातनी. पूर्वज तो सबके सनातनी वैदिक आर्य थे. इनके काल हैं या नहीं हैं. सनातन धर्म का समय है. इस कल्प में 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 122 वर्षों की हमारे यहां परम्परा है. वहीं उन्होंने राम मंदिर को लेकर कहा कि उनके अलावा सभी शंकराचार्यों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव सरकार के कहने पर रामालय ट्रस्ट पर दस्तखत कर दिए थे. इसका लक्ष्य अयोध्या में मंदिर और मस्जिद दोनों बनाना था. यदि उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया होता, तो नरसिम्हा राव के शासनकाल में ही राम मंदिर के अगल-बगल और आमने-सामने मस्जिद बन गए होते.

गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती.

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उन्होंने कहा कि अयोध्या में यथास्थान मंदिर बनाने का अभियान चला. प्रधानमंत्री ने भूमि पूजन कर शिलान्यास भी कर दिया. तब तक मुस्लिम पक्ष तटस्थ होकर देखता रहा. इन्होंने मंदिर का मानचित्र नक्शा भी बना लिया. अब मुस्लिम पक्ष को पार्लियामेंट, सुप्रीम कोर्ट और उत्तर प्रदेश शासन की ओर से 5 एकड़ भूमि वैध रूप से प्राप्त है. मक्का से भी बेहतर शैली में वे मस्जिद बना सकते हैं. इसका अभियान भी चला. उसी की नकल काशी और मथुरा में होगी. वर्तमान में मोदी-योगी यश ले रहे हैं, लेकिन देश को कहां ले जा रहे हैं, अब इसमें विस्फोट होगा कि नहीं?

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शंकराचार्य निश्चलानंद ने कहा कि समान नागरिक संहिता का मतलब क्या है. विभाजन के बाद के स्वतंत्र भारत में मुसलमान, क्रिश्चियन, कम्युनिस्ट भी रहते हैं. जैन-बौद्ध, सिख भी रहते हैं. समान नागरिकता में आचार संहिता का स्वरूप क्या होगा. पहले शासन तंत्र यह स्पष्ट करे कि क्या मुसलमान, क्रिश्चियन, कम्युनिस्टों के सांचे-ढांचे में सनातनियों को ढलना होगा या कोई ऐसी व्यवस्था होगी, जिसमें सबको चलने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. ऐसा स्‍पष्‍ट होने के बाद उस पर विचार करने की जरूरत है. जैसा व्यवहार हम दूसरों से अपने लिए चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार दूसरों के साथ करें. वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिन: समान नागरिकता के सूत्र हो सकते हैं.

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वहीं ज्ञानवापी पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी काशी में है, मक्का-मदीना भारत से 3 हजार किलोमीटर दूर है. उस पर भी विचार होना चाहिए. वहां मक्केश्वर महादेव हैं या कुछ और हैं. वहां तक विचार होना चाहिए. मक्केश्वर महादेवजी ही तो थे. शिव पुराण पर गीता प्रेस से प्रकाशित एक विशेषांक है, शिवोपासनांक समप्तक, जिसमें विस्तार पूर्वक विवरण दिया गया है कि मुक्तेश्वर महादेव ही वहां पर थे.

इस दौरान उन्होंने कहा कि दलित शब्द मायावती का दिया हुआ है. दलित शब्द देकर समाज को किसने बांटा. शरीर में मस्तक, पांव, हाथ का उपयोग है कि नहीं. अगर इनमें संघर्ष हो जाए तो जीवन रहेगा क्या. आंख का काम आंख, कान का काम कान करता है. इन सबकी उपयोगिता और सामंजस्य है, तभी तो जीवन चलता है. शिक्षा, रक्षा, सेवा, स्वच्छता, समाज को उपलब्ध हैं. इसके लिए धर्म से वर्ण व्यवस्था आवश्यक है. यह व्यवस्था मूलक है, सनातन परम्परा प्राप्त है.

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उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति की जीविका (रोजगार) जन्म से सुरक्षित हो, इस तथ्य को सनातन धर्म में बताया गया है. जानकारी नहीं होने के कारण कोई विरोध कर सकता है. अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्रांस जैसे देशों में जहां वर्ण व्यवस्था नहीं है, वहां कृत्रिम तौर पर शिक्षक, रक्षक, व्यापारी, सेवक बनाने की जरूरत है. यहां कृत्रिम रूप से बनाने की जरूरत क्या है. कृत्रिम ढंग से स्कूलों के जरिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य बनाए जाएं, तो समय, सम्पत्ति का ज्यादा उपयोग होगा. संस्कार नहीं होगा, तो संतुलन बिगड़ जाएगा. ऊपर की श्रेणी में ये सब बंट जाएंगे. संतुलन नहीं रहेगा. जन्म से वर्ण व्यवस्था नहीं होने के ये सब दोष हैं.

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इस दौरान शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि सुशिक्षित, सुसंस्कृत, सुरक्षित, सम्पन्न, सेवापरायण, स्वस्थ, सर्व हितप्रद व्यक्ति और समाज की संरचना ही हिन्दू राष्ट्र का लक्ष्य है. विकास और राजनीति की यही परिभाषा है. एक भविष्यवाणी और एक योजना के रूप में इसे ले सकते हैं. पंचवर्षीय योजना की तरह लिया जा सकता है. आपको बता दें कि मंगलवार को गोविंद के दरबार में सर्व समाज हिंदू महासभा की ओर से हिंदू राष्ट्र संगोष्ठी और विशाल धर्मसभा का आयोजन किया जा रहा है.

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