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Pitru Paksha 2023: शुरू होने जा रहे पितृ पक्ष, जानिए श्राद्ध से लेकर पिंडदान तक की पूरी जानकारी, इन 4 को भोजन कराना बिल्कुल न भूलें

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 26, 2023, 4:45 PM IST

Pitru Paksha 2023
शुरू होने जा रहे पितृ पक्ष

अनंत चतुर्दशी के दूसरे दिन यानि की 29 सितंबर से पितृ पक्ष शुरु हो रहे हैं. इस दिन पितरों के लिए लोग दान करते हैं. ज्योतिषाचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री से जानिए पितृ पक्ष की शुरुआत और समाप्त होने की तारीख और इन दिनों क्या करना चाहिए.

शुरू होने जा रहे पितृ पक्ष

Pitru Paksha 2023। 29 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत होने जा रही है. पितृपक्ष में पितरों के लिए लोग पिंडदान करते हैं. ऐसे में पितृपक्ष में किस तरह से पिंडदान करना चाहिए. श्राद्ध की वो कौन-कौन सी तिथियां हैं. जिसमें पिंडदान करना चाहिए. किस तरह के दान पुण्य करने चाहिए. जिससे फायदा होगा. पितृ पक्ष, पिंडदान, और श्राद्ध को लेकर जानिए पूरी जानकारी, ज्योतिषाचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री से.

कब से हो रही पितृ पक्ष की शुरुआत?: पितृ पक्ष की शुरुआत 29 सितंबर से होने जा रही है. जो 14 अक्टूबर को समाप्त होगा. पितृ पक्ष में जिन जातकों की मृत्यु हो चुकी है. वार्षिक श्राद्ध हो चुके हैं, उनका पितृपक्ष मनाया जाता है. जिस जातक की जिस तिथि को मृत्यु होती है. उसी दिन विशेष रूप से तर्पण, ब्राह्मण भोज, दान पुण्य कराने का विधान है.

ऐसे करें तर्पण: ज्योतिषाचार्य बताते हैं की 16 तिथियां होती हैं. 16 श्रद्धा होते हैं. पूर्णिमा से लेकर के अमावस्या तक श्राद्ध तिथि मानी गई है. इन तिथियों में जिन जातकों की मृत्यु हुई है. ऐसे जातकों के पुत्र या भाई, उन जातकों के नाम से तिल से पितरों का तर्पण करें, जौ से से ऋषियों का तर्पण करें. चावल से देवताओं का तर्पण करें. तर्पण करने के बाद श्राद्ध में जो भोजन कराया जाता है. दान पुण्य किया जाता है. वह उन जातकों को भोजन के रूप में मिलता है. विशेष रूप से प्रातः कालीन स्नान करें. स्नान करने के पहले जब पितृ आते हैं. तो घर के दरवाजे के सामने, जिसको ग्रामीण क्षेत्र में देहरी बोलते हैं. वहां पर दो चबूतरे बनाये जाते हैं. उन चबूतरों में तिल और उड़द की दाल और चावल छोड़ देते हैं. यानी पितृ जब आते हैं, तो वो वहीं पर बैठते हैं.

विशेष रूप से इन 16 तिथियां में पितृ का ही आगमन होता है. देवता सब गंगा स्नान करने जाते हैं. इन तिथियों में पितरों का ही विशेष महत्व होता है. उन्हीं की पूजा होती है. देवताओं की पूजा लगभग लगभग शून्य हो जाती है. लोग दिनचर्या के रूप में पूजन करते हैं. कोई शुभ काम नहीं करते हैं.

इन चार को भोजन कराना बिल्कुल न भूलें: ज्योतिषाचार्य आगे कहते हैं कि सभी जातक पितृ पक्ष में जिनके माता-पिता अभी गया जी नहीं गए हैं. बद्री धाम नहीं गए हैं. ऐसे जातक सुबह के समय अपने पितृ को जल से, दूध से, गंगाजल से उनको तीन-तीन अंजलि तर्पण दें, फिर उस दिन विशेष रूप से ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन कराएं. उस दिन ब्राह्मण भोजन से पहले चार और लोगों को भोजन कराया जाता है. जैसे गाय को भोजन कराते हैं, गाय को भोजन कराने से जातक वैतरणी नदी पार होता है. कुत्ते को भोजन कराया जाता है. जिससे देवलोक में जाने के लिए या यमराज के पास जाने के लिए रास्ता आसान हो जाता है.

तीसरा कौवा को भोजन कराया जाता है. जिससे यमराज के दूत प्रसन्न होते हैं. चौथा भोजन चींटी, मटा, जीव जंतुओं को कराया जाता है. जिससे जाने अनजाने जो प्रायश्चित पाप हो जाते हैं, उससे छुटकारा मिलता है. इन विशेष तिथियों में इस तरह से तर्पण करें तो तो पितृ देव प्रसन्न होते हैं.

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जब पितृ देव विसर्जित हों: ज्योतिष आचार्य पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री बताते हैं कि 14 अक्टूबर को जब यहां से पितृ देव विसर्जन होंगे. उस दिन विशेष रूप से तर्पण करें. उनको बढ़िया पकवान बनाकर भोजन कराएं और अपने घर के अंदर से जल ढालते हुए देहरी तक जाएं और उनको प्रणाम करके उनका विसर्जन करें. इससे पितृ आशीर्वाद देते हैं. घर में शांति बनती है और परिवार में खुशहाली बनी रहती है.

बस इस दिन छोड़कर नहीं होते शुभ कार्य: इन 16 तिथियों में यानी 29 सितंबर से 14 अक्टूबर के बीच में इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं होते हैं. जैसे विवाह, कन छेदन, मुंडन, गृह प्रवेश, किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. मात्र अष्टमी के दिन उस दिन लक्ष्मी पूजन होता है. अष्टमी का दिन जो इस बार 7 अक्टूबर को पड़ रहा है. उस दिन शाम के समय में छूट रहती है. उस दिन वाहन खरीद लें, भूमि खरीद लें, स्वर्ण आभूषण खरीद लें. उस दिन शुभ रहता है. शेष तिथियों में ऐसा वर्जित रहता है. जो लोग मनमाने तरीके से ऐसा कार्य कर लेते हैं. उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है. ऐसे कार्य वर्जित होते हैं ऐसे कार्य न करें.

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