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कोरोना ने दो बच्चों को किया अनाथ, अब उनकी जमीन को फोरलेन के लिए छीन रही है सरकार

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Published : Jan 15, 2022, 12:03 PM IST

children orphaned by corona in sagar
सागर में कोरोना से बच्चे अनाथ

सागर जिले के कर्रापुर गांव में दो नाबालिग बच्चों के (children orphaned by corona) सिर से उनके माता पिता का साया उठ गया है. उनके जीने का एकमात्र सहारा अब उनकी जमीन है जिसे सरकार हाइवे बनाने के लिए छीन रही है. बच्चों ने अपना दर्द ईटीवी भारत के साथ साझा किया है.

सागर। कोरोना वायरस कई परिवारों पर कहर बनकर टूटा है, कई बच्चे अनाथ हो गए हैं, उनके सर से मां-बाप का साया छिन गया है. सागर जिले के कर्रापुर गांव में भी कोरोना ने दो नाबालिग बच्चों के मां-बाप की मौत हो चुकी है. माता-पिता के न रहने के कारण ये बच्चे ना केवल भावनात्मक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, बल्कि कई बच्चे आर्थिक परेशानियों से भी जूझ रहे हैं. खेलने-कूदने की उम्र में ये बच्चे जिंदगी की जद्दोजहद में लगे हैं. मां-बाप का साया छिनने के बाद इन अनाथ बच्चों के पास जीवन यापन का एकमात्र सहारा इनकी छोटी सी जमीन थी. इसे भी अब सरकार छीनने जा रही है. दरअसल, कर्रापुर गांव से सागर कानपुर हाईवे निकलता है, जिसे फोरलेन बनाया जा रहा है. इसके निर्माण के लिए सरकार इन बच्चों की जमीन का अधिग्रहण करने जा रही है. हैरानी की बात ये है कि बच्चों को जो मुआवजा दिया जाएगा वह महज 960 रुपए है और इसके 15 हकदार और हैं.

सागर जीवन की जद्दोजहद कर रहे हैं अनाथ बच्चे

खेलकूद की उम्र में कर रहे जिंदगी की जद्दोजहद

इन मासूमों की त्रासदी सुनकर किसी का भी दिल भर आएगा. यह बच्चे स्कूल भी जाते हैं और घर गृहस्थी के सारे काम भी निपटाते हैं. 10वीं में पढ़ने वाले जसवंत और नवमीं में पढ़ने वाली उसकी छोटी बहन फूलवती के सर पर अपनी पहाड़ सी जिंदगी की जद्दोजहद की जिम्मेदारी आ गई है. कोरोना की दूसरी लहर में उनकी मां विमला देवी कैंसर का शिकार हो गई थीं. लेकिन लॉकडाउन के कारण नियमित तरीके से उनका इलाज नहीं हो सका जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने दम तोड़ दिया. मासूम बच्चे अपनी मां विमलादेवी के निधन के सदमे से उबरे भी नहीं थे कि तीन महीने बाद उनके पिता पूरनसिंह लोधी को कोरोना ने चपेट में ले लिया. जब तक वे अस्पताल पहुंचते, तब तक उनका भी निधन हो गया.

छोटे से जमीन के टुकड़े के सहारे चल रही है जिंदगी

माता-पिता के निधन के बाद दोनों बच्चे अनाथ हो गए. इनके जीवन यापन का एकमात्र सहारा उनकी छोटी सी जमीन है. चूंकि बच्चे अभी छोटे थे और स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, इसलिए उन्होंने फैसला किया कि हर साल जमीन को बटाई पर दे देंगे और जो पैसा और थोड़ा बहुत अनाज मिलेगा, उससे जिंदगी बसर करेंगे. जमीन बटाई पर देने में इन बच्चों को 20 से 25 हजार रुपए सालाना हासिल होते हैं और कुछ अनाज भी मिल जाता है. इसके अलावा सरकार की योजना के तहत फ्री राशन सुविधा से इनकी रोजी रोटी चल रही है. इन बच्चों की जो उम्र है उस उम्र में दूसरे बच्चे खेलते कूदते हैं, लेकिन इन पर घर गृहस्थी की जिम्मेदारी है.

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मुसीबतें नहीं छोड़ रही पीछा

बच्चों की जमीन कर्रापुर गांव के सागर- कानपुर हाईवे 934 पर है. हाईवे को अब फोरलेन बनाया जा रहा है. जिसके चौड़ीकरण के लिए गांव की जमीन को अधिग्रहित किया जा रहा है. और जमीन के लिए ग्रामीणों को नाम मात्र का मुआवजा दिया जा रहा है. गांव के करीब 700 भूमि स्वामी और 200 मकान मालिकों की जमीन अधिग्रहित की जा रही है, लेकिन इनका मुआवजा असिंचित कृषि भूमि के अनुसार दिया जा रहा है. सरकार ने जमीन मालिकों की भूमि का आकलन हेक्टेयर के हिसाब से किया है. इन बच्चों को अपने स्वर्गीय पिता पूरन सिंह लोधी के नाम का नोटिस मिला है. उसमें सिर्फ उनके पिता के अलावा 15 और भूस्वामी शामिल हैं. इन भूमि स्वामियों को सिर्फ 960 रुपए का मुआवजा दिया जा रहा है, जिसके 16 हकदार हैं. अब सोचने वाली बात है कि इतने कम मुआवजे से बच्चों का जीवन यापन कैसे चलेगा.

प्रशासन ने दिखाई संवेदनहीनता

सागर जिला प्रशासन की संवेदनहीनता जग जाहिर है, लेकिन इस मामले में तो उसने हद पार कर दी है. प्रशासन नोटिस देकर भूमि स्वामियों पर कम मुआवजा लेने का दबाव बना रहा है. जब लोगों ने जमीन की मूल कीमत के हिसाब से मुआवजा की मांग की तो उन्हें अदालत का दरवाजा खटखटाने की सलाह दी है. अब देखना है कि बच्चों को जमीन के मुताबिक मुआवजा मिलता है या उन्हें आगे की जिंदगी मुसीबत में काटना पड़ेगी.

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