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अंगदान नहीं बन पा रहा महादान, सागर से लगी सुप्रीम कोर्ट में गुहार ताकि लोगों का हो सके ऑर्गन ट्रांसप्लांट

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jan 16, 2024, 10:55 PM IST

Updated : Jan 17, 2024, 11:28 AM IST

Organ Transplant Data of India: एक तरफ दुनिया में कई ऐसे देश है, जो बड़े पैमाने पर अंगदान को आगे बढ़ा रहे हैं, तो दूसरी ओर सवा अरब से ज्यादा आबादी वाले भारत देश में अंगदान जैसे महादान को लेकर सिर्फ बड़ी-बड़ी बातें हीं होती आ रहीं हैं. जानते हैं कि आखिर किस डेटा के आधार पर सुप्रीम कोर्ट में सागर के लोगों ने गुहार लगाई है.

Organ donation in India
अंगदान को लेकर सागर की संस्था पहुंची सुप्रीम कोर्ट

सागर. भारत देश में अंगदान (India Organ Donation Plan) को अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने और जन जागरूकता के लिए अभियान चला रही सागर की एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है. संस्था का कहना है कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में अंगदान और ऊतक प्रत्यारोपण के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इसी वजह से ना तो लोग अंगदान कर पा रहे हैं और ना ही जरूरतमंद लोगों को अंग मिल पा रहे हैं.

अंगदान को लेकर क्यों जागरुकता की जरुरत?

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में लंबे समय तक सेवाएं देने वाले मनोहर लाल चौरसिया ने सरकारी सेवा से वीआरएस लेने के बाद गवेषणा नाम की सामाजिक संस्था का गठन किया. जिसके बाद अंगदान को अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने के लिए जन जागरुकता की मुहिम चलाई. इसके लिए सबसे पहले मनोहर लाल चौरसिया खुद अपने अंगदान के लिए बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि मेडिकल कॉलेज में भी अंगदान या ऊतक प्रत्यारोपण (Tissue transplant) के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इसके बाद मनोहर लाल को एहसास हुआ कि इस दिशा में जागरूकता के साथ कुछ खास करने की जरूरत है.

अंगदान को लेकर नहीं हैं बुनियादी सुविधाएं

जब मनोहर लाल खुद की लिविंग विल (living will) लेकर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज पहुंचे, तो डीन ने उनकी लिविंग विल लेने से इनकार कर दिया. डीन ने बताया कि उन्हें ये अधिकार नहीं है. दरअसल, इस वसीयत के जरिए मनोहर लाल चौरसिया ने मृत्यु के बाद अंगदान की इच्छा जताई थी. उन्हें व्यवस्था में ये खामी भी नजर आई कि ब्रेन डेड होने पर ही अंगदान किया जा सकेगा. सिर्फ बॉडी डेथ (body death) की स्थिति में अंगदान नहीं होगा. इसके अलावा अंगदान के मामले में ये भी नियम है कि MLC (MEDICO-LEGAL CASE) के मामले में अंगदान नहीं हो सकेगा.

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आखिर क्यों लेनी पड़ी सुप्रीम कोर्ट की शरण?

जब मनोहर लाल चौरसिया को अंगदान और ऊतक प्रत्यारोपण से जुड़ी खामियां नजर आईं तो उन्होंने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मानव अधिकार आयोग और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज सहित तमाम जिम्मेदार संस्थाओं और अधिकारियों को पत्र लिखा. पत्र के माध्यम से ध्यान आकर्षित कराया कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में अंगदान और ऊतक प्रत्यारोपण संबंधी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं और अंगदान के मामले में लिविंग विल को कानूनी मान्यता दी जाए. लेकिन तमाम जिम्मेदार संस्थाओं ने उनके पत्र को शिकायत के रूप में लिया और मध्य प्रदेश सरकार के सीएम हेल्पलाइन में भेज दिया गया. अंत में उन्हें सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की शरण लेनी पड़ी.

भारत में कितने लोगों को जरुरत है अंग प्रत्यारोपण की

सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संबंधी बुनियादी सुविधाएं नही मिल पाने से इच्छुक व्यक्ति ना तो समय पर अंगदान कर पाते हैं और ना ही जरुरतमंद लोगों को समय पर अंग उपलब्ध हो पाता है. इसे लेकर एमपी के सागर जिले की संस्था गवेषणा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. जानकारी के मुताबिक भारत में दस लाख लोगों में प्रति वर्ष केवल 0.86 लोग ही अंगदान कर रहे हैं जबकि वास्तव में 10 लाख आबादी में 124 लोगों की इसकी जरुरत है.

सागर. भारत देश में अंगदान (India Organ Donation Plan) को अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने और जन जागरूकता के लिए अभियान चला रही सागर की एक संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है. संस्था का कहना है कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में अंगदान और ऊतक प्रत्यारोपण के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इसी वजह से ना तो लोग अंगदान कर पा रहे हैं और ना ही जरूरतमंद लोगों को अंग मिल पा रहे हैं.

अंगदान को लेकर क्यों जागरुकता की जरुरत?

खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग में लंबे समय तक सेवाएं देने वाले मनोहर लाल चौरसिया ने सरकारी सेवा से वीआरएस लेने के बाद गवेषणा नाम की सामाजिक संस्था का गठन किया. जिसके बाद अंगदान को अधिकार के रूप में मान्यता दिलाने के लिए जन जागरुकता की मुहिम चलाई. इसके लिए सबसे पहले मनोहर लाल चौरसिया खुद अपने अंगदान के लिए बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज पहुंचे, तो उन्हें पता चला कि मेडिकल कॉलेज में भी अंगदान या ऊतक प्रत्यारोपण (Tissue transplant) के लिए बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. इसके बाद मनोहर लाल को एहसास हुआ कि इस दिशा में जागरूकता के साथ कुछ खास करने की जरूरत है.

अंगदान को लेकर नहीं हैं बुनियादी सुविधाएं

जब मनोहर लाल खुद की लिविंग विल (living will) लेकर बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज पहुंचे, तो डीन ने उनकी लिविंग विल लेने से इनकार कर दिया. डीन ने बताया कि उन्हें ये अधिकार नहीं है. दरअसल, इस वसीयत के जरिए मनोहर लाल चौरसिया ने मृत्यु के बाद अंगदान की इच्छा जताई थी. उन्हें व्यवस्था में ये खामी भी नजर आई कि ब्रेन डेड होने पर ही अंगदान किया जा सकेगा. सिर्फ बॉडी डेथ (body death) की स्थिति में अंगदान नहीं होगा. इसके अलावा अंगदान के मामले में ये भी नियम है कि MLC (MEDICO-LEGAL CASE) के मामले में अंगदान नहीं हो सकेगा.

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आखिर क्यों लेनी पड़ी सुप्रीम कोर्ट की शरण?

जब मनोहर लाल चौरसिया को अंगदान और ऊतक प्रत्यारोपण से जुड़ी खामियां नजर आईं तो उन्होंने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मानव अधिकार आयोग और बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज सहित तमाम जिम्मेदार संस्थाओं और अधिकारियों को पत्र लिखा. पत्र के माध्यम से ध्यान आकर्षित कराया कि सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेज में अंगदान और ऊतक प्रत्यारोपण संबंधी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं और अंगदान के मामले में लिविंग विल को कानूनी मान्यता दी जाए. लेकिन तमाम जिम्मेदार संस्थाओं ने उनके पत्र को शिकायत के रूप में लिया और मध्य प्रदेश सरकार के सीएम हेल्पलाइन में भेज दिया गया. अंत में उन्हें सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की शरण लेनी पड़ी.

भारत में कितने लोगों को जरुरत है अंग प्रत्यारोपण की

सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संबंधी बुनियादी सुविधाएं नही मिल पाने से इच्छुक व्यक्ति ना तो समय पर अंगदान कर पाते हैं और ना ही जरुरतमंद लोगों को समय पर अंग उपलब्ध हो पाता है. इसे लेकर एमपी के सागर जिले की संस्था गवेषणा ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. जानकारी के मुताबिक भारत में दस लाख लोगों में प्रति वर्ष केवल 0.86 लोग ही अंगदान कर रहे हैं जबकि वास्तव में 10 लाख आबादी में 124 लोगों की इसकी जरुरत है.

Last Updated : Jan 17, 2024, 11:28 AM IST
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