प्राचीन गांव में आज भी मौजूद हैं जामवंत के पदचिन्ह, इस वजह से भगवान कृष्ण से लड़ा था युद्ध

author img

By

Published : Aug 22, 2019, 3:19 PM IST

Updated : Aug 22, 2019, 6:22 PM IST

जामगढ़-भगदेई ऐतिहासिक स्थल ()

जामवंत और भगदेई रायसेन जिले के दोनों गांवों का इतिहास काफी प्राचीन है. यहां आदिकालीन जामवंत गुफा, शिव गुफा, अति प्राचीन शिव मंदिर, देवी माता का अत्यंत प्राचीन देवी मंठ यहां विराजमान है.

रायसेन। जिले से 125 किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत पर बसा ये जामवंत और भगदेई गांव बेहद प्राचीन है. ये गांव जामवंत और उनके भाई रीछड़मंल के इतिहास का गवाह है. शोधकर्ता कमल कुमार बताते है कि कथाओं और किवंदतियों के साथ इतिहास की उन अनमोल धरोहरों को ये पूरा आंचल समेटे हुए है और यहां आज भी कई ऐतिहासिक साक्ष्य मौजूद हैं.

जामवंत का गांव

जामवंत ने अपने हाथों से नग्न अवस्था में शिव मंदिर का निर्माण किया था. कहा जाता है कि जामवंत शिव मंदिर के शिखर पर कलश नहीं रखा पाये थे. जो 1000 फीट ऊंचाई पर है. जहां साल भर का पर्याप्त जल भरा रहता है. आज भी जामवंत के पद चिन्ह,घुटने के निशान,बैठने के निशान मौजूद हैं.

जामवंत ने त्रेता से लेकर द्वापर युग तक इसी स्थान पर निवास किया था. इसी स्थान पर उन्होंने स्यामंतक मणि के लिए भगवान श्री कृष्ण से युद्ध किया था. भगवान कृष्ण और जामवंत के बीच 27 दिन तक युद्ध चला. इस युद्ध में जामवंत हार गये और उन्होंने श्री कृष्ण को भेंट स्वरूप स्यामंतक मणि सौंप दी साथ ही अपनी पुत्री जामवंती के साथ उनका विवाह किया. इसी वजह से इस गांव को भगवान श्री कृष्ण की ससुराल भी कहा जाता है.

अध्यनकर्ता बताते है कि महाबली जामवंत त्रेता युग के रामायण काल में भी थे और महाभारतकाल में उनका भगवान श्रीकृष्ण के युद्ध से ये बात सिद्ध हो जाती है कि ये गांव द्वापर युग से पहले से है और जामवंत के नाम से ही इस गांव का नाम जामवंत पड़ा. जामवंत के खेलने के गिल्ली डंडा जो आज अलग-अलग तालाबों में गड़े हुए हैं. स्थानीय लोग बताते है कि जामवंत और भगदेई ऐतिहासिक स्थल हैं, जहां ऐसे मंदिर आज तक कहीं नहीं बनाया गये है. यहां दूर-दूर से लोग दर्शन करने आते है.

माना जाता है कि यहां जामवंत नर्मदा नदी के किनारे रहे थे. ये पूरा इलाका नर्मदा कहा जाता है. यहां से नर्मदा नदी आठ से दस किलोमीटर दूर है. हालांकि रामायण और महाभारत काल का प्रमाणिक स्थल आज सरकार की अनदेखी का शिकार हो रहे है.

Intro:रायसेन-श्री कृष्ण की ससुराल,स्वंमतक मणि को लेकर श्री कृष्ण और जामवंत की युद्ध स्थली,त्रेता,द्वापर युग का संगम रामायण और महाभारत कालीन उल्लेखित इतिहास और जामवंत की गुफाए। पुराणों में लिखित प्रमाणिक स्थल जामगढ़-भगदेई।

क्या क्या है जामगढ़-भगदेई में-

*त्रेता युग के जामवंत के हाथों बनाया शिवलिंग मंदिर जो 1000 फीट ऊंचाई पर है जहां वर्ष पर्यंत जल भरा रहता है।

*जामवंत की गुफा जहां 27 दिन तक श्री कृष्ण और जामवंत के स्वंमतक मणि को लेकर युद्ध हुआ।

*जामवंत के द्वारा अंतिम शिव मंदिर निर्माण जिसके शिखर पर कलश नहीं रखा पाया।

*जामवंत के पद चिन्ह,घुटने के निशान,बैठने के निशान, पत्थर पर लिखा बीजाक।

*जामवंत के खेलने की गिल्ली डंडा जो अलग-अलग तालाबों में गड़े हुए हैं।

*प्राचीन दुर्गा मंदिर जहां शेर के पैर के निशान देखे जाते हैं।

*जामगढ़-भगदेई जो जामवंत और उनके भाई रीछड़मंल की लीलाओं से भरा पड़ा है जामवंत ने त्रेता युग से लेकर द्वापर युग तक इसी स्थान पर लीलाएं की है।

त्रेता युग का शिवालय और जल गुफा जो 1 हजार फिट ऊंचाई पर है जहां वर्ष पर्यंत पानी भरा रहता है जामवंत की द्वापर की गुफा जहां 27 दिन तक श्री कृष्ण और जामवंत के बीच भीषण युद्ध हुआ,जामवंत के पद चिन्ह और खजाने का वीजाक, जामवंत के खेलने की गिल्ली-डंडा भगदेई में जामवंत के हाथों अंतिम निर्माण के शिव मंदिर जहां विश्व की अनोखी शिवजी की मूर्ति,500 वर्ष प्राचीन लज्जा गोरी का अंबा मंदिर जहां पुजारी सिर काटकर थाल में रखकर पूजन करता था प्राचीन बावड़ी और प्राचीन समाधि जो मन मोह लेती है प्राचीन बाराही माता का मंदिर जहां आज भी शेर वरदान मांगने आता है 1949 से आज तक संचालित संस्कृति पाठशाला और विंध्याचल पर्वत माला जो बार-बार अपनी ओर आने को आकर्षित करती है जामगढ़ का।.... सच


Body:रायसेन जिले के बरेली तहसील के यह दो गांव हैं जामगढ़-भगदेई जो विंध्याचल श्रेणी की तलहटी में बसे हुए हैं यह भोपाल से 135 और जबलपुर से 175 किलोमीटर दूर NH12 पर खरगोन से उत्तर पश्चिम दिशा में है सबसे पहले देखते हैं 1949 से आज तक चल रही संस्कृति पाठशाला है जहां 50 बच्चे अध्ययन करते हैं यह ब्रह्मलीन चित्रकूट वाले महाराज जी ने प्रारंभ की थी जो तालाब के किनारे रमणीय है इस तालाब के बीचो-बीच गिल्ली है और भगदेई के तालाब के बीचो-बीच डंडा है जिसे जामवंत और रीछड़मंल खेलते थे यहीं से शुरू होता है जामगढ़-भगदेई का त्रेता द्वापर युगी सफर...।

Byte-आचार्य शेष नारायण पांडे।

Byte-यहां से आधा किलोमीटर सफर कर पहुंचेंगे त्रेता युगीन शिवालय और जल गुफा इसी मार्ग कर पाषाण बेट-वाल है जिसे आज क्रिकेट में शामिल है यह हजारों साल पुराने हैं विंध्याचल पर्वत पर 200 मीटर ऊंचाई पर यह वही मंदिर है सीढ़ी मार्ग से चलते हैं जहां शिवालय जल गुफा और गाय गुफा है आखिर एक हजार फिट चढ़ाई चढ़कर त्रेता की शिवालय तक पहुंच गए यही है प्राचीन शिवालय और यह है जल गुफा जहां से पुजारी जल भरकर ला रहा है और यह गणेश माता पार्वती की खंडित मूर्ति है और यह है गाय गुफा जहां से गाय आती जाती थी यह एक दंतकथा है गुफा के पास बूंद बूंद करके जल साल भर टपकता है सिद्ध स्थान जहां एक एक बूंद करके पानी टपकता है जिससे सेवन करने से दमा,हार्ट चर्म रोग कोढ़ जैसे रोग दूर होते हैं त्रेता युग में जामवंत ने इसी शिवालय की स्थापना की थी यहां पर आज भी इस जल गुफा मार्ग से जाने पर प्राचीन किला है और साधु संत निवासरत है लेकिन कौन मौत के मुंह में जाना चाहेगा यहां पर भजन कीर्तन के ध्वनि सुनी जाती है गांव गुफा की दंतकथा है कि एक गाय रोज गांव के बरेदी(गाय चराने वाला)की गांयो के साथ चरती थी 1 दिन बरेदी गाय का पीछा कर गुफा के अंदर जा पहुंचा जहां साधु संत तपस्या कर रहे थे उन्होंने उसे चावल दिए जो बाहर आने पर स्वर्ण में बदल गए और उस दिन से गाय नहीं आई,प्राकृतिक सरक्षण के कारण धीरे धीरे सकीर्ण होती जा रही है।

Byte-श्री राम स्वरूप गुफा पर रहने वाला।

शिवालय से आधा किलोमीटर दूर दो सौ मीटर ऊंचाई उबड़ खाबड़ मार्ग से सात सौ मीटर चढ़ाई चढ़कर पहुंचते हैं जामवंत की वही गुफा जिसमें श्री कृष्ण और जामवंत के बीच स्वयंतक मणि की चोरी के कलंक को लेकर 27 दिन तक भीषण युद्ध हुआ था लेकिन मार्ग में क्योंच के रोए शरीर में खुजली और जलन पैदा कर देते हैं हम इस बला से बचते बचते आखिर जामवंत की गुफा तक पहुंच गए यह गुफा अद्भुत और आश्चर्यजनक है हम इस गुफा में अंदर तक गए और प्राकृतिक झय के कारण गुफा सकीर्ण हो गई है मार्ग पत्थरों से ढक गया है पुराने लोग इस गुफा के अंदर झुककर एक मिट्टी के तेल का पीपा लेकर अंदर जाते थे आधा पीपा तेल खत्म होने पर आधा पीपा तेल में लौट आते थे लेकिन गुफा की गहराई नहीं मिली इसी गुफा के अंदर जामवंत की बेटी जामवंती और श्री कृष्ण का विवाह हुआ था और उपहार में स्वयंतक मणि श्रीकृष्ण को दे दी थी यह भगवान श्रीकृष्ण की ससुराल भी है।

Byte-पीएन याज्ञबाल्य टीचर जामगढ़।

पुराणों में उल्लेख के अनुसार द्वापर युग मे स्वयंतक मणि सत्राजीत ने सूर्या की तपस्या कर प्राप्त की थी शेर ने सत्राजीत को मार डाला था और शेर के मुँह में चमकीली वस्तु देख जामवंत ने शेर शिकार कर,खेलने के लिए अपनी बेटी जामवंती को दे दी थी श्री कृष्ण को स्वयंतक मणि की चोरी का आरोप लगा था इसे ढूंढते हुए शेर के पैरों के निशान मिलाते हुए जामवंत की गुफा में पहुंचे और 27 दिन तक भीषण युद्ध हुआ और जामवंत भगवान श्री कृष्ण को पहचान गए और अपनी बेटी का विवाह श्री कृष्ण के साथ कार उपहार में स्वयंतक मणि दे दी इस मणि की विशेषता थी कि 1 दिन में 8 भार सोना देती थी एक बार यानी 25 किलो सोना,दिन भर में 200 किलो, कुल 30 दिन तक गुफा में मणि रही तो लगभग 65 क्विंटल सोना गुफा में है जो शोधकर्ता बताते हैं नवावी शासन में दूरबीन से देखा गया है जामवंत के पद चिन्हों के पास बीजाक के अंतिम शब्द" गुप्ते" का अर्थ गड़ा हुआ धन या खजाना है बीजाक में छुपा है खजाने का रहस्य। वहीं अब चलते हैं जामवंत के पद चिन्हों की ओर लेकिन रास्ते में प्राचीन बराही माता मंदिर जहां आज भी माता से आशीर्वाद मांगने आता है शेर, माता काले सर बाले(इंसान)से सामना न हो ग्रामीण आए दिन आवाज सुनते हैं और गांव की मवेशियों को कोई नुकसान नहीं होता। यह स्थान सैकड़ों वर्ष पुराना है वही जामवंत के पद चिन्ह जो आधा किलोमीटर तक मिलते हैं यह दोनों पैर हैं और यह चलते हुए दाँया पैर बायाँ पैर के निशान है आगे कूल्हे घुटने और फिर पैरो की निशान के निशान है यह लिखा है बीजाक यानि खजाने का रहस्य,यह नो गोटियां खेलने का चंगा बना है जिसे दो लोग बैठकर खेलते है और इसी बने तालाब में गिल्ली का डंडा है जामगढ़ वही तालाब में गिल्ली औऱ भगदेई तालाब में डंडा है यह द्वापर युग की पुरासम्पदा समाप्ति की कगार पर है इसका कोई सरक्षण नही है। वही भगदेई जहा पर है प्राचीन शिव मंदिर जिसे जामवंत ने नग्न होकर बनाया था एक किंबदंती है कि जामवंत और उनके भाई रीछडमल इसे बनाया है जामवंत इसे नग्न होकर बनाते थे जब कोई मंदिर में आता था तब वह चक्की चला देता था लेकिन एक दिन जामवंत की बहिन बिना चक्की चलाये आ गयी तो जामवंत ने उसे पहाड़ी पर फेंक दिया और इसी मंदिर से कूदे जो पैरों के निशान बने यहाँ गिरे और गुफ़ा में चले गए जिसके निशान आधे किलोमीटर तक बने है लेकिन जानकारी के अनुसार 11 वी सदी बताते है गुर्जर प्रतिहार बश का बना है इस मंदिर में कंकाली माँ, यक्ष की मूर्ति और शिव जी की उध्र्व लिंग संकुल अवस्था की मूर्ति विश्व मे कहि नही है।

Byte-देवीप्रसाद साहू।

Byte-शिवनारायण चोकीदार।

Byte-कमल कुमार(121)।



Conclusion:रामायण और महाभारत काल का प्रमाणिक स्थल है जो उपेक्षा का शिकार है आवश्यकता है इसे सभारने और संरक्षित करने की--आदर्श पाराशर ईटीवी भारत रायसेन।
Last Updated :Aug 22, 2019, 6:22 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.