जबलपुर। मध्य प्रदेश की स्थापना को 65 साल हो चुके हैं, ये किसी प्रदेश की स्थापना के बाद एक लंबा समय होता है. जब किसी देश के एक बड़े भू-भाग को उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पहचान मिल सके, लेकिन ऐसा लगता है कि मध्य प्रदेश को उसकी ही अपेक्षित पहचान नहीं मिल पाई. आर्थिक क्षेत्र में पिछड़ेपन की बातें तो लंबे समय से हो ही रही हैं. मध्य प्रदेश सांस्कृतिक रूप से भी बहुत पिछड़ गया.
रामेश्वर गुप्त बुंदेली साहित्य के बड़े लेखक हैं. रामेश्वर गुप्त ने 50 से ज्यादा नाटक लिखे हैं. सैकड़ों छोटे-छोटे गद्य लिखे हैं. बुंदेली में कविताएं लिखी हैं. गजलें लिखी हैं और बुंदेली को जो थोड़ी बहुत पहचान लोकगीतों के जरिए मिली, उनमें से बहुत सारे मशहूर लोकगीत और देवी गीत रामेश्वर गुप्त ने ही लिखे, लेकिन इस बुंदेली साहित्यकार को वो पहचान नहीं मिल पाई जो दूसरी बोली या भाषा के लोगों को लोगों को मिली.
बुंदेली बोलने वाले अनपढ़ गवार कहलाते हैं
रामेश्वर गुप्ता कहते हैं कि बुंदेली मध्य प्रदेश के बड़े भू-भाग में बोली जाती है. लगभग आधा मध्य प्रदेश इसी भाषा में बातचीत करता है, लेकिन जब बुंदेली किसी सभ्य समाज में बोली जाती है तो लोग बुंदेली बोलने वाले को गवार कहते हैं. जबकि बिहारी, भोजपुरी, पंजाबी, गुजराती, मराठी जैसी भाषाओं का पढ़े-लिखे समाजों में भी व्यवहार होता है. ऐसे ही दक्षिण की बोलियों और भाषाओं को अच्छा दर्जा प्राप्त है, लेकिन बुंदेली बोलने वाला कम पढ़ा लिखा माना जाता है. रामेश्वर गुप्त कहते हैं कि दरअसल बुंदेली को सम्मान देने का काम सरकार की ओर से बिल्कुल भी नहीं किया गया.
बुंदेली संस्कृति हाशिए पर
बुंदेली केवल बोली नहीं है, बल्कि बुंदेली संगीत और नृत्य को भी वो पहचान नहीं मिली. मसलन बुंदेली नृत्य राई मशहूर तो हुआ, लेकिन इसको भांगड़ा-गरबा जैसी पहचान नहीं मिली. बुंदेली खानपान, रहन-सहन और पूरी बुंदेली संस्कृति में रहने वाले लोग पिछड़े माने गए. धीरे-धीरे बुंदेली संस्कृति के संगीत, नृत्य लुप्त होते जा रहे हैं, क्योंकि ना तो अब लोगों को इसमें आनंद आता है और ना ही इसके जरिए पेट भरा जा सकता है. केवल त्योहारों पर कुछ लोग फाग, ददरिया लोकगीत गा लेते हैं.
संस्कृति से पर्यटन
किसी प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत उसे केवल पहचान नहीं देती, बल्कि उसे रोजगार का जरिया भी मुहैया करवाती है. इसका जीता जागता उदाहरण राजस्थान है, राजस्थान की संस्कृति की वजह से ही वहां पर्यटन को मौका मिला और जिस राजस्थान में आए कि दूसरे स्रोत नहीं थे, वहां पर्यटन एक बड़ा स्रोत बनके सामने आया. यदि मध्य प्रदेश की बुंदेली, बघेली और गोंडी संस्कृति को भी इसी तरीके से संवर्धन मिला होता, तो मध्यप्रदेश के इस इलाके में भी संस्कृति से जुड़ा हुआ पर्यटन विकसित होता.
छत्तीसगढ़ को मिली सांस्कृतिक पहचान
बुंदेली साहित्यकार रामेश्वर गुप्त कहते हैं छत्तीसगढ़ को मध्य प्रदेश से जुदा हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है, लेकिन छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक पहचान बनी है और ये संभावना बुंदेली में भी बहुत ज्यादा है. बशर्ते सरकार इस पर ध्यान दें.
मध्य प्रदेश पिछड़े प्रदेशों में शुमार है. मध्य प्रदेश अपने स्थापना के छह दशक पूरे करने के बाद भी अपनी कोई पहचान नहीं बना पाया और अभी की सरकारों में भी मध्य प्रदेश को दिशा देने वाला कोई कामकाज नजर नहीं आता.