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MP High Court: सुनवाई के दौरान एकलपीठ ने लगाई अधिवक्ता को फटकार, HC जस्टिस की टिप्पणी- पैरवी न करना, प्रोफेशनली गलत

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Sep 3, 2023, 7:24 PM IST

Updated : Sep 3, 2023, 7:32 PM IST

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कोर्ट में अधिवक्ता को पैरवी न करने पर फटकार लगाते हुए, दस्तावेजों के आधार पर सुनाया फैसला. इस दौरान एकलपीठ ने इस मामले में अधिवक्ता की तरफ से केस में पैरवी न करने और समय मांगने को प्रोफेशनल तौर पर अनैतिक करार दिया है.

Madhya Pradesh High Court
मध्यप्रदेश जबलपुर हाईकोर्ट

जबलपुर। पैरवी न करने पर मप्र हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कोर्ट में अधिवक्ता को फटकार लगाते हुए, कहा है- पैरवी नहीं करना और अनावश्यक समय लेना एक तरह से पेशेवर कदाचरण (Professional Misconduct) है, आसान भाषा में समझे तो प्रोफेशनल नियमों का उल्लंघन करार दिया है. हाईकोर्ट जस्टिस जीएस अहलुवालिया की एकलपीठ ने कोर्ट की कार्रवाई के दौरान ये बात कही.

उन्होंने अपने आदेश में ब्लैक लॉ डिक्शनरी (Black Law Dictionary) का हवाला देते हुए कहा कि पैरवी नहीं करते हुए, अनावश्यक समय लेना पेशेवर कदाचरण है. कानूनी पेशे को शुद्ध रखने के लिए आदालती प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकना होगा.

क्या है पूरा मामला: दरअसल, हाईकोर्ट के जस्टिस जीएस अहलुवालिया की एकलपीठ ने एक केस में अधिवक्ता के पैरवी न करने पर दस्तावेजों के आधार पर फैसला सुनाया. सिंगरौली के रहने वाले राधा सिंह ने पति की मौत के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए हाईकोर्ट की शरण ली थी. याचिका की सुनवाई के दौरान उनके अधिवक्ता ने समय मांगा.

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इसके बाद एकलपीठ ने आग्रह को अस्वीकार करते हुए पैरवी करने के निर्देष दिये. इसके बावजूद भी अधिवक्ता केस फाइल खोलने तैयार नहीं हुए. न्यायालय में ही उन्हें केस फाइल की उपलब्ध कराई गई, तो अधिवक्ता ने कहा कि याचिकाकर्ता का पक्ष मजबूती से कोर्ट के सामने प्रस्तुत करना, उनका कर्तव्य है. वो पैरवी के लिए तैयार नहीं है, और वकालत उनका पेशा, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता है.

कोर्ट ने दिया ब्लैक लॉ डिक्शनरी का हवाला: इसके बाद पूर्व में पारित आदेश और ब्लैक लॉ डिक्शनरी का हवाला दिया. इसके तहत अधिवक्ता को पैरवी करने के लिए निर्देशित किया गया. इसके बाद एकलपीठ ने फैसला सुनाते हुए केस को लेकर टिप्पणी की- "उपस्थित दस्तावेजों को आधार पर आदेश पारित करने के अलावा, उनके पास कोई विकल्प नहीं है. पीठ की तरफ से समय दिए जाने के बाद भी , अधिवक्ता ने उपस्थित होकर नियुक्ति के मामले में पॉलिसी पेश की, लेकिन पैरवी नहीं की."

शासकीय अधिवक्ता ने एकलपीठ को बताया: "याचिकाकर्ता का पति संविदा शिक्षक के रूप में कार्यरत था, और उसकी मृत्यु 14 फरवरी 2018 में हुई थी. उस समय संविदा कर्मचारियों की मृत्यु होने की स्थिति में अनुकंपा नियुक्ति देने की कोई पॉलिसी नहीं थी. वर्तमान में संविदा कर्मचारियों के परिजनों को अनुकंपा नियुक्ति देने की पॉलिसी लागू है.

कोर्ट ने सुनाया फैसला: एकलपीठ ने याचिका का निराकरण करते हुए अपने आदेश में कहा- मृत्यु दिनांक के दिन प्रभावी पॉलिसी के आधार पर याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को निराकरण किया जाये.

Last Updated : Sep 3, 2023, 7:32 PM IST
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