सम्राट मिहिर भोज की जाति पर विवाद: गुर्जर युवकों ने प्रशासनिक अमले पर किया पथराव, रात 2 बजे हुई शांतिवार्ता

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Published : Sep 26, 2021, 7:08 AM IST

Updated : Sep 26, 2021, 10:53 AM IST

Controversy over the of Emperor Mihir Bhoj

सम्राट मिहिर भोज (Emperor Mihir Bhoj) की जाति पर शुरू हुए विवाद में हाईकोर्ट (High Court) ने प्रतिमा की शिला पट्टिका ढंकने के आदेश दिए थे. कोर्ट के आदेश पर पट्टिका ढंकने गए अधिकारियों पर गुर्जर समाज के युवकों ने पथराव (Youths of Gurjar Community Pelted Stones) कर दिया. पथराव में एएसपी राजेश दंडोतिया घायल (ASP Rajesh Dandotia Injured) भी हो गए. रात दो बजे प्रशासन और गुर्जर समाज की हुई शांतिवार्ता.

ग्वालियर। सम्राट मिहिर भोज (Emperor Mihir Bhoj) जाति को लेकर चल रहे विवाद में शनिवार को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ (Gwalior Bench of Madhya Pradesh High Court) ने दखल दिया. कोर्ट ने प्रतिमा की शिला पट्टिका ढंकने का आदेश जारी किया. शनिवार रात शिला पट्टिका काे ढंकने पहुंचे प्रशासन का गुर्जर समाज के लोगों ने प्रशासन और पुलिस पर पथराव (Stone Pelting on Administration and Police) कर दिया. स्थिति को काबू करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े. रात दो बजे प्रशासन और गुर्जर समाज की हुई शांतिवार्ता.

इस दौरान पुलिस के आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए. पथराव में एएसपी राजेश दंडोतिया घायल (ASP Rajesh Dandotia Injured) भी हो गए. आखिरकार प्रशासन ने शिला पट्टिका को चारों ओर टीन से ढंक दिया. गुर्जर समाज के विरोध के बाद पुलिस ने इलाके को छावनी में तबदील कर दिया.

सम्राट मिहिर भोज की जाति पर विवाद

शांतिवार्ता में प्रशासन और समाज के बीच बनी सहमति

पथराव के बाद प्रशासन ने रात 2 बजे बैठक का आयोजन किया. कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह, एसपी अमित सांघी, जिला पंचायत सीईओ आशीष तिवारी की मौजूदगी में गुर्जर समाज के प्रतिनिधियों से पुलिस कंट्रोल रूम सभागार में चर्चा की. इस दौरान हाईकोर्ट के आदेश अनुसार शिला पट्टिका को बाहर से कवर किए जाने पर सहमति बनी. इसके अलावा शिला पट्टिका के साथ छेड़छाड़ न किए जाने का आश्वासन जिला प्रशासन ने दिया. वहीं प्रशासन और गुर्जर समाज के लोगों के बीच हुई शांतिवार्ता के बाद प्रतिनिधियों ने समाज के लोगों से अपील की है कि शिला पट्टिका को हटाया नहीं जा रहा है, उसे सिर्फ कवर किया गया है.

हाईकोर्ट के आदेश पर कलेक्टर ने बनाई कमेटी

पिछले ग्वालियर के चिरवाई नाके पर राजा मिहिर भोज के प्रतिमा का अनावरण किया गया था. जिसके बाद उनकी जाति को लेकर क्षत्रिय और गुर्जर समाज के बीच संघर्ष की स्थिति बन गई. इस विवाद का असर ग्वालियर के अलावा आसपास के मुरैना और भिंड़ जिलों में भी पड़ने से स्थिति बिगड़ने लगी. इस मामले में ग्वालियर कलेक्टर को हाईकोर्ट ने एक कमेटी बनाने के आदेश दिए. स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कोर्ट ने प्रतिमा पर लगी शिला पट्टिका ढंकने के आदेश दिए. जिसके बाद विवाद और बढ़ गया.

People and administration of Gujjar society came face to face late at night
देर रात आमने-सामने आए गुर्जर समाज के लोग और प्रशासन

3 हफ्ते में रिपोर्ट सौंपेगी कमेटी

कलेक्टर द्वारा बनाई गई कमेटी में संभागीय आयुक्त आशीष सक्सेना को अध्यक्ष और आईजी ग्वालियर रेंज को उपाध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावा गुर्जर समाज से आरबीएस घुरैया और क्षत्रिय समाज के डीपी सिंह को सदस्य के रूप में नामित किया गया है. हाई कोर्ट ने कमेटी को 3 हफ्ते के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा है.

समाजसेवी ने कोर्ट मे दायर की थी याचिका

ग्वालियर के समाजसेवी राहुल साहू ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. उनकी ओर से कोर्ट में तर्क दिया गया कि सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा को लेकर दो समाजों में विवाद चल रहा है. इससे शहर में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति बिगड़ रही है. प्रशासन की ओर से पैरवी करते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता ने तर्क दिया कि नगर निगम ने प्रतिमा लगाने का जो प्रस्ताव पास किया था, उसमें सम्राट मिहिर भोज ही लिखा गया था. इस विवाद को खत्म करने के लिए चार सदस्यीय कमेटी बना दी है.

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कोर्ट के आदेश की प्रमुख बातें

  • कोर्ट ने कहा कि कमेटी में संभागायुक्त और पुलिस महानिरीक्षक को शामिल किया जाए. संभागायुक्त कमेटी के अध्यक्ष होंगे और आईजी उपाध्यक्ष. कमेटी में एक सदस्य गुर्जर समाज और एक क्षत्रिय समाज का सदस्य लिया जाए. फिर भी कोई विवाद होता है तो गुर्जर समाज के अधिवक्ता आरवीएस घुरैया और क्षत्रिय समाज का अधिवक्ता डीपी सिंह प्रतिनिधित्व करेंगे.
  • कमेटी ठोस सबूत और साहित्य के आधार पर ऐतिहासिकता का पता लगाएगी. साथ ही इस पर भी विचार करेगी कि सार्वजनिक स्थान पर राष्ट्रीय नायक की मूर्ति के सामने जाति प्रयोग किया जा सकता है. देश में लगी सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमाओं के संबंध में भी मार्गदर्शन लेगी. साथ ही समय पर सुप्रीम कोर्ट ने दिए संवैधानिक सिद्धांत व आदेशों पर भी विचार करेगी. बंद लिफाफे में रिपोर्ट पेश की जाएगी.
  • कोर्ट ने कहा, कमेटी की रिपोर्ट आने तक शिला पट्टिका को ढंका जाए, जो दो समाजों को बीच विवाद का कारण बनी है. कोर्ट ने दोनों समाज के बुजुर्ग लोगों से उपेक्षा की है कि वह लोगों को समझाएं.

इस तरह शुरू हुआ जाति पर विवाद

ग्वालियर में सम्राट मिहिर भोज की प्रतिमा लगाई गई थी. इस प्रतिमा के नीचे लगे शिलालेख पर लिखे गुर्जर शब्द लिखा था, जिस पर ही विवाद शुरू हुआ. गुर्जर समाज का मानना है कि सम्राट मिहिर भोज गुर्जर शासक थे, जबकि राजपूत समाज का कहना है कि वो प्रतिहार वंश के शासक थे. सम्राट मिहिर भोज के नाम से पहले गुर्जर शब्द लगाने को लेकर ठाकुर समाज के लोगों ने जगह-जगह महापंचायत की थी. इसके बाद इस विवाद की लपटें मुरैना जिले तक पहुंची. अब हाईकोर्ट ने इस मामले में दखल दिया है.

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'कन्नौज' थी सम्राट मिहिर भोज की राजधानी

सम्राट मिहिर भोज (836-885 ई) या प्रथम भोज, गुर्जर-प्रतिहार राजवंश के राजा थे, जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी हिस्से में लगभग 49 वर्षों तक शासन किया. उस वक्त उनकी राजधानी कन्नौज (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) थी. इनके राज्य का विस्तार नर्मदा के उत्तर से लेकर हिमालय की तराई तक था, जबकि पूर्व में वर्तमान पश्चिम बंगाल की सीमा तक माना जाता है.

इनके पूर्ववर्ती राजा इनके पिता रामभद्र थे. इनके काल के सिक्कों पर आदिवाराह की उपाधि मिलती है. जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि ये विष्णु के उपासक थे. इनके बाद इनके पुत्र प्रथम महेंद्रपाल राजा बने. ऐसा माना जाता है कि ग्वालियर किले के समीप तेली का मंदिर में स्थित मूर्तियां मिहिर भोज द्वारा बनवाया गया था.

ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का पहली बार उल्लेख

ऐतिहासिक दृष्टि से देखें तो प्रतिहार वंश की स्थापना आठवीं शताब्दी में नाग भट्ट ने की थी और गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में इन्हें गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है. इतिहासकार केसी श्रीवास्तव की पुस्तक 'प्राचीन भारत का इतिहास तथा संस्कृति' में लिखा है कि 'इस वंश की प्राचीनता 5वीं शती तक जाती है'. पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख में गुर्जर जाति का उल्लेख पहली बार हुआ है. हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख है.

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चीनी यात्री व्हेनसांग ने भी गुर्जर देश का उल्लेख किया है. उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से में करीब 300 सालों तक इस वंश का शासन रहा और सम्राट हर्षवर्धन के बाद प्रतिहार शासकों ने ही उत्तर भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की थी. मिहिर भोज के ग्वालियर अभिलेख के मुताबिक, नाग भट्ट ने अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से रोक दिया था, लेकिन राष्ट्रकूट शासक दंतिदुर्ग से उसे पराजय का सामना करना पड़ा था.

सम्राट मिहिर भोज की जाति पर सियासत

सम्राट मिहिर भोज को गुर्जर या राजपूत बताए जाने को लेकर जानकारों का कहना है कि इसका इतिहास से मतलब कम, राजनीति से ज्यादा है, मिहिर भोज राजपूत थे या गुर्जर थे, इसमें ऐतिहासिकता कम राजनीति ज्यादा हो रही है. इतिहास तो यही कहता है कि आज के जो गूजर या गुज्जर-गुर्जर हैं, उनका संबंध कहीं न कहीं गुर्जर प्रतिहार वंश से ही रहा है. दूसरी बात, यह गुर्जर-प्रतिहार वंश भी राजपूत वंश ही था. ऐसे में विवाद की बात होनी ही नहीं चाहिए, लेकिन अब लोग कर रहे हैं तो क्या ही कहा जाए.

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गुर्जर प्रतिहार वंश के शासक थे सम्राट मिहिर भोज

भिंड जिला पुरातत्व अधिकारी वीरेंद्र पांडेय ने बताया कि सम्राट मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार वंश के प्रतापी और विस्तार करने वाले शासक थे. उन्होंने 836 ई में अपने पिता का साम्राज्य राजा के तौर पर ग्रहण किया था. उस दौरान राजघराने के हालत और प्रतिष्ठा उनके पिता रामभद्र के शासनकाल के दौरान काफी नाजुक हो गयी थी. सिंहासन संभालने के बाद सबसे पहले उन्होंने बुंदेलखंड में अपने परिवार की प्रतिष्ठा को फिर से मजबूत करने का काम किया. आगे चलकर 843 ई में उन्होंने गुर्जरत्रा-भूमि (मारवाड़) में भी अपनी प्रतिष्ठा को कायम किया था जो उनके पिता के साम्राज्य के दौरान कमजोर हुई थी.

क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं

पुरातत्व अधिकारी ने आगे बताया कि मिहिर भोज एक गुर्जर प्रतिहार राजा थे, क्योंकि जितने राजाओं ने शासन किया है वे सभी क्षत्रिय थे, और क्षत्रिय एक गुण होता है जाति नहीं. हालांकि वे राजपूत क्षत्रिय थे. क्योंंकि गुर्जर क्षेत्र का नाम था. वीरेंद्र पांडेय कहते हैं कि इतिहास में लोगों ने क्षेत्र के हिसाब से जातियां बनाई थी.

Last Updated :Sep 26, 2021, 10:53 AM IST
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