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सैयद हैदर रजा का दमोह से खास नाता, दिल को छू लेने वाली कहानी

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Published : Feb 22, 2021, 10:30 PM IST

कूचियों से बनाई तूलिकाओं को विश्व में अलग पहचान दिलाने वाले सैयद हैदर रजा का आज जन्मदिन है. उनका दमोह से खास नाता था. पढ़िए सैयद हैदर रजा की दिल को छू लेने वाली कहानी.

Painter Syed Haider Raza
सैयद हैदर रजा

दमोह। बचपन में अपनी पढ़ाई के दौरान मन न लगने पर स्कूल से भाग जाने वाला लड़का बड़ा होकर एक दिन देश का नाम विश्व भर में रोशन करेगा. यह बात कौन जानता था. लेकिन नियति को कुछ ऐसा ही मंजूर था और आगे चलकर हुआ भी यही. हम बात कर रहे हैं विश्व प्रसिद्ध चित्रकार सैयद हैदर रजा साहब की. जिन्होंने अपनी कूचियों से बनाई तूलिकाओं को विश्व में अलग पहचान दिलाई. आज उनका जन्मदिन है.

Painter Syed Haider Raza
सैयद हैदर रजा
  • हैदर रजा साहब का दमोह से खास नाता

मंडला जिले की बिछिया तहसील के ग्राम ककैया में जन्मे हैदर रजा साहब का दमोह से बहुत गहरा नाता रहा है. अपने बाल्यकाल से लेकर किशोरावस्था तक का अधिकांश समय उन्होंने दमोह की गलियों में ही गुजारा है. जब फुटेरा वार्ड में रहा करते थे. तब फुटेरा स्कूल में ही उनकी शिक्षा-दीक्षा चल रही थी. पढ़ाई में मन न लगने के कारण अक्सर वह स्कूल से गोल मारकर फुटेरा तालाब पर स्थित नदी के पास जाकर घंटों बैठा करते थे. जब इस बात की जानकारी उनकी मां ताहिरा बेगम को लगी तो उन्होंने उनके शिक्षक नंदलाल झारिया से कहा कि वह कुछ ऐसा करें कि रजा का मन पढ़ने में लगने लगे.

Painter Syed Haider Raza
विश्व प्रसिद्ध चित्रकारी
  • एक शिक्षक ने बदला जीवन

शिक्षक नंदलाल झारिया ने ब्लैक बोर्ड पर एक बिंदु बनाकर राजा साहब से कहा कि वह उस पर ध्यान केंद्रित करें. यही वह घटना थी जिसने राजा साहब का पूरा जीवन बदल दिया. उसके बाद वह अक्सर ऐसा करने लगे और धीरे-धीरे उनका मन पढ़ाई में लगने लगा. इसके साथ ही वह चित्रकारी भी करने लगे. सबसे खास बात यह थी कि उनकी सभी कला में बिंदु का बेजोड़ महत्व रहा. हर चित्रकारी में उन्होंने बिंदु को स्थान जरुर दिया.

Painter Syed Haider Raza
हैदर रजा साहब का दमोह से खास नाता
  • रजा साहब 6 बार आए दमोह

दमोह के प्रति रजा साहब की दीवानगी इसी बात से झलकती है कि यहां से मुंबई और मुंबई से पेरिस जाने के बाद भी उनका दिल यहीं रह गया. वह करीब छह बार दमोह की धरती पर वापस आए. 2011- 12 में जब वह अंतिम बार दमोह आए, तो उन्होंने अपने कुछ संस्मरण भी साझा किए. उन्होंने बताया कि बड़ी देवी मंदिर के सामने जो नंदी बना है. वह उससे एकांत में अक्सर बातें किया करते थे. यही नहीं स्कूल से गोल मारने के बाद वहीं पर आकर बैठते थे.

  • रजा फाउंडेशन बनाने की ख्वाहिश

राजा साहब ने बताया था कि शिक्षक नंदलाल झारिया और दूसरे शिक्षक दरयाव सिंह के कारण ही वह इस मुकाम तक पहुंचे हैं. रजा साहब से करीब से जुड़े रहे समाजसेवी संतोष भारती ने जब रजा फाउंडेशन बनाने की ख्वाहिश बताई. तो वह बहुत प्रसन्न हुए. उनके साथ दमोह के पास ही फाउंडेशन के लिए जमीन भी देखने गए थे.

  • जिस स्कूल ने दिशा बदली वह नहीं बदला

राजा साहब जब भी दमोह आते थे. वह फुटेरा स्कूल में विद्यार्थियों से अवश्य ही संवाद करते थे. साथ ही उन्हें पुरस्कृत भी करते थे. लेकिन उन्हें ताउम्र एक ही मलाल रहा कि जिस फुटेरा स्कूल ने उनके जीवन की दिशा बदल दी. उस स्कूल के लिए इतना दान करने के बाद भी उसकी दशा नहीं बदल सकी.

  • विदेश चले गए पर दिल छोड़ गए

सैयद हैदर रजा साहब पेरिस तो चले गए पर उनका दिल हिंदुस्तान में ही रह गया. यही कारण रहा कि अपने जीवन के अंतिम दिनों में वह वापस भारत लौट आए. सारी उम्र पेरिस में गुजारने के बाद भी उन्होंने वहां की नागरिकता नहीं ली. जबकि विश्व भर से उन्हें तमाम पुरस्कार और सम्मान मिले. रजा फाउंडेशन के अध्यक्ष और उनके करीबी साथी अशोक बाजपेई ने बताया कि रजा पुरस्कार हर साल हिंदुस्तानी कलाकार को दिया जाता है. उनकी वसीयत और अंतिम इच्छा के अनुसार उन्हें उनके पिता की कब्र के बगल में ही दफन किया गया.

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