आज गणेश जयंती के सुखद संयोग पर गणेश जी को ऐसे करें प्रसन्न, जानिए विधि और महत्व

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Published : Nov 19, 2021, 3:21 PM IST

Updated : Feb 4, 2022, 9:41 AM IST

Sankashti Chaturthi November 2021
गणाधिप संकष्टी गणेश चतुर्थी ()

बुधवार और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. चतुर्थी तिथि प्रत्येक मास में दो बार आती है, जिसमें गणपति की पूजा की जाती है. कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी गणेश चतुर्थी कहा जाता है, और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) कहते हैं. भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा महत्व गणेश जी का है. इसलिए सबसे पहले उनको ही पूजा जाता है.

भोपाल: बुधवार और चतुर्थी तिथि भगवान गणेश को समर्पित है. भगवान गणेश की प्रसन्नता के लिए बुधवार और चतुर्थी का व्रत करने का विधान है. व्रत से शरीर की शुद्धि होती है और स्वाध्याय से मन की शुद्धि होती है. पहले से किसी संकट की स्थिति बनी हो या किसी संकट के आने की उम्मीद हो इसके लिए बुधवार और गणेश चतुर्थी का व्रत करना चाहिए. संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत हर महीने में कृष्ण चतुर्थी को किया जाता है. इसमें चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी ली जाती है. यदि 2 दिन का चंद्रोदय व्यापिनी हो तो प्रथम दिन का व्रत करना चाहिए. इसमें व्रति को सुबह उठकर स्नान ध्यान कर दाहिने हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत और फूल लेकर संकल्प करना चाहिए.इस मंत्र को बोलें- मम् वर्तमान आगमिक सकल संकट निरसन पूर्ण सकल अद्विय सिद्धये संकट चतुर्थी व्रतं अहं करिष्ये.

मंत्र के साथ व्रत का संकल्प लेकर दिन भर उसे मौन रहना चाहिए. इसके बाद शाम को एक बार फिर से स्नान ध्यान कर चौकी या बेदी पर गणेश जी की स्थापना करनी चाहिए. इसके बाद गणेश जी के 16 नामों के द्वारा षोडशोपचार कर,उनका पूजन करना चाहिए. कपूर या घी की बत्ती जला कर उनकी आरती करनी चाहिए.इसके बाद मंत्र पुष्पांजलि करनी चाहिए.मंत्र- यज्ञेन यज्ञं अयजन्त देवाः तानि धर्माणि प्रथामानि आसन् तेह नांक महिमानः सचन्तयत्र पूर्वे साध्याः संति देवा:इस मंत्र के बाद सुपारी अक्षत जो भी सामग्री हो उसे भगवान को चढ़ा कर वहां उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद का वितरण करना चाहिए.इसके बाद चंद्रोदय होने पर चंद्रमा का भी गंध, अक्षत, फूल से विधिवत पूजन कर, चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए.

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चंद्रमा का पूजन!

इस विषय में ब्रह्मांड पुराण में लिखा है कि पार्वती जी ने गणेश जी को प्रकट किया था. उस समय चंद्र, इंद्र सभी देवताओं ने आकर गणेश जी दर्शन किया, लेकिन शनिदेव इससे दूर ही रहे. इसका कारण यह है कि उनकी दृष्टि जिनके ऊपर पड़ती है, उसके साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो जाता है, वह काला हो जाता है. लेकिन पार्वती जी के उलाहना और ताना मारने से शनि ने बालक को देखने का निर्णय लिया. शनिदेव ने जैसे ही अपनी दृष्टि गणेश जी पर डाली गणेश जी का मस्तक उड़कर अमृतमय चंद्र मंडल में चला गया. माना जाता है कि चंद्रमा में उनका मुख आज भी पड़ा हुआ है, इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन और पूजन किया जाता है.

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दूसरी कथा के अनुसार पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से गणेश जी को उत्पन्न किया. वह नहाने चली गईं तो शिवजी आए. गणेश जी ने शिवजी को अंदर जाने नहीं दिया. तब शिव जी ने त्रिशूल से गणेश जी की गर्दन काट दी. त्रिशूल से गर्दन कटने के बाद गणेश जी का मस्तक चंद्रलोक में चला गया. इधर पार्वती जी की प्रसन्नता के लिए शिवजी ने हाथी के बच्चे का मुख गणेश जी को लगा दिया. ऐसा मानना है कि गणेश जी का मस्तक चंद्रमा में है. इसलिए चंद्रमा में गणेश जी का दर्शन किया जाता है. यह व्रत 4 या 13 वर्ष का है. इसके बाद विधि-विधान से उद्यापन करना चाहिए.

21 मोदक लेकर गणेश जी के 21 नाम से पूजा

इस व्रत के उद्यापन में 21 मोदक लेकर 21 बार गणेश जी के नामों का उच्चारण करना चाहिए. इसके बाद अपनी क्षमता के अनुसार दान कर सकते हैं. 21 मोदक में से 10 मोदक अपने लिए, 10 मोदक ब्राह्मणों के लिए और एक मोदक गणेश जी के लिए छोड़ देना चाहिए. भारतीय संस्कृति में सबसे ज्यादा महत्व गणेश जी का है. इसलिए सबसे पहले उनको ही पूजा जाता है. वो हर किसी की रिक्तता की पूर्ति करते हैं. जब कोई रास्ता न दिखे, विघ्न दिखे, तो गणेश जी का पूजन करना चाहिए. इससे इंसान को यश, बुद्धि, धन और वैभव मिलता है. समस्त प्रकार की मंगल कामनाएं गणेश जी की पूजा से पूर्ण होती हैं. रविवार को चतुर्थी तिथि होने की वजह से इस बार पूजा का महत्व और भी बढ़ जाता है.

Last Updated :Feb 4, 2022, 9:41 AM IST
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