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कांग्रेस में खुलकर नजर आई गुटबाजी, आपसी विवादों के बीच किसकी चमकेगी किस्मत

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Published : Jul 31, 2021, 10:36 AM IST

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जोबट उपचुनाव को लेकर चौक चौराहों पर चर्चा का दौर जारी है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के द्वारा पिछले दिनों भोपाल से जिला कांग्रेस के नेताओं का बुलावा आने के बाद से उप चुनाव के दावेदारों में खलबली सी मच गई है.

अलीराजपुर। जिले में इन दिनों जोबट उपचुनाव को लेकर चौक चौराहों पर चर्चा का दौर जारी है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के द्वारा पिछले दिनों भोपाल से जिला कांग्रेस के नेताओं का बुलावा आने के बाद से उप चुनाव के दावेदारों में खलबली सी मच गई है. भोपाल में आयोजित बैठक में कमलनाथ सभी दावेदारों को एक सुत्र में बंधे रहने का मंत्र दिया है. कमलनाथ ने कहा है कि सभी नेता मिलकर पार्टी को मजबूती प्रदान करें. टिकिट देने के लिए संगठन स्तर पर चर्चा की जाएगी और क्षेत्र में सर्वे किया जाएगा. उन्होंने बताया कि जो दावेदार सर्वे में खरा उतरेगा उसे ही पार्टी के द्वारा टिकिट दिया जाएगा.


पार्टी में सामने आई गुटबाजी
दरअसल, 23 जुलाई को आजाद जयंती के दिन जोबट के होटल में जिले भर के नेताओं की एक बैठक राष्ट्रीय महासचिव कुलदिप इंदौरा और विधायक रवी जोशी ने आयोजित की थी, जिसमें दावेदारी को लेकर कांग्रेस की गुटबाजी खुलकर सामने आई थी. बैठक के दौरान 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकिट नहीं मिलने से नाराज विशाल रावत पार्टी के विरूद्ध बागी प्रत्यासी बनकर चुनाव लड़े थे, जिसके बाद से विशाल रावत और उनकी माता पुर्व मंत्री और विधायक सुलोचना रावत को पार्टी से निकाल दिया गया था. उनको पार्टी में वापस लेने को लेकर क्षेत्र के कई नेताओं ने खुलकर विरोध किया था. जिसके बाद से ऐसा लग रहा था कि जिला कांग्रेस अध्यक्ष महेश पटेल को पार्टी को एक ही प्लेटफार्म पर लाना मुस्किल नजर आ रहा था. लेकिन पिछले दिनो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के दिए गया मंत्र कितना कारगर साबित होगा यह देखना होगा.


सुलोचना रावत
बता दें कि जोबट विधानसभा में आजादी के बाद से ही रावत परिवार का दबदबा रहा है. अजमेर सिंह रावत के बाद उनकी पुत्रवधू सुलोचना रावत ने इस विधानसभा की कमान 1997 में संभाली थी. जिसमें उन्हें भारी बहुमत से विजय प्राप्त हुई थी. ठीक एक वर्ष बाद 1998 में भी उन्हें इस सीट से जीत हासिल हुई. 2003 में उनकी ही पार्टी से बीजेपी में सामिल हुए माधुसिंह डावर के हाथों उन्हें पहली बार हार का सामना करना पड़ा. 2008 में सुलोचना रावत ने एक बार फिर यह सीट हासिल की.

साल 2013 में पार्टी ने सुलोचना रावत की सहमति पर उनके पुत्र विशाल रावत को पार्टी का चेहरा बनाया, लेकिन वह बीजेपी के उम्मीदवार माधुसिंह डावर से हार गए. 2013 की हार के बाद रावत परिवार का जनाधार खत्म होता नजर आने लगा. पार्टी ने 2018 में झाबुआ जिला पंचायत अध्यक्ष कलावति भूरिया को पार्टी की कमान सौंपी. कलावती भूरिया पार्टी को विजय श्री दिलाने में सफल रही. वहीं, रावत परिवार अपनी राजनीतिक विरासत पाने के लिए सुलोचना रावत के पुत्र विशाल रावत निर्दलीय खड़े होकर 32000 रिकॉर्ड मत पाकर जोबट विधानसभा में आज भी उनकी मजबूत पकड़ है.

कमजोर पक्ष
दरअसल, बीते वर्ष से स्थानीय संगठन से दूरी और विशाल रावत के निर्दलीय खड़ा होने पर पार्टी से निष्कासन होने के कारण पार्टी के कार्यकर्ताओं व कलावती गुट ने पार्टी में पूरी तरह कब्जा कर लिया. विशाल रावत के साथ देने के कारण कई कार्यकर्ता जो विशाल के साथ चले गए थे अपने आप को उपेक्षित महसूस करने लगे. चुनाव खत्म हो जाने के बाद विशाल रावत द्वारा उनके साथ रहे कार्यकर्ता की उपेक्षा करने जैसे आरोप लगते रहे हैं. उन्हें वापस अपने पाले में लाना एक चुनौती पूर्ण कार्य होगा.

महेश पटेल
वर्तमान में कांग्रेस जिला अध्यक्ष जिले के दबंग एवं कद्दावर नेता स्व. वेस्ताजी पटेल के बाद कांग्रेस की कमान उनके ही पुत्र महेश पटेल ने संभाली है. पिता की ही तरह ओजस्वी एवं आक्रमक तेवर के चलते भाजपा शासन में पटेल परिवार ने ही जिले में कांग्रेस को जिंदा रखा व हर मोर्चे में भाजपा से दो-दो हाथ करके अपने कार्यकर्ता का मनोबल कभी नहीं गिरने दिया.

कमजोर पक्ष
महेश पटेल बीते कुछ सप्ताह पूर्व एक निर्विवाद नेता के रूप में इस क्षेत्र में विख्यात थे. नगरिय एवं शहरी मतदाताओं का भी झुकाव पटेल की ओर हो रहा था. जैसे राजनीतिक समीकरण बदला महेश पटेल की दावेदारी इस क्षेत्र में मजबूत होने लगी. इस दौरान उनके सबसे विश्वसनीय सिपहसालार जो वर्षों से सोशल मीडिया में पटेल को अपने नेता के रूप में कैंपेन चला रहे थे. महेश पटेल को अपना नेता मान रहे थे, पटेल परिवार की आड़ में क्षेत्र में राजनीति करते आए ऐसे में उन्होंने अपनी दावेदारी ठोक दी. जिससे कांग्रेस की राजनीतिक समीकरण बदलते नजर आने लगे. ऐसे में पटेल को टिकट मिलता है तो इन दिक्कतों से पार पाना पड़ेगा.


दीपक भूरिया एवं विक्रांत भूरिया
दीपक भूरिया एवं विक्रांत भूरिया दोनों ही केंद्रीय मंत्री कांतिलाल जी भूरिया के परिवार से आते हैं. विक्रांत भूरिया वर्तमान में यूथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं. दोनों ही ऊर्जावान एवं शांत प्रवृत्ति के प्रत्याशी के रूप में देखे जाते हैं. दोनों ही उस बिरादरी से आते हैं जिनके मतदाता पूरी तरह अपना वोट अपनी बिरादरी के व्यक्ति को देना पसंद करते है.

कमजोर पक्ष
कलावती भूरिया के दौर में जोबट की कमान विक्रांत व दिपक भूरिया के द्वारा नहीं संभाली गई थी. जिसके कारण वह उन्हें अपनी बुआ व बहन के कार्यकर्ताओं की टीम से कुछ हद तक अनभिज्ञ है. वहीं, इस विधानसभा के कुछ कार्यकर्ताओं को छोड़कर दूसरे कार्यकर्ताओं से सीधा संपर्क नहीं रहा है. ऐसे में क्षेत्रीय उम्मीदवार की टिकट की मांग करके स्थानीय कार्यकर्ताओं ने अपने तेवर बता दिए हैं.

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