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Guru Pradosh Vrat 2023: गुरु प्रदोष व्रत आज, ऐसे करें महादेव की पूजा...मिलेगा आशीर्वाद

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Published : Feb 2, 2023, 8:43 AM IST

guru pradosh vrat 2023
गुरु प्रदोष व्रत 2023

गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है. इस व्रत का महत्व गुरुवार को होने से और अधिक बढ़ जाता है. इस दिन भगवान शिव के साथ भगवान विष्णु जी का पूजन भी किया जाता है.

गुरु प्रदोष व्रत 2023: हिंदू धर्म में त्रयोदशी को बेहद शुभ माना जाता है. त्रयोदशी तिथि भगवान शंकर को समर्पित है और त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत किया जाता है. 2 फरवरी 2023, गुरुवार को गुरु प्रदोष व्रत है. त्रयोदशी प्रत्येक महीने दो बार आती है, इसलिए प्रदोष व्रत भी महीने में दो बार किया जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत के दिन विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. प्रदोष व्रत करने से संतान सुख और पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती, विशेषकर चंद्र ग्रह के दोष दूर होते हैं, भगवान शिव की प्रसन्नता लिए प्रदोष व्रत और मासिक शिवरात्रि करना अति उत्तम होता है.

गुरु प्रदोष व्रत का महत्व: ज्योतिषियों की मानें तो अगर किसी के दांपत्य जीवन में कष्ट, परेशानी या वाद-विवाद है तो उसे गुरु प्रदोष व्रत रखना चाहिए. इससे आपको भगवान शिव के साथ-साथ गुरु देव बृहस्पति का आशीर्वाद भी मिलता है. कहते हैं कि गुरु प्रदोष व्रत का पुण्य सौ गायों को दान करने जितना होता है. गुरु प्रदोष व्रत करने से आपको सारे कष्टों से निवारण मिल जाता है. गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं को शांत करने वाला होता है.

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गुरु प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त: गुरु प्रदोष व्रत 2 फरवरी को शाम 4 बजकर 25 मिनट से लेकर अगले दिन यानी 3 फरवरी को शाम 06 बजकर 58 मिनट तक रहेगा. प्रदोष व्रत में प्रदोष काल में ही पूजा का विशेष महत्व होता है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम सूर्यास्त से करीब 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है.

प्रदोष व्रत पूजा विधिः प्रदोष व्रत के दिन सवेरे-सवेरे उठकर स्नान करें और सफेद या पीले वस्त्र धारण करें. इस दिन काले रंग के कपड़े पहनने से बचना है. इस दिन पूरे घर में गंगा जल का छिड़काव करना है. शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का दूध, दही और पंचामृत से अभिषेक करें. उसके बाद भगवान शिव को पीले या सफेद चंदन से टीका लगाएं. भगवान शिव को भांग, धतूरा और बेलपत्र अर्पित करें और उन्हें पुष्प चढ़ाकर भगवान शिव की आराधना करें. साथ ही साथ ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप भी करना है. माता पार्वती का भी ध्यान लगाना है.

ऐसे हुई प्रदोष व्रत की शुरुआत: प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है. जिस तरह से लोग एकादशी व्रत विष्णु भगवान के लिए करते हैं, ठीक उसी प्रकार प्रदोष व्रत भगवान शिव के लिए किया जाता है. जब समुंद्र मंथन के दौरान विष निकला तो महादेव ने सृष्टि कोन बचाने के लिए विषपान किया था. विष पीते ही महादेव का कंठ और शरीर नीला पड़ गया. उन्हें असहनीय जलन होने लगी. उस समय देवताओं ने जल बेलपत्र आदि से महादेव की जलन को कम किया. विष पीकर महादेव ने संसार की रक्षा की. ऐसे में पूरा विश्व भगवान का ऋणी हो गया. उस समय देवताओं ने महादेव की स्तुति की, जिससे महादेव बहुत प्रसन्न हुए. उन्होंने तांडव किया. इस घटना के वक्त त्रयोदशी तिथि और प्रदोष काल था. उस समय से महादेव को ये तिथि और प्रदोष काल सबसे प्रिय हो गया. इसके साथ ही महादेव को प्रसन्न करने को लेकर भक्तों ने त्रयोदशी तिथि को प्रदोष काल में पूजन की परंपरा शुरू कर दी और इस व्रत को प्रदोष व्रत का नाम दिया जाने लगा.

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गुरु प्रदोष व्रत कथा: एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घोर युद्ध हुआ. देवताओं ने दैत्य सेना को पराजित कर खत्म कर डाला. यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित होकर खुद युद्ध को आ गया. आसुरी माया से वृत्तासुर ने विकराल रूप धारण कर लिया, जिससे सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे. गुरुदेव बृहस्पति महाराज बोले, पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय देता हूं. बृहस्पति महाराज बोले "दैत्यराज वृत्तासुर बड़ा ही तपस्वी और कर्मनिष्ठ है. उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया है. पूर्व जन्म में वह चित्ररथ नाम का राजा था. एक बार चित्ररथ अपने विमान से कैलाश पर्वत पर गया. वहां भगवान शिव के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहास पूर्वक बोला, ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं, किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे. चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी भगवान शिव हंसकर बोले, ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है. मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारण जन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो.’ चित्ररथ के ऐसे वचन सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं, अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है, अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा. अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे श्राप देती हूं. माता जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना. गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले, ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त रहा है. अत: हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर भगवान शंकर को प्रसन्न करो.’ देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन करते हुए बृहस्पति प्रदोष व्रत किया. गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में पुनः शांति स्थापित हुई. अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य ही करना चाहिए.

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