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सवालों में सरकारी गौशालाएं: ना समय पर मिलता अनुदान, ना गौ सेवा के लिए लोग दे रहे दान

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Published : Feb 9, 2022, 6:48 PM IST

Sagar government gaushalas conditions
महिला स्व सहायता समूह चला रही सागर में गौशाला

सागर विकासखंड की ग्राम पंचायत पड़रिया में सरकारी गौशालाओं का हाल जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम मौके पर पहुंची. जहां उन्होंने स्व सहायता समूह की अध्यक्ष से बात की. इस दौरान उन्होंने कहा कि गौशालाओं में सरकार की तरफ से अनुदान बहुत देरी से मिलता है, जिससे उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. (Sagar government gaushalas conditions)

सागर। हाल ही में राजधानी भोपाल के नजदीक बैरसिया की गौशाला में हुई गायों की मौत के बाद प्रदेश की तमाम सरकारी गौशालाओं की व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं. इन गौशालाओं की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम गौशाला पहुंची. हकीकत यह थी कि गौशालाओं में चारा और दूसरा जरूरी सामान उतना ही मिलता है जितना ऊंट के मुंह में जीरा. सरकारी अनुदान में होने वाली देरी और समाज की तरफ से किसी तरह के दान के अभाव में गौशालाओं के संचालन में स्व सहायता समूह को काफी परेशानी आती है. आलम यह है कि गौशाला का संचालन करने वाले स्व सहायता समूह अपनी निजी व्यवस्थाओं से गौ सेवा कर रहे हैं. जिसके बदले में उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है.

महिला स्व सहायता समूह चला रही सागर में गौशाला

5 महीने से अनुदान का इंतजार
सागर विकासखंड की ग्राम पंचायत पड़रिया में स्व सहायता समूह द्वारा संचालित गौशाला में195 गाय हैं. गौशाला में गौ सेवा संवर्धन बोर्ड हर गाय के हिसाब से 20 रूपये हर दिन का अनुदान देता है. यह एक गाय के भोजन के हिसाब से जहां काफी कम हैं, वहीं यह सही समय पर नहीं मिलता है. मौजूदा स्थिति में देखें, तो जुलाई-अगस्त 2021 का अनुदान हाल ही में आया है, और अगस्त माह के बाद के अनुदान का अभी भी इंतजार है, जबकि गौशाला की स्थिति यह है कि 195 गायों के लिए 2 दिन में 7 क्विंटल भूसे की जरूरत होती है. जिसकी व्यवस्था करने में स्व सहायता समूह की महिलाओं को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है.

सरकारी गौशाला में दान में समाज की रुचि नहीं
आमतौर पर देखा गया है कि गौ सेवा के नाम पर समाजसेवी लोग काफी दान पुण्य करते हैं, लेकिन यह दान पुण्य निजी या धार्मिक ट्रस्ट की गौशालाओं में ज्यादा किया जाता है. जबकि सरकारी खर्च पर चलने वाली गौशालाओं में लोग दान नहीं करते हैं. पड़रिया ग्राम पंचायत की बात करें, तो पिछले साल गर्मी के मौसम में एक समाजसेवी ने 20 बोरा भूसा दान किया था. इसके अलावा अभी तक इस गौशाला के लिए किसी तरह का दान नहीं मिला है. अब इस सब की वजह से महिला स्व सहायता समूह को बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने का चल रहा है प्रयास
सरकारी गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए गायों के गोबर और दूध से बनने वाले उत्पाद के लिए मशीनें मंगाई गई हैं, लेकिन अभी ये पूरी तरह से संचालित नहीं हो पा रही हैं. गाय के गोबर के जरिए वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा गाय के गोबर के उपले बेच कर भी कुछ राशि जुटाई जाती है. इसके साथ ही दुधारू गायों से मिलने वाला दूध बेच कर भी पैसा कमाया जा सकता है, लेकिन सरकारी गौशालाओं में ज्यादातर गाय ऐसी होती हैं, जो दूध देना बंद कर देती हैं या फिर बीमार होती हैं. कुल मिलाकर गौशालाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास अभी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है.

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स्व सहायता समूह की महिलाओं को नहीं मिलता मानदेय
गौशालाओं का संचालन करने के लिए बनाए गए स्व सहायता समूह को सरकार ने मानदेय देने की बात कही थी, लेकिन सहायता समूह की महिलाओं को अभी तक कोई मानदेय हासिल नहीं हुआ है. वहीं महिलाएं जब भी मानदेय की मांग करती हैं, तो उन्हें जल्द मानदेय देने का आश्वासन दिया जाता है. लेकिन अभी तक इन महिलाओं को कुछ भी नहीं मिला है. (Sagar government gaushalas conditions) (Sagar Gaushala run by Self Help Group in Padaria)

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