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हत्या के मामले के 5 दोषी 13 साल बाद दोषमुक्त, हाई कोर्ट ने दिए जुर्माना लौटाए जाने की भी आदेश

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Published : Oct 22, 2021, 6:10 PM IST

Updated : Oct 22, 2021, 8:39 PM IST

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प्रशासनिक अधिकारी नहीं कर पाएंगे 'न्यायालय' शब्द का इस्तेमाल

2008 में दतिया जिले के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में हुई एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में दोषी करार दिए गए 5 लोगों को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है. इसके साथ ही उनपर लगाया गया जुर्माना भी लौटाने के आदेश कोर्ट ने दिए हैं. इस पूरे मामले में कोर्ट ने पुलिस की कहानी को बेहद संदिग्ध और गवाहों के बयानों को भी विरोधाभासी बताते हुए उन्हें दोषमुक्त किया गया है.

ग्वालियर। प्रशासनिक अधिकारी 'न्यायालय' शब्द का प्रयोग करने को लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने कहा है कि कलेक्टर एसडीएम, तहसीलदार,नायब तहसीलदार सहित संभागीय आयुक्त द्वारा सुनवाई के लिए डाइस इस्तेमाल नहीं की जाती है. कक्षों के बाहर न्यायालय शब्द का प्रयोग करने और गाड़ियों पर कार्यपालक मजिस्ट्रेट लिखने पर ग्वालियर खंडपीठ में एक जनहित याचिका दायर की गई थी. जिसपर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने इस तरह के शब्द इस्तेमाल करने पर तमाम प्रशासनिक अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. मामले में अगली सुनवाई 24 नवंबर को होगी.

केवल जज ही कर सकते हैं 'न्यायालय' शब्द का इस्तेमाल
याचिकाकर्ता उमेश बोहरे ने इस मामले में एक जनहित याचिका दाखिल करते हुए न्यायालय और कार्यपालिक मजिस्ट्रेट शब्द का प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इस्तेमाल करने को गलत बताया था. उनका कहना था कि डायस का इस्तेमाल केवल जज ही कर सकते हैं प्रशासनिक अधिकारी नहीं, अगर उन्हें आम लोगों के केसों की सुनवाई करनी है तो वह कुर्सी लगाकर कर सकते हैं, लेकिन डायस का इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसके साथ ही प्रशासनिक अधिकारी कार्यपालिक मजिस्ट्रेट भी नहीं लिख सकते हैं.याचिका की सुनवाई के बाद ग्वालियर खंडपीठ ने मुख्य सचिव, मुख्य सचिव राजस्व, प्रमुख सचिव परिवहन विभाग, ट्रांसपोर्ट कमिश्नर और अन्य अधिकारियों को नोटिस दिया है साथ ही 4 हफ्ते में जवाब मांगा है.

हत्या के दोषी 5 लोग 13 साल बाद दोष मुक्त

2008 में दतिया जिले के सिविल लाइन थाना क्षेत्र में हुई एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में दोषी करार दिए गए 5 लोगों को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है. इसके साथ ही उनपर लगाया गया जुर्माना भी लौटाने के आदेश कोर्ट ने दिए हैं. इस पूरे मामले में कोर्ट ने पुलिस की कहानी को बेहद संदिग्ध और गवाहों के बयानों को भी विरोधाभासी बताते हुए कहा है मामला संदेह पैदा करता है. इन 5 लोगों को दतिया सेशन कोर्ट ने दोषी ठहराया था. जिन्हें हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने तुरंत रिहा करने के आदेश दिए हैं. आपको बता दें कि 6 दिसंबर 2008 को दतिया सिविल लाइन थाना क्षेत्र के जखौरिया गांव में रहने वाले हरगोविंद यादव की लाश गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर कठवा की पुलिया के नजदीक मिली थी. मृतक के परिवार ने आरोप लगाया कि वीर सिंह और उसके परिवार के लोग बिहारी लाल बाली उर्फ बालकिशन आदि उसे मारपीट के मामले में समझौते के लिए 6 दिसंबर 2008 को दिन में 11बजे घर से बुलाकर ले गए थे. उसके बाद हरगोविन्द की लाश अगले दिन पुलिया के नीचे मिली.

खास बात यह है कि जब मृतक के परिवार ने इस लाश को देख लिया था तो उन्होंने गांव लौट कर ना तो इसकी सूचना पुलिस को दी और ना ही परिवार के कोई अन्य लोग मौके पर वहां रुके. इसके अलावा फॉरेंसिक रिपोर्ट में भी इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो सकी जिसमें उन्होंने गांव के रास्ते में हरगोविंद के खून के धब्बे मिलना बताए थे. इसके अलावा गवाहों के बयान भी अलग-अलग पाए गए. हाई कोर्ट को इस कहानी में कई पेंच नजर आए जिस पर सेशन कोर्ट में कोई संज्ञान नहीं लिया गया था. जबकि इस मामले में दतिया सेशन कोर्ट ने 29 दिसंबर 2009 को वीर सिंह बाली उर्फ बिहारीलाल , सिया शरण और रविंद्र कुशवाहा को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए अर्थ दंड भी लगाया था. अब हाई कोर्ट ने इन्हें बरी कर दिया है. ये सभी 5 आरोपी 13 तक जेल में बंद रहे.

स्पॉट वेल्यूएशन मामला रिटायर्ड जज के नेतृत्व में बनेगी कमेटी

निर्धारित शुल्क लेने के बावजूद भी स्पॉट वेल्यूवेशन नहीं करवाये जाने के खिलाफ आठ मेडिकल छात्रों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इसकी सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से बताया गया कि इस संबंध में दायर जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने रिटायर्ड जज के नेतृत्व में कमेटी बनाने के निर्देश दिए हैं. हाईकोर्ट के जस्टिस शील नागू तथा जस्टिस पुरूषेन्द्र कौरव की युगलपीठ ने निष्पक्ष जांच के लिए सरकार द्वारा की गई कार्यवाही के संबंध में अवगत करवाने के निर्देश जारी किए हैं. याचिका पर अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद निर्धारित की गयी है।

प्राईवेट डेटल मेडिकल कॉलेज के बीडीएस फाइनल ईयर स्टूटेंट राजेन्द्र कैथवास व अन्य सात की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि मप्र मेडिकल साइंस यूनिवर्सिटी ने उनका रिजल्ट 1 जून 2021 को जारी किया था. इसके बाद विश्वविद्यालय ने 4 जून 2021 को नोटिफिकेशन जारी किया था कि छात्र स्पॉट वेल्यूवेशन के लिए दो हजार रूपये शुल्क जमा कर आवेदन कर सकते हैं. उनके द्वारा निर्धारित शुल्क जमा कर 14 जून 2021 को आवेदन किया गया ,लेकिन आवेदन किये गये तीन माह से अधिक का समय गुजर गया है परंतु अभी तक स्पॉट वेरिफिकेशन नहीं करवाया गया है. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि मेडिकल विश्वविद्यालय में व्यापमं से बडा घोटाला चल रहा है.

Last Updated :Oct 22, 2021, 8:39 PM IST
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