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Dussehra 2022: सत्य, धर्म और अच्छाई का प्रतीक है विजयदशमी, जानिये दशहरे को लेकर अलग-अलग मान्यताएं

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Published : Oct 5, 2022, 9:09 AM IST

दशहरा अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है. यह नवरात्र खत्म होते ही अगले दिन आने वाला त्योहार है. 2022 में 5 अक्टूबर 2022 शुक्रवार के दिन मनाया जा रहा है. इसे विजय पर्व या विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है. भारत में कुछ जगहों पर इस दिन रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि उसकी पूजा भी की जाती है.

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भोपाल। आज देशभर में दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा. पिछले साल कोरोना की वजह से धूमधाम से दशहरा नहीं मना पाने के कारण इस बार लोग दशहरा पर्व को लेकर खासे उत्साहित नजर आ रहे हैं. देशभर में रावण दहन की भव्य तैयारियां की जा रही है, साथ ही दशहरा पर्व को लेकर लोगों में खासा उत्साह नजर आ रहा है. भारत में कुछ जगहों पर इस दिन रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि उसकी पूजा भी की जाती है. ऐसे ही मध्यप्रदेश के मंदसौर के अलावा कर्नाटक के कोलार, राजस्थान के जोधपुर, आंध्रप्रदेश के काकीनाडा और हिमाचल के बैजनाथ में रावण की पूजा की जाती है.

दशहरे पर सीएम उज्जैन दौरे पर: दशहरे पर निकाली जाने वाली भगवान महाकाल की सवारी में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पहली बार शामिल होंगे, इस दौरान वे सवारी में पैदल चलकर नगरवासियों को 'महाकाल लोक' के लोकार्पण समारोह में पधारने का निमंत्रण देंगे.

आज किया जाएगा शस्त्र पूजन: दशहरे पर अस्त्र-शस्त्रों की पूजा की जाती है और विजय पर्व मनाया जाता है. आज देशभर में कई स्थानों पर शस्त्र पूजन भी किया जाएगा. कई स्थानों पर पुलिस लाइन में विजयादशमी के मौके पर शस्त्र पूजन का आयोजन किया गया है. भारत में कुछ जगहों पर इस दिन रावण को जलाया नहीं जाता बल्कि उसकी पूजा भी की जाती है. ऐसे ही मध्यप्रदेश के मंदसौर के अलावा कर्नाटक के कोलार, राजस्थान के जोधपुर, आंध्रप्रदेश के काकीनाडा और हिमाचल के बैजनाथ में रावण की पूजा की जाती है.

जानिए शस्त्र पूजन की विधि: शस्त्र पूजन करने के लिए सबसे पहले सावधानी बरतना बेहद जरूरी है, अगर शस्त्र धारदार है तो उचित सुरक्षा का इंतजार रखें. अगर बंदूक या राफल का पूजन कर रहे हैं, तो सावधानि से पहले उसे अनलोड कर लें. जब आप पूरी तरह से संतुष्ट हो जाएं की बंदूक में गोली नहीं है, तभी उसका पूजन करें. इसके अलावा शस्त्र पूजन के बाद हवाई फायर करने या अन्य धारदार हथियारों का इस्तेमाल करते समय सावधानी बरतें.

यहां होती है रावण की पूजा: दशहरा अश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है. यह नवरात्र खत्म होते ही अगले दिन आने वाला त्योहार है. 2022 में 5 अक्टूबर 2022 शुक्रवार के दिन मनाया जा रहा है. इसे विजय पर्व या विजयदशमी के रूप में भी मनाया जाता है.

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क्या है दशहरा को लेकर कहानी : दशहरा के दिन के पीछे कई कहानियां हैं, जिनमे सबसे प्रचलित कथा हैं भगवान राम का युद्ध जीतना अर्थात रावण की बुराई का विनाश कर उसके घमंड को (Story of Ram and Ravana in Dussehra) तोड़ना. राम अयोध्या नगरी के राजकुमार थे, उनकी पत्नी का नाम सीता था एवम उनके छोटे भाई थे, जिनका नाम लक्ष्मण था. राजा दशरथ राम के पिता थे. उनकी पत्नी कैकई के कारण इन तीनो को चौदह वर्ष के वनवास के लिए अयोध्या नगरी छोड़ कर जाना पड़ा. उसी वनवास काल के दौरान रावण ने सीता का अपहरण कर लिया. रावण चतुर्वेदों का ज्ञाता महाबलशाली राजा था. जिसके पास सोने की लंका थी. लेकिन उसमें अपार अहंकार भी था. वो महान शिव भक्त था और खुद को भगवान विष्णु का दुश्मन मानता था. वास्तव में रावण के पिता विशर्वा एक ब्राह्मण थे और माता राक्षस कुल की थी. इसलिए रावण में एक ब्राह्मण के समान ज्ञान था. वहीं एक राक्षस के जैसी शक्ति. इन्हीं दो बातों का रावण में अहंकार था. जिसे खत्म करने के लिए भगवान विष्णु ने रामावतार लिया था. राम ने अपनी सीता को वापस लाने के लिए रावण से युद्ध किया, जिसमें वानर सेना और हनुमान जी ने राम का साथ दिया. इस युद्ध में रावण के छोटे भाई विभीषण ने भी भगवान राम का साथ दिया. अन्त में भगवान राम ने रावण समेत उसके पूरे कुल को मारकर उसके घमंड का नाश किया.

आधुनिक दौर में कैसे मनाया जाता है दशहरा: आज के समय में दशहरा इन पौराणिक कथाओं को माध्यम मानकर मनाया जाता हैं. माता के नौ दिन की समाप्ति के बाद दसवें दिन जश्न के तौर पर मनाया जाता हैं. जिसमें कई जगहों पर रामलीला का आयोजन होता है, जिसमें कलाकार रामायण के पात्र बनते हैं और राम-रावण के इस युद्ध को नाटिका के रूप में प्रस्तुत करते हैं. Dussehra festival in India

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दशहरे को लेकर मान्यताएं: दशहरा बुरे आचरण पर अच्छे आचरण की जीत की खुशी में मनाया जाने वाला त्यौहार हैं. जश्न की मान्यता सबकी अलग-अलग होती हैं. जैसे किसानो के लिए यह नयी फसलों के घर आने का जश्न हैं. पुराने वक़्त में इस दिन औजारों एवम हथियारों की पूजा की जाती थी, क्योंकि वे इसे युद्ध में मिली जीत के जश्न के तौर पर देखते थे. लेकिन इन सबके पीछे एक ही कारण होता हैं बुराई पर अच्छाई की जीत. किसानों के लिए यह मेहनत की जीत के रूप में आई फसलों का जश्न, सैनिकों के लिए युद्ध में दुश्मन पर जीत का जश्न हैं.

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