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MP News: पहले स्वतंत्रता संग्राम का गवाह गढ़पहरा किला, यहां स्थित बजरंग बली का 400 साल पुराना मंदिर, आषाढ़ में लगता है मेला

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Published : Jun 13, 2023, 12:24 PM IST

Updated : Jun 13, 2023, 5:53 PM IST

सागर के गढ़पहरा हनुमान मंदिर में भक्त आस्था के लिए तो पहुंचते ही हैं, लेकिन इस मंदिर का आजादी की लड़ाई के तौर पर भी एतिहासिक कनेक्शन है. 1857 की क्रांति के दौरान तात्या टोपे इसी मंदिर में छिपे थे. राजा मर्दन सिंह ने इन्हीं का आर्शीवाद लेकर अंग्रेजों से लड़ाई की थी. आजादी से जुड़े मंदिर के किस्से और इस मंदिर से जुड़ी आस्था की कहानी पढ़िए यहां.

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पहले स्वतंत्रता संग्राम का गवाह गढ़पहरा किला

सागर। बुंदेलखंड के संभागीय मुख्यालय सागर में स्थित गढ़पहरा किले की बात करें तो इस किले को राष्ट्रीय स्मारक के महत्व का दर्जा दिया गया है. ये किला करीब 900 साल के इतिहास को अपने में समेटे है. खासकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था. इस किले का ज्यादातर हिस्सा जर्जर हो चुका है, लेकिन किले में स्थित 400 साल पुराना हनुमान मंदिर आज भी स्थापित है, जो बुंदेलखंड ही नहीं बल्कि आसपास के पड़ोसी राज्यों के लोगों की आस्था का केंद्र भी है. हनुमान के इस मंदिर में आषाढ़ के हर मंगल पर विशेष मेला लगता है और हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं.

कहां स्थित है गढ़पहरा का किला: सागर-झांसी मार्ग पर सागर शहर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर गढ़पहरा का किला स्थित है. इस किले को भारतीय पुरातत्व विभाग ने जहां राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप में संरक्षित किया है, तो दूसरी तरफ भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय भी किले की देखरेख करता है. सागर से झांसी जाते समय सड़क मार्ग पर बाईं ओर स्थित ये किला एक विशाल पहाड़ी पर बनाया गया है. बताया जाता है कि किले के 2 द्वार थे, पहला द्वार सागर की तरफ था जहां से अभी मंदिर और किले में प्रवेश कर सकते हैं. दूसरा द्वारा झांसी की तरफ है जो अब एक तरह से नष्ट हो चुका है. खास बात ये है कि किला भले ही जर्जर अवस्था में पहुंच चुका हो, लेकिन किले के प्रवेश द्वार की दाईं तरफ अभी भी हनुमान मंदिर है. बताया जाता है कि हनुमान जी की स्वयंभू मूर्ति है जिसके लिए 400 साल पहले दांगी राजाओं ने मंदिर बनवाया था.

किले का ऐतिहासिक महत्व: किले के निर्माण के बारे में ज्यादा स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है, लेकिन ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार ये किला गौड़ राजा संग्राम सिंह के आधिपत्य में था और गौड़ राजाओं के 52 गढ़ों में गढ़पहरा का अहम स्थान था. इसके आधिपत्य में 360 मौंजे थे. फिर इस किले पर दांगी राजाओं का कब्जा हो गया. इतिहासकार डॉ भरत शुक्ला बताते है कि "यहां पर 1620 ईस्वी के आसपास किला शीशमहल और हनुमान जी के मंदिर का निर्माण कराया गया था, जो करीब 400 साल पुराना है. आषाढ़ के मंगलवार में हर साल यहां विशाल मेला लगता है. माना जाता है कि यह काफी सिद्ध स्थान है और यहां आने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. 1689 में ये किला मुगलशासन के कब्जे में आ गया और फिर मराठाओं ने किले पर कब्जा कर लिया."

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प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े किले का महत्व: डॉ भरत शुक्ला बताते हैं कि "1857 की क्रांति में गढ़पहरा किले के तत्कालीन राजा मर्दन सिंह थे, उन्होंने इस किले से विद्रोह का संचालन किया था. उन्होनें शाहगढ़ के राजा बखतबली शाह के साथ मिलकर झांसी के रानी की भरपूर मदद की थी और अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था. हालांकि ब्रिटिश सेना के सामने ये दोनों राजा हार गए थे और समर्पण करना पड़ा था, लेकिन दोनों राजाओं ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया था."

आषाढ़ के मंगल का विशेष महत्व: बुंदेलखंड के प्रमुख धार्मिक स्थानों में शुमार गढ़पहरा हनुमान मंदिर में आषाढ़ के मंगल के दिन विशाल मेला लगता है. मध्यप्रदेश और बुंदेलखंड के अलावा किले के पास सैन्य छावनी होने के कारण इस मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक है. कहा जाता है कि यह हनुमान जी का सिद्ध क्षेत्र है और आषाढ़ के मंगल के दिन विशेष पूजा अर्चना के साथ जो भी भक्त सच्चे मन से मनोकामना मांगता है वह जरूर पूरी होती है.

Last Updated :Jun 13, 2023, 5:53 PM IST
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