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'धोखे' का दूसरा नाम हैं पंजशीर की शांत पहाड़ियां

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Published : Sep 9, 2021, 6:03 PM IST

तालिबान के लिए यह कहना कि उसने अफगानिस्तान में पूरी तरह से जीत हासिल कर ली है, अभी जल्दबाजी होगी. पंजशीर में उसके सामने पहाड़ सी चुनौतियां हैं. वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

पंजशीर की शांत पहाड़ियां
पंजशीर की शांत पहाड़ियां

नई दिल्ली : 'बहादुरों की घाटी' (valley of the brave) के रूप में जाना जाने वाला अफगानिस्तान का पंजशीर (Panjshir Valley) सिर्फ एक घाटी नहीं है, बल्कि लगभग 21 उप घाटियों की श्रृंखला है. ये पंजशीर नदी के किनारे स्थित है जो हिंदुकुश से 3,000 मीटर की ऊंचाई पर है, जिसका रास्ता नुकीले, पथरीले पहाड़ों से होकर गुजरता है.

लगभग 100 किलोमीटर लंबी घाटी उत्तरी काबुल के मैदानों से एक पहाड़ी दर्रे के माध्यम से सड़क से जुड़ी हुई है, जो बाजारक की प्रांतीय राजधानी से बहुत दूर नहीं है. टेढ़ी-मेढ़ी चोटियों वाली लंबी घाटी में ज्यादातर ताजिक (Tajik) लोगों के कबीले हैं, जो विशेष रूप से गुरिल्लावार में माहिर हैं. वह 'हिट-एंड-रन रणनीति' में अपने युद्ध कौशल पर बहुत गर्व करते हैं. यही वजह है कि दुश्मन को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.

बाहरी आक्रमणकारियों या बाहरी लोगों के लिए इन लोगों को नुकसान पहुंचाना आसान नहीं है. उन्हें पहाड़ का रास्ता चीरकर आगे बढ़ना होता है, जो उनके लिए आसान नहीं है.

चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में सिकंदर महान (Alexander the Great ) के समय से पंजशीर बैक्ट्रिया-सोग्डियाना क्षेत्र का हिस्सा था, इस खूबसूरत लेकिन जटिल घाटी पर रहने वाले लोगों ने अपने अदम्य साहस से हमेशा जीत हासिल की है. चाहे औपनिवेशिक ब्रिटेन, सोवियत रूस और यहां तक ​​कि 1996 से 2001 तक तालिबान के पहले कार्यकाल के दौरान जब अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में उत्तरी प्रतिरोध अस्तित्व में आया.

ऐसा नहीं है कि कोई भी घाटी में प्रवेश करने में सक्षम नहीं था, जैसे उदाहरण के लिए सोवियत संघ, जिन्होंने उस पर कब्जा तो कर लिया लेकिन उन्हें गुरिल्ला हमलों के रूप में लगातार विद्रोह का सामना पड़ा, यही वजह रही कि उन्हें घाटी को छोड़ना पड़ा.

प्रतिरोध के अंत का संकेत नहीं
तालिबान जिसने 1 मई से शुरू हुए 'ब्लिट्जक्रेग' हमलों की एक श्रृंखला में युद्ध से तबाह अफगानिस्तान पर नियंत्रण कर लिया है. उसने 15 अगस्त तक काबुल पर कब्जा कर लिया था, लेकिन काली पगड़ी वाले अज्ञात तालिबान अधिकारी का सोमवार (6 सितंबर, 2021) को लगभग 7:30 बजे पंजशीर के गवर्नर के आवास पर सफेद रंग का तालिबान झंडा उठाना किसी भी तरह से प्रतिरोध के अंत का संकेत नहीं है.

तालिबानी नेता ने ये दिया था बयान
बुधवार को राष्ट्रीय प्रतिरोध बल (एनआरएफ) के नेता और विदेश मामलों के प्रवक्ता अली नाज़ारी (Ali Nazary) ने एक टीवी चैनल को दिए एक साक्षात्कार में कहा: 'तालिबान का प्रांत पर कब्जा नहीं हुआ है बल्कि यह केवल मुख्य सड़क तक ही सीमित है. मुख्य सड़क के पास प्रांतीय केंद्र स्थित है इसलिए वे अपना झंडा फहराने में सफल रहे.'

नाजारी ने कहा कि अफगान तालिबान विद्रोह के लिए एनआरएफ को जवाब दे रहा है. NRF में ताजिक, अफगान राष्ट्रीय सुरक्षा बल के प्रतिरोध सेनानियों सहित हजारों लड़ाके शामिल हैं जिनके पास हथियार और गोला-बारूद हैं.

पाकिस्तान का हो रहा विरोध
इस बीच तालिबान विरोधी संगठनों, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों के विरोध ने काबुल सहित देश में कई जगहों को हिलाकर रख दिया है. इन लोगों ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाया है. सोमवार को एनआरएफ के प्रमुख नेता अहमद मसूद ने राष्ट्रीय विद्रोह का आह्वान किया था. मंगलवार को दिवंगत अहमद शाह मसूद के भाई अहमद वली मसूद ने कहा, 'जो कोई भी क्षेत्र (पंजशीर) का भूगोल जानता है, वह जानता है कि वे (तालिबान) आए हैं और एक सड़क ले ली है, लेकिन पंजशीर में कई घाटियां हैं इसलिए यह मत सोचो कि उन्होंने क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया है.'

उन्होंने जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिए एक स्विस विश्वविद्यालय और अफगानिस्तान के स्थायी मिशन द्वारा आयोजित एक संगोष्ठी में कहा, 'हमारे पास अभी भी घाटी में हजारों लड़ाके हैं जो किसी भी समय लौट सकते हैं, हमें मारा गया था, लेकिन हम मरे नहीं हैं, हम अभी भी जीवित हैं.'

कबीला और कबीले केंद्रित पंजशीर के लोग जो तालिबान सरकार का विरोध कर रहे हैं उसका एक कारण ये भी हो सकता है कि बुधवार को मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद के नेतृत्व वाली जो 33 सदस्यीय अंतरिम सरकार घोषित की गई है वह काफी हद तक पश्तून-वर्चस्व वाली है.

आबादी के हिसाब से ताजिकों का प्रभुत्व
दूसरी ओर तत्कालीन अफगान सेना पर ताजिकों का प्रभुत्व है. पंजशीर ताजिकों की घनी बस्तियों में से एक है. जाने-माने विद्वान और शोधकर्ता माइकल इज़ाडी के 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, यहां की 3.9 करोड़ आबादी में पश्तूनों की संख्या 38.5 प्रतिशत, हज़ारों की 25 प्रतिशत, जबकि ताजिकों (Tajiks) और उज़बेकों (Uzbeks ) की संख्या क्रमशः 21 प्रतिशत और 6 प्रतिशत है.

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